नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र और कर्नाटक सरकार से राज्य में निकाले गए लौह अयस्क और उसके निर्यात पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है. साथ ही कहा कि या तो इसका उपभोग करना है या इसे बेचना है. मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को इस मुद्दे केंद्र के रूख के बारे में 8 अप्रैल तक जवाब दाखिल करने को कहा. अदालत ने उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त सेंट्रल इम्पावर्ड कमेटी और मॉनिटरिंग कमेटी को धरती पर लौह अयस्क की अनुमानित उपलब्ध मात्रा को इंगित करते हुए एक रिपोर्ट भी प्रस्तुत करने का निर्देश दिया.
निकाले गए लोह अयस्क को जमीन पर रखने का कोई मतलब नहीं है. या तो इसका सेवन करना है, बेचना है या जमीन से उतारना है. आइए पहले जमीन साफ करें फिर हम देखेंगे कि क्या करना है. उसके आधार पर राज्य सरकार और विकास कोष को कुछ पैसा मिल सकता है. पीठ में जस्टिस कृष्ण मुरारी और हेमा कोहली भी शामिल थी. सुप्रीम कोर्ट ने पहले कर्नाटक स्थित खनिकों से लौह अयस्क छर्रों के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने से इनकार कर दिया था. जबकि निजी खनिकों ने लौह अयस्क निर्यात पर प्रतिबंध हटाने की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने कर्नाटक से लौह अयस्क छर्रों के निर्यात की अनुमति देने की किसी भी संभावना से इनकार किया था. शीर्ष अदालत 2009 से एनजीओ 'समाज परिवर्तन समुदाय' द्वारा दायर एक जनहित याचिका में आदेश पारित कर रही है, जिसमें राज्य में खनन गतिविधियों में विभिन्न अनियमितताओं का आरोप लगा था.