नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट इस बात पर विचार करने को राजी हो गया है कि डीएनए रिपोर्ट में जैविक पिता साबित नहीं होने पर भी क्या कोई पुरुष बच्चे को भरण-पोषण देने के लिए उत्तरदायी होगा.
न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने एक महिला की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका पर पुरुष को नोटिस जारी किया. शीर्ष अदालत ने शख्स से चार हफ्ते के भीतर जवाब मांगा है.
शीर्ष अदालत ने 4 दिसंबर को दिए अपने आदेश में कहा, 'आंशिक चुनौती उच्च न्यायालय के 17 अक्टूबर, 2023 के आक्षेपित फैसले के पैराग्राफ 26 को है, जहां न्यायाधीश ने कहा कि डीएनए रिपोर्ट के मद्देनजर, बच्चा भरण-पोषण का दावा करने का हकदार नहीं है, हालांकि बच्चे का जन्म निर्वाह के दौरान हुआ था. याचिकाकर्ता (मां) और प्रतिवादी (पुरुष) के बीच विवाह का मामला.'
महिला ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसके तहत उसके बच्चे को भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया गया था.
उच्च न्यायालय ने कहा था कि रिकॉर्ड में मौजूद डीएनए रिपोर्ट के मद्देनजर, व्यक्ति को बच्चे को भरण-पोषण का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है. हाई कोर्ट ने कहा था कि इस संबंध में कानून भी तय है कि जैविक पिता अपने बच्चे के भरण-पोषण के लिए जिम्मेदार है.