नई दिल्ली : भूमि विवाद को लेकर वर्ष 1968 में दाखिल वाद और 27 साल तक बंबई उच्च न्यायालय में लंबित रहने के बाद मामला खारिज करने के फैसले के खिलाफ अपील उच्चतम न्यायालय ने स्वीकार कर ली लेकिन इस पल को देखने के लिए 108 वर्षीय वादी जिंदा नहीं रहा. वादी की जिंदगी में यह पल आने से पहले ही उसकी मौत हो गई.
उच्चतम न्यायालय ने 12 जुलाई को सोपन नरसिंह गायकवाड़ की याचिका पर सुनवाई की सहमति तब दी जब उनके वकील ने अनुरोध किया कि अपील में देरी को याचिकाकर्ता के महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाके का होने के संदर्भ में देखा जाए और बताया कि उच्च न्यायालय के फैसले की जानकारी उसे देरी से मिली और इसके बाद कोविड-19 महामारी आ गई.
याचिकाकर्ता के वकील विराज कदम ने बताया, 'दुर्भाग्य से जो व्यक्ति निचली अदालत से उच्चतम न्यायालय तक यह मामला लाया वह सुनवाई पर शीर्ष अदालत की सहमति की खबर सुनने के लिए जिंदा नहीं है.'
उन्होंने बताया, '12 जुलाई को अदालत द्वारा मामले को लेने से पहले ही उसकी मौत हो गई लेकिन ग्रामीण इलाके से सुनवाई के बाद ही उनके देहांत की जानकारी मिली. अब उनका प्रतिनिधित्व उनके कानूनी उत्तराधिकारी करेंगे.'
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने 23 अक्टूबर 2015 और 13 फरवरी 2019 को आए उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील दायर करने में 1,467 दिनों और 267 दिनों की देरी को माफ करने के लिए दायर आवेदन पर नोटिस जारी किया है.
शीर्ष अदालत ने प्रतिवादियों से भी आठ हफ्ते में जवाब तलब किया है.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा, 'हम इस तथ्य का संज्ञान ले रहे हैं कि याचिकाकर्ता की उम्र 108 साल है और उच्च न्यायालय ने इस मामले को मेरिट के आधार पर नहीं लिया एवं मामले को वकील के अनुपस्थित होने के आधार पर खारिज कर दिया.'
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ग्रामीण इलाके का है और हो सकता है कि वकील वर्ष 2015 को मामला खारिज होने के बाद उससे संपर्क नहीं कर सका हो.
अदालत ने याचिकार्ता की ओर से कदम द्वारा दी गई जानकारी को संज्ञान में लिखा कि निचली अदालत के फैसले को पहली अपीलीय अदालत ने बदल दिया और दूसरी अपील बंबई उच्च न्यायालय में वर्ष 1988 से लंबित थी.