हैदराबाद डेस्क :भारत का स्वतंत्रता संग्राम शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह की शौर्य गाथा और उनके सर्वोच्च बलिदान के जिक्र के बिना अधूरा है. आजादी के दीवाने इस युवा ने महज 23 वर्ष का आयु में अपने साथी सुखदेव और राजगुरू के साथ फांसी के फंदे को चूम लिया था. अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले इस महान क्रांतिकारी के मन में जालियांवाला बाग हत्याकांड का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा. उस समय उनकी उम्र केवल 12 साल की थी, तब वह जालियांवाला बाग से वहां कि मिट्टी लेकर आए थे.
भारत की स्वाधीनता और भगत सिंह के संबंध में इतिहासकार अमोलक सिंह (historian amolak singh on bhagat singh) ने कहा कि भगत सिंह का मानना था कि शरीर को मारा जा सकता है लेकिन विचारों को नहीं. विचार अमर हो जाते हैं. इसलिए, उन्होंने जनता के लिए साम्राज्यवाद के खिलाफ क्रांति की बात कही. उन्होंने साम्राज्यवाद को परिभाषित करते हुए कहा कि जब तक विदेशी ताकतें लोगों को लूट रही हैं, तब तक जीवन आरामदायक नहीं हो सकता. भगत सिंह ने क्रांति के बारे में बहुत कुछ लिखा था .
उन्होंने बताया कि 1928 में साइमन कमीशन का एक 7 सदस्यीय पैनल भारत में संवैधानिक सुधारों की समीक्षा करने के लिए भारत आया था. लेकिन इसमें एक भी भारतीय शामिल नहीं था. इसके विरोध में भगत सिंह और उनके सहयोगियों ने लाला लाजपत राय के नेतृत्व में लाहौर में साइमन कमीशन को काले झंडे दिखाए. इस पर पुलिस ने शांतिपूर्ण विरोध पर लाठीचार्ज किया. जिसकी वजह से लाला लाजपत राय शहीद हो गए. इस पर भारत नौजवान सभा और सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के युवाओं ने लाला जी की मृत्यु का बदला लेने का फैसला किया.