नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में मिले 'शिवलिंग' की उम्र का पता लगाने के लिए होने वाले कार्बन डेटिंग सहित वैज्ञानिक सर्वेक्षण पर शुक्रवार को रोक लगा दी है.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 12 मई को आधुनिक तकनीक का उपयोग करके 'शिवलिंग' होने का दावा करने वाली संरचना की आयु का निर्धारण करने का आदेश दिया था. हालांकि, मस्जिद के अधिकारियों ने कहा है कि संरचना 'वजू खाना' में एक फव्वारे का हिस्सा है, जहां नमाज से पहले स्नान किया जाता है.
केंद्र-यूपी सरकार को जारी किया नोटिस :मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 'शिवलिंग' के वैज्ञानिक सर्वेक्षण और कार्बन डेटिंग के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ मस्जिद पैनल की याचिका पर केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और हिंदू याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी किया.
पीठ में जस्टिस पी एस नरसिम्हा और के वी विश्वनाथन भी शामिल हैं. पीठ ने कहा कि 'विवादित आदेश के निहितार्थों की बारीकी से जांच की जानी चाहिए, इसलिए आदेश में संबंधित निर्देशों का कार्यान्वयन अगली तारीख तक स्थगित रहेगा.' पीठ ने कहा कि 'हमें इस मामले में संभलकर चलने की जरूरत है.'
शीर्ष अदालत संरचना की आयु निर्धारित करने के लिए कार्बन डेटिंग सहित 'वैज्ञानिक सर्वेक्षण' करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
शिवलिंग के प्रस्तावित वैज्ञानिक सर्वेक्षण को फिलहाल स्थगित करने की याचिका पर केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों सहमत हैं.
गौरतलब है कि उच्च न्यायालय ने 12 मई को वाराणसी के जिला न्यायाधीश के उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें 14 अक्टूबर, 2022 को 'शिवलिंग' के वैज्ञानिक सर्वेक्षण और कार्बन डेटिंग के लिए आवेदन को खारिज कर दिया था.
उच्च न्यायालय ने वाराणसी के जिला न्यायाधीश को 'शिवलिंग' की वैज्ञानिक जांच करने के लिए हिंदू उपासकों के आवेदन पर कानून के अनुसार आगे बढ़ने का निर्देश दिया था. निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ताओं लक्ष्मी देवी और तीन अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.
जानिए कोर्ट में क्या हुआ :सुप्रीम कोर्ट के वकील संदीप मिश्रा ने बताया किजब शीर्ष कोर्ट में बहस चली तो कोर्ट ने कहा कि ये मामला मेरिट पर टिका हुआ है और हम मेरिट के काफी करीब पहुंचेंगे, इसलिए क्लोज़ स्क्रूटिनी की आवश्यकता है यहां. मतलब फैक्ट के आधार पर हमें तय करना होगा क्योंकि ऐसे मामले में हम जल्दबाज़ी नहीं कर सकते. इसमें यूपी सरकार की भी सहमति थी और केंद्र सरकार की भी कि अगर इस मामले में अगली तारीख तक के लिए हाइकोर्ट के आदेश को स्टे कर दिया जाता है, तो हमें कोई आपत्ति नहीं है. इस के बाद ही कोर्ट ने इस मामले को अगली सुनवाई तक के लिए स्टे कर दिया है.
इसमें दरअसल जब एएसआई सर्वे के लिए जिला कोर्ट में अर्ज़ी लगाई गई थी, तो हिंदू पक्षकारों ने ही इसका विरोध कर दिया था और ये कहा था कि ये आस्था का विषय है. शिवलिंग जीवित हैं, शिव में आत्मा है, बेशक उस शिवलिंग का एक अंश ही निकाल कर परीक्षण किया जाय, लेकिन क्या उस जीवित व्यक्ति का लैब में टेस्ट किया जा सकता है. जिला अदालत ने इसे रिजेक्ट कर दिया लेकिन हाइकोर्ट ने पूछा कि क्या बिना शिवलिंग को नुकसान पहुंचाए परीक्षण किया जा सकता है. एएसआई ने सहमति दी, इसके बाद ही हाइकोर्ट ने कार्बन डेटिंग का आदेश दिया था.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट :सुप्रीम कोर्ट के वकील संदीप मिश्रा का कहना है कि किसी को झटका नहीं है. ये न्याय की प्रक्रिया है जिसमें दोनों ही पक्षकारों को पर्याप्त समय दिया जाना आवश्यक है क्योंकि ये दो धर्मों के बीच की बात है. दूसरी बात ये कि मुस्लिम पक्षकार ने ये कह दिया कि हाइकोर्ट में उसकी बात सुनी ही नहीं गई. अब अगर कोई पक्षकार ये कहे कि निचली अदालत में उसे सुना नहीं गया, तो कोर्ट का उसे पर्याप्त समय देना बनता है.
वहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी दुबे का कहना है कि ये स्टे है अगली सुनवाई तक के लिए. हाईकोर्ट ने कहा था कि सुपरिटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट कार्बन डेटिंग की प्रक्रिया को शुरू करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने उसे अगली तारीख तक होल्ड पर रख दिया है और कहा है कि अगली सुनवाई में हमें इसे और क्लोज़र लुक देना पड़ेगा. सॉलिसिटर जनरल ने भी यही कहा कि इसका एक तरीका निकालना पड़ेगा. यानी अगली तारीख तक के लिए साइंटिफिक सर्वे पर स्टे लगा दिया गया है. इसलिए कोई झटका नहीं है किसी भी पक्ष के लिए.
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(एक्सट्रा इनपुट पीटीआई)