वाराणसी: शास्त्रों में बताया गया है कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि, जिस दिन दोपहर के समय होती है, उसी दिन भाई दूज का त्योहार मनाना चाहिए. इसी दिन यमराज, यमदूत और चित्रगुप्त की पूजा करनी चाहिए और इनके नाम से अर्घ्य और दीपदान भी करना चाहिए. लेकिन, अगर दोनों दिन दोपहर में द्वितीया तिथि हो, तब पहले दिन ही द्वितीया तिथि में भाई दूज का पर्व मनाना चाहिए. इस बार यह पर्व 27 अक्टूबर (bhai dooj 2022 date) को मनाया जाएगा.
ज्योतिषाचार्य आचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री के ने बताया कि यह पर्व बहन और भाई के प्रेम और सौहार्द के लिए जाना जाता है. इस दिन बहुत सी चीजों का ध्यान रखना चाहिए और बहनों को बिना आहार ग्रहण किए भाई के मस्तक पर तिलक लगाना चाहिए. भाई की लंबी उम्र की कामना के साथ ही उसे आशीर्वाद देने के लिए पूजा की थाल में पंचमेवा पान फल इत्यादि रख कर भाई को समर्पित करना चाहिए. भाई को भी बहन के दोनों चरणों को छूकर उसका आशीर्वाद लेना चाहिए. सबसे महत्वपूर्ण इस दिन भाई को अपनी बहन के घर जाकर तिलक लगवाने के साथ ही भोजन भी ग्रहण करना चाहिए.
भाई दूज का सर्वोत्तम मुहूर्त:आचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री ने बताया कि 27 तारीख को भाई दूज का शुभ मुहूर्त दोपहर 12:14 से 12:47 तक धनु लग्न में मान्य होगा. साथ में भाई दूज के दिन ययिजय योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का भी समागम होता है. इस दिन भाई के पूजन के लिए आयुष्मान योग भी मिल रहा है. जो भाई की उम्र के साथ भाई बहन के बीच माधुर्यता को बढ़ता है.
इन बातों का रखें ध्यान:भाई दूज के दिन तिलक करते समय भाई का मुंह उत्तर या उत्तर- पश्चिम में से किसी एक दिशा की ओर होना चाहिए. वहीं, बहन का मुख उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए. साथ ही, ऐसा भी कहते हैं कि भाइयों के तिलक करने से पहले बहनों को कुछ खाना नहीं चाहिए. इस दिन दोनों भाई और बहन ध्यान रखेंगे काला एवं नीला वस्त्र धारण ना करें. बहन अपने भाई को तामसिक भोजन(लहसुन और प्याज से युक्त भोजन) ना कराएं साथ ही बैगन एवं कद्दू का भी खाना निषेध है. इस दिन केवल मीठा भोजन किया जाए तो ज्यादा अच्छा रहेगा. इसके साथ बहने खास ध्यान रखे कि भाई से मिले उपहार का निरादर न करें. भाई दूज के दिन बहन-भाई एक -दूसरे से किसी भी तरह का झूठ नहीं बोलें.
भाई दूज की कथा:भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था. उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था. यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी. वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो. अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालते रहे. कार्तिक शुक्ल का दिन आया. यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उन्हें अपने घर आने के लिए वचनबद्ध किया. यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं. मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता.