शिमला: अक्सर राजभवनों को आलीशान ठाठ का प्रतीक माना जाता है. यहां के वैभव से लोगों की आंखें खुली की खुली रह जाती हैं, लेकिन हिमाचल का राजभवन (Himachal Raj Bhavan) लीक से हटकर काम कर रहा है. यहां बचत के अनुशासन को प्राथमिकता दी जाती है. हर तरह से बचत का प्रयास किया जाता है. सालाना बिजली के बिल में तीन लाख रुपए की कमी लाई गई है. यहां के राजभवन में न तो विदेशी शराब की बोतलों से सजा बार है और न ही यहां मांसाहारी व्यंजन बनते हैं. मेहमानों को भी सादा भोजन दिया जाता है. राजभवन के प्रांगण में देशी नस्ल की गाय पलती है.
ये परंपराएं हिमाचल के पूर्व राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने शुरू की थीं. उस परंपरा को नए राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर (Governor Rajendra Vishwanath Arlekar) बाखूबी निभा रहे हैं. नए राज्यपाल ने एक कदम आगे बढ़कर पूरे राजभवन के कागजी कामों की नोटिंग हिंदी में करने के आदेश दिए हैं. साथ ही नए राज्यपाल पूरा समय अपने ऑफिस में बैठते हैं. हिमाचल के पर्यटन को ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए वे नई योजनाओं पर काम कर रहे हैं. चूंकि नए राज्यपाल गोवा से संबंध रखते हैं, लिहाजा वे पर्यटन की अहमियत भली प्रकार से जानते हैं. राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने राजभवन को सादगी की मिसाल बनाने के लिए निर्देश दिए हैं.
पांच साल से भी पहले की बात है. आचार्य देवव्रत हिमाचल के नए राज्यपाल बनकर आए. उन्होंने आते ही राजभवन में कई परिवर्तन किए. सबसे पहले तो उन्होंने राजभवन में मौजूद शराब के बार को हटाया. राजभवन में किसी भी पार्टी में शराब परोसने पर रोक लग गई और साथ ही पाकशाला में मांसाहार भी बंद हुआ. इससे सालाना लाखों रुपए की बचत हुई. आचार्य देवव्रत के बाद कलराज मिश्र आए, लेकिन वे लंबे समय तक इस पद पर नहीं रहे और फिर यहां के राज्यपाल बने बंडारू दत्तात्रेय. बंडारू दत्तात्रेय ने भी आचार्य देवव्रत की परंपराओं को आगे बढ़ाया. अब नए राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ भी हिमाचल राजभवन को नए रूप में निखारने में लग गए हैं.
हिमाचल राजभवन में पहले हर साल 15 नवंबर को सभी इमारतों में सेंट्रल हीटिंग सिस्टम (central heating system) ऑन हो जाता था. आचार्य देवव्रत ने विचार किया कि जब प्रदेश का आम नागरिक बिना सेंट्रल हीटिंग के रह सकता है तो खास यानी वीवीआईपी क्यों नहीं. बस, पांच साल पहले से ही यहां सेंट्रल हीटिंग सिस्टम बंद हो गया. पूरे राजभवन में बिना किसी कारण के एक भी बिजली का बल्ब जलता हुआ नहीं दिखता. इससे सालाना तीन लाख रुपए की बचत हुई है.