नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुपस्थिति या अमान्य मंजूरी के आधार पर भ्रष्टाचार के किसी मामले की सुनवाई को बीच में नहीं रोका जा सकता है. न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि मुकदमे के बीच में आरोपमुक्त करने की मांग करने वाली अंतरिम अर्जी सुनवाई योग्य नहीं है.
बेंच ने कहा कि 'एक बार विशेष न्यायाधीश द्वारा संज्ञान ले लिया गया और आरोपी के खिलाफ आरोप तय कर दिया गया, तो उक्त अधिनियम की धारा 19(3) के मद्देनजर मुकदमे में न तो टॉयल को रोक जा सकता था और न ही बीच में रोका जा सकता है.'
बेंच ने कहा कि 'मौजूदा मामले में हालांकि मंजूरी की वैधता का मुद्दा पहले भी उठाया गया था, लेकिन इसके लिए दबाव नहीं डाला गया था. उस स्थिति में प्रतिवादी-अभियुक्त के लिए खुला एकमात्र चरण कानून के अनुसार मुकदमे में अंतिम बहस में उक्त मुद्दे को उठाना था.'
शीर्ष अदालत ने 16 अगस्त, 2018 के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली कर्नाटक लोकायुक्त द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया. जिसमें आरोपी को भ्रष्टाचार निवारण की धारा 13 (2) के साथ धारा 13 (1) (ई) के तहत लगाए गए अपराधों से मुक्त कर दिया गया.
शीर्ष अदालत ने कहा कि विशेष न्यायाधीश के उक्त आदेश को चुनौती देने वाली प्रतिवादी की याचिका में विशेष न्यायाधीश द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों को उच्च न्यायालय द्वारा पलटा या बदला नहीं जा सकता था और न ही धारा 19 की उपधारा (3) में निहित विशिष्ट रोक को ध्यान में रखते हुए बदला जाना चाहिए था.