वाराणसी: सनातन धर्म में भगवान शिवजी की महिमा अनन्त है. इनके शिवालय सर्वत्र प्रतिष्ठित हैं, जिनके दर्शनमात्र से अलौकिक शांति मिलती है. सर्वप्रिय मनभावन श्रावण मास का शुभारम्भ मंगलवार (4 जुलाई) से हो रहा है. यह माह भगवान शिवजी को समर्पित है. ज्योतिषाचार्य विमल जैन ने बताया कि धर्मशास्त्रों के अनुसार, तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में भगवान शिवजी ही देवाधिदेव महादेव की उपमा से अलंकृत हैं. ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिमूर्ति में शिव सम्पूर्ण सृष्टि के पालनहार एवं मृत्यु हरने वाले देवता माने गए हैं. इनके दर्शन, पूजन, अर्चना एवं व्रत से जीवन में अभीष्ट की प्राप्ति के साथ सर्वसंकटों का निवारण भी होता है.
उन्होंने बताया कि भगवान शिवजी की अर्चना के लिए श्रावण मास अतिविशिष्ट माना गया है. शिवजी की महिमा में मास के सभी सोमवार और त्रयोदशी एवं चतुर्दशी तिथि के दिन व्रत उपवास रखकर पूजा-अर्चना करनी चाहिए. श्रावण मास में भगवान शिवजी का रुद्राभिषेक करके समस्त सुखों की प्राप्ति की जा सकती है. शिवपूजा से भक्तों के समस्त कष्ट एवं अकाल मृत्यु के भय का निवारण होता है. श्रावण मास में कांवड़ चढ़ाने की परम्परा है. शिवभक्त सैकड़ों किमी यात्रा करके भगवान शिवजी का अभिषेक करते हैं. इस वर्ष पुरुषोत्तम (अधिक) मास पड़ने के कारण श्रावण दो मास का (4 जुलाई, मंगलवार से 31 अगस्त, गुरुवार तक) रहेगा.
भगवान शिव ऐसे होंगे प्रसन्न
ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि भक्तों को शिवकृपा प्राप्त करने के लिए प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान, ध्यान से निवृत्त होने के पश्चात व्रत का संकल्प लेना चाहिए. सायंकाल प्रदोष काल में भगवान शिवजी की पंचोपचार, दशोपचार या षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए. भगवान शिवजी को प्रिय धतूरा, बेलपत्र, मदार की माला, भांग, ऋतुफल, दूध, दही, चीनी, मिश्री, मिष्ठान्न आदि अर्पित करना चाहिए. भगवान शिवजी की महिमा, यश व गुणगान में शिव मंत्र, शिव स्तोत्र, शिव चालीसा, शिव सहस्रनाम एवं शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करना चाहिए.
श्रावण मास में शिवजी की प्रसन्नता के लिए किए जानेवाले व्रत