PMLA की वैधता को चुनौती देने की आड़ में जमानत अनुरोध करने के चलन की SC ने की निंदा
मनी लॉन्ड्रिंग मामले में याचिकाओं द्वारा पीएमएलए की वैधता को चुनौती देने की आड़ में अनुच्छेद 32 याचिकाओं का इस्तेमाल करने के चलन की सुप्रीम कोर्ट ने निन्दा की है. गौरतलब है कि संविधान का अनुच्छेद 32 एक व्यक्ति को अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख करने का अधिकार देता है.
Etv Bharat
By
Published : May 30, 2023, 9:52 PM IST
नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने धनशोधन संबंधी मामलों के आरोपियों द्वारा धनशोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधानों पर सवाल उठाने की आड़ में समन को चुनौती देने या जमानत का अनुरोध करने के लिए अनुच्छेद 32 याचिकाओं का इस्तेमाल किए जाने के चलन की मंगलवार को निंदा की. न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि किसी कानून को चुनौती देने वाली इस प्रकार की याचिकाएं दायर करना और इस प्रक्रिया के दौरान राहत का अनुरोध करना अन्य उपलब्ध कानूनी उपायों को दरकिनार करने के समान है.
पीठ ने कहा, "न्यायालय यह टिप्पणी करने के लिए विवश है कि विजय मदनलाल फैसले के बावजूद धारा 15 एवं धारा 63 और पीएमएलए के अन्य प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले अनुच्छेद 32 के तहत इस अदालत के समक्ष रिट याचिकाएं दायर करने और फिर इसके परिणामस्वरूप राहत का अनुरोध करने का एक चलन मौजूद है. ये राहत याचिकाकर्ताओं के लिए उपलब्ध अन्य मंचों को दरकिनार करने के समान है." शीर्ष अदालत ने मदनलाल फैसले में धनशोधन रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ्तारी, धनशोधन में शामिल संपत्ति की कुर्की, तलाशी और जब्ती से संबंधित प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियों को बरकरार रखा था.
संविधान का अनुच्छेद 32 व्यक्तियों को यह अधिकार देता है कि यदि उन्हें लगता है कि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है तो वे उच्चतम न्यायालय का रुख कर सकते हैं. छत्तीसगढ़ में कथित शराब घोटाला मामले में जांच का सामना कर रहे लोगों द्वारा दायर याचिकाओं के एक समूह की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी की. प्रवर्तन निदेशालय की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाओं के सुनवाई योग्य होने को लेकर गंभीर आपत्तियां जताईं. मेहता ने कहा कि कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका दायर करने और फिर कोई दंडात्मक कार्रवाई न किए जाने का आदेश प्राप्त करने का एक नया चलन है, जो वास्तव में एक अग्रिम जमानत होती है.
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने भी मेहता के अभिवेदन का समर्थन किया और कहा कि बार-बार दायर की जाने वाली इस प्रकार की याचिकाओं को लेकर शीर्ष अदालत पहुंचने के चलन पर रोक लगनी चाहिए. विधि अधिकारियों की इस टिप्पणी से पहले याचिकाकर्ताओं के वकील अभिषेक सिंघवी ने याचिकाओं को वापस लेने और जमानत के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने की अनुमति दिए जाने का अनुरोध किया. पीठ ने टिप्पणी की कि शीर्ष अदालत एक वैकल्पिक मंच बनता जा रहा है. उसने कहा कि आरोपी उच्च न्यायालय के पास जाने और वहां कानून के प्रावधानों को चुनौती देने के बजाय उच्चतम न्यायालय में समन को चुनौती दे रहे हैं. न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने कहा, "इस न्यायालय में जारी यह चलन परेशान करने वाला है."