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Savan Putrada Ekadashi : आज है श्रावण पुत्रदा एकादशी, जानिए इसकी महत्ता व व्रत कथा - Savan Ekadashi

सावन के शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. इस व्रत को रखने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है, सुख-सौभाग्य और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है. आईए जानते हैं सावन पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा. Putrada Ekadashi . Savan Putrada Ekadashi . 27 august 2023

Putrada Ekadashi . Savan Putrada Ekadashi . 27 august 2023
श्रावण पुत्रदा एकादशी

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 27, 2023, 12:02 AM IST

श्रावण पुत्रदा एकादशी : सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीने में दो बार एकादशी का व्रत रखा जाता है, शुक्ल पक्ष की एकादशी और कृष्ण पक्ष की एकादशी. इस समय सावन का महीना चल रहा है, सावन के शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. जैसा कि नाम से स्पष्ट है इस एकादशी का व्रत पुत्र दायक माना जाता है. जो दंपति संतान सुख से वंचित हैं या संतान होते हुए भी संतान का सुख नहीं ले पा रहे हैं उन्हें सावन पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य ही रखना चाहिए. इस व्रत को रखने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है, संतान का सुख, सौभाग्य और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है. प्रत्येक एकादशी में व्रत कथा का भी महत्व होता है, 27 अगस्त 2023 सायंकाल में व्रत कथा पढ़ते हुए एकादशी व्रत की पूजा की जाती है. आईए जानते हैं श्रावण पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा

सावन पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
पुत्रदा एकादशी की कथा का संबंध द्वापर युग से है, द्वापर युग में माहिष्मती नाम का एक राज्य था. इस राज्य का शासन महीजित नाम का राजा था, जोकि बहुत ही शांतिप्रिय एवं धार्मिक प्रवृत्ति का था. एक बार राजा ने अपने मंत्रियों एवं परिचितों से कहा कि मैंने हमेशा न्याय और शांतिपूर्वक राज्य किया है. सभी को अपना मानकर उनके साथ न्यायोचित व्यवहार किया है फिर भी मुझे पुत्रसुख की प्राप्ति नहीं हुई है, जिससे मुझे अत्यंत दुख हो रहा है.

राजा की इस बात को सुनकर सभी मंत्री एवं प्रजा के प्रतिनिधि वन में ऋषि-तपस्वियों से राजा की संतानहीनता का कारण जानने के लिए गए. तब उन्हें वन में लोमस नाम के ऋषि मिले. मंत्रियों-जनप्रतिनिधियों ने लोमस ऋषि को राजा के दुख के बारे में बताया. तब लोमस ऋषि ने बताया कि राजा प्राचीन काल में एक धनहीन वैश्य थे. धनहीन होने के कारण राजा ने कई बुरे कर्म किए. एक बार राजा 2 दिन से भूखा-प्यासा होने के कारण जलाशय में पानी पीने गया, जहां पर एक गाय भी पानी पीने जा रही थी उसे वैश्य ने गाय को जल पीने से रोक दिया और स्वयं जल पीने लगा, जोकि अधर्म था. चूंकि वह वैश्य एकादशी के दिन भूखा-प्यासा था. इस पुण्य की वजह से वह इस जन्म में राजा हुआ लेकिन गाय को जल ना पीने देने से एक अधर्म का कार्य किया इस वजह से वह है इस जन्म में संतानहीन है.

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तब सभी मंत्रियों एवं प्रतिनिधियों ने लोमस महामुनि से राजा के इस पाप के प्रायश्चित के बारे में पूछा जिससे उन्हें संतान की प्राप्ति हो. तब लोमस ऋषि ने कहा कि आप सभी को रात्रि जागरण कर सावन एकादशी का व्रत करना चाहिए तथा अपना पुण्य राजा को समर्पित करना चाहिए, जिससे राजा की इस समस्या का समाधान होगा और उसे अवश्य ही संतान की प्राप्ति होगी. तब सभी जनों ने और स्वयं राजा ने रात्रि जागरण करते हुए श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत किया, जिसके प्रताप से राजा को एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई. इसलिए तब से मान्यता है कि पुत्ररत्न की चाह रखने वाले सभी व्यक्तियों को श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य ही करना चाहिए.

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