वाराणसी : उनकी उम्र महज 34 साल है लेकिन अब तक वह 188 बार रक्तदान कर चुके हैं. उनका मानना है कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण काम है, किसी के काम आना, किसी की जिंदगी बचाना. अगर यह सार्थक हुआ तो इससे बड़ा पुण्य कोई नहीं है. अपने इस ध्येय को लेक चलने वाले शख्स का नाम है सौरभ मौर्या. सौरभ 2007 से अब तक न जाने कितने लोगों की जिंदगियां बचा चुके हैं. सौरभ बनारस में साधना फाउंडेशन नाम से एक संस्था चलाते हैं, जो कि पूरे देश में काम करती है. 3700 से ज्यादा संस्थाओं से जुड़े सौरभ का कहना है कि देश भर में लगभग 7 लाख लोगों की टीम अब तक 25000 से ज्यादा लोगों की जिंदगी में बचा चुकी है. खास बात यह है कि सौरभ के संगठन में एक अलग विंग है, जिसे ब्लड कमांडो कहा जाता है. यह रक्तदान कर लोगों की जान बचाती है.
ऐसे मिली लोगों की मदद की प्रेरणाा
सौरभ ने ईटीवी भारत से बताया कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, आपको कहीं भी कभी भी ब्लड की जरूरत है तो सिर्फ हमारी हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करके मदद पा सकते हैं. हम निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करते हैं. बताते हैं कि 2007 में वह अपने दोस्त की दादी को सुंदरलाल अस्पताल में ब्लड देने के लिए गए थे. यह पहला मौका था जब वह ब्लड डोनेशन करने गए थे. उस दौरान उन्होंने थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के पिता को लोगों के आगे खून के लिए गिड़गिड़ाते देखा. यह देखकर उन्हें दुख हुआ. सोचा कि आखिर एक स्वस्थ व्यक्ति जब ब्लड दे सकता है तो इस तरह से लोगों को क्यों गिड़गिड़ाना पड़ता है.
दोस्तों के साथ मिलकर बनाया ब्लड कमांडो ग्रुप
सौरभ ने 2007 में अपने कुछ दोस्तों के साथ ब्लड कमांडो ग्रुप की शुरुआत की. इसका काम लोगों को ब्लड डोनेशन के लिए मदद पहुंचाना था. 2012 तक सब कुछ इसी तरह चलता रहा लेकिन फाइनेंशियल दिक्कतों की वजह से सौरभ ने एक संस्था बनाने का निर्णय लिया. 2012 में एक एनजीओ साधना फाउंडेशन नाम से बनवाया. इस एनजीओ के बनने के बाद कई बड़ी सामजिक संस्थाओं ने सौरभ से संपर्क किया और ब्लड डोनेशन कैंप के लिए उन्हें इनवाइट करने लगे. देखते ही देखते सैकड़ों सिस्टर कंसर्न संस्थाओं से जुड़कर सौरभ यह काम आगे बढ़ाने लगे. सौरभ कहते हैं, समाज में बदलाव जरूरी है. खून के बदले खून बहाना आसान है, लेकिन किसी को खून देकर उसकी जिंदगी बचाना कितना बड़ा पुण्य का काम है, यह उस परिवार से पूछिए जिनके चेहरों पर अपनों की जान बचने की खुशी होती है.
खून की कमी से न होने पाए किसी की मौत
बनारस और पूर्वांचल के अस्पतालों में खून की कमी के कारण होने वाली मौतों को रोकने के लिए सौरभ ने बड़ा अभियान शुरू किया. सौरभ का यह अभियान रंग लाया. बीच-बीच में सौरभ ने गड़बड़झाला कर रहे अस्पतालों के खिलाफ भी मुहिम को छेड़ सरकार तक बात पहुंचाई. जिस पर कई अस्पतालों पर कार्रवाई भी हुई. सौरभ बताते हैं कि देश का कोई भी हिस्सा हो, हमारे टीम मेंबर्स मदद के लिए जरूरतमंदों के साथ में खड़े होते हैं. शुरुआत में परिवार के लोगों ने भी काफी विरोध किया. यह भ्रम था कि बार-बार खून देने से कमजोरी आती है. इस भ्रम को भी तोड़ा और परिवार के लोगों को समझाया. 2014 में मेरे पिताजी को जब हार्ट अटैक आया और हम अहमदाबाद में उनके इलाज के लिए गए उस वक्त दो यूनिट ब्लड की जरूरत थी. जिसके लिए चार लोगों का होना आवश्यक था, लेकिन मौके पर 40 लोग जुट गए थे. जिसके बाद मेरे माता-पिता को यह बात समझ में आ गई कि बेटा कुछ अच्छा कर रहा है और परिवार वालों ने मेरा साथ देना शुरू कर दिया.