नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने नवजात शिशु की हत्या के आरोपी एक महिला को बरी कर दिया. हालांकि कोर्ट ने कहा कि यद्यपि कानून के अनुसार किसी आपराधिक मामले में फैसले के लिए आवश्यक पहलुओं का खुलासा करना आवश्यक है, लेकिन इस तरह का कर्तव्य निजता के मौलिक अधिकार पर अनुचित रूप से कदम नहीं उठाया जा सकता है.
कोर्ट ने कहा कि एक महिला पर बिना किसी उचित सबूत के एक बच्चे की हत्या करने का दोष थोपना, सिर्फ इसलिए कि वह गांव में अकेली रह रही थी, सांस्कृतिक रूढ़ियों और लैंगिक पहचान को मजबूत करता है जिसके खिलाफ इस अदालत ने स्पष्ट रूप से चेतावनी दी है. शीर्ष अदालत अप्रैल 2010 में पारित छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली एक महिला द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी.
मामले में जुलाई 2005 में निचली अदालत द्वारा उसकी दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था. न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने इस मामले में विचार किया कि निजता का अधिकार किस हद तक अपराध करने की आरोपी महिला के निजी जीवन से संबंधित मामलों की रक्षा करता है और खासकर जब अभियोजन आरोपमुक्त करने में विफल रहा हो. इसके अलावा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के तहत बयान देते समय दोषी परिस्थितियों की व्याख्या करने के अभियुक्त के क्या अधिकार और कर्तव्य हैं?