नई दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय की एक अपील को खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को व्यवस्था दी कि किसी आपराधिक मामले में नैसर्गिक जमानत देने के लिए 60/90 दिन की अवधि में रिमांड अवधि भी शामिल होगी. न्यायमूर्ति के एम जोसफ, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने डीएचएफएल के पूर्व प्रवर्तकों कपिल वाधवन और धीरज वाधवन को यस बैंक धनशोधन मामले में जमानत देने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की याचिका को खारिज कर दिया. ईडी इस मामले में जांच कर रही है.
पीठ ने कहा, 'रिमांड की अवधि उस तारीख से गिनी जाएगी, जिस दिन मजिस्ट्रेट आरोपी को रिमांड पर भेजते हैं. यदि किसी मामले में रिमांड अवधि के 61वें या 91वें दिन तक आरोप पत्र दायर नहीं किया जाता तो आरोपी नैसर्गिक जमानत का अधिकारी बन जाता है.' पीठ ने 2021 में दो न्यायाधीशों की एक पीठ द्वारा उसे भेजे गये व्यापक मुद्दे पर जवाब दिया. उसने निर्देश दिया कि मामले से संबंधित लंबित याचिकाओं को दो न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष भेजा जाए. शीर्ष अदालत ने नौ फरवरी को ईडी की अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था.
शीर्ष अदालत ने 23 फरवरी, 2021 को बड़ी पीठ को यह विधिक प्रश्न संदर्भित किया कि क्या नैसर्गिक जमानत देने के लिए 60 दिन की अवधि गिनने में आरोपी को हिरासत में भेजे जाने वाले दिन को शामिल किया जाना चाहिए या नहीं. दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (डीएचएफएल) के पूर्व प्रवर्तकों को जमानत देने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ ईडी की एक अपील पर सुनवाई के दौरान विधिक मुद्दा आया. शीर्ष अदालत ने सितंबर 2020 में बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें दोनों प्रवर्तकों को जमानत दी गयी थी.