नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ बाल संरक्षण गृहों में कोविड 19 के संबंध में सुनवाई कर रही है. यह मामला उन बच्चों से संबंधित है, जिन्होंने कोविड 19 महामारी के दौरान अपने माता-पिता को खो दिया है. शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को NCPCR की बैठकों में भाग लेने और उन्हें सुझाव देने को भी कहा. एसओपी से जुड़े मामले की सुनवाई 13 दिसंबर को होगी.
स्वत: संज्ञान वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि उसे 4848 आवेदन मिले और 1719 को जिलाधिकारियों ने पीएम केयर्स योजना के तहत मंजूरी दे दी. बच्चों को मिलने वाले लाभों के बारे में पूछे जाने पर, केंद्र ने कहा कि 18 वर्ष से ऊपर के लोगों के मामले में प्रगति हुई है.
केंद्र की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसीटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कुछ समय मांगा और अदालत ने मामले को 2 सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया. सरकार ने कोर्ट को बताया कि तीन व्यापक स्थितियों में बच्चों की पहचान कर स्थिति से निपटने के लिए मानक प्रक्रिया (एसओपी) तैयार की गई है. पहला, बिना किसी सहारे के अकेले सड़कों पर रहने वाले बच्चे, दूसरे, दिन में सड़कों पर रहने वाले और रात में घर वापस आने वाले बच्चे और तीसरे अपने परिवार के साथ सड़कों पर रहने वाले बच्चे.
सरकार ने बताया कि एसओपी में सड़क पर उनके जीवन में मुद्दों और चुनौतियों की पहचान, सड़क की स्थिति में बच्चों को पहचानना और वर्गीकृत करना, उचित उपाय करना और बच्चों की देखभाल के लिए अधिकारियों द्वारा पालन की जाने वाली प्रक्रिया और प्रक्रिया शामिल है.
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 'सेव द चिल्ड्रन' संस्था ने लखनऊ, प्रयागराज, चंदौली, पुणे, नासिक, कलकत्ता और हावड़ा के शहरों में लगभग 2 लाख बच्चों की मैपिंग की है. इनके शिक्षा, स्वच्छता, पानी, संरक्षण और कल्याण के अधिकार पर ध्यान नहीं दिया गया है.