नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) में किसानों के मुद्दे (farmers issues) को जिंदा रखने और भाजपा के खिलाफ वोट करने की अपील के साथ किसान संगठनों का साझा मंच संयुक्त किसान मोर्चा लगातार राज्य में अभियान चला रहा है. किसान मोर्चा की सात सदस्यीय कमेटी उत्तर प्रदेश में अब तक साथ प्रमुख शहरों में बड़े प्रेस कांफ्रेंस कर चुकी है. दूसरी तरफ, जमीनी स्तर पर किसान संगठनों के कार्यकर्ता घर-घर जाकर भाजपा के विरोध में किसान मोर्चा द्वारा जारी अपील की पर्चियां बांट रहे हैं और नुक्कड़ सभाएं भी कर रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में कुल 57 छोटे-बड़े किसान संगठन संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा हैं. इनमें से ज्यादातर किसान संगठन पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आते हैं. किसान आंदोलन का ज्यादा प्रभाव भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही माना जाता है.
किसान नेता से ईटीवी भारत की बातचीत ईटीवी भारत ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में किसान मोर्चा के मिशन और उसके प्रभाव पर किसान नेता हन्नान मोल्ला से विशेष बातचीत की. हनन मोल्ला ने बताया कि चूंकि बड़े महपंचायत आयोजित करना संभव नहीं था. इसलिए वर्किंग कमेटी की बैठक में रणनीति में बदलाव किया गया है. कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर कार्य कर रहे हैं और मोर्चा का राष्ट्रीय नेतृत्व प्रमुख शहरों में बड़े प्रेस कांफ्रेंस कर अपना संदेश और अपील मतदाताओं तक पहुंचा रहे हैं.
अब तक गाजियाबाद, नोएडा, मेरठ, मुरादाबाद, लखीमपुर, कानपुर और लखनऊ में हुए प्रेस कांफ्रेंस में राकेश टिकैत, हनन मोल्ला, योगेन्द्र यादव, शिव कुमार कक्का, डॉ दर्शानपाल जैसे बड़े नेता शामिल रहे हैं. आने वाले दिनों में गोरखपुर, बनारस और प्रयागराज में इस तरह के प्रेस कांफ्रेंस आयोजित होंगे. उद्देश्य केवल भाजपा को नुक्सान पहुंचाना है.
हनन मोल्ला ने बताया कि किसान आंदोलन को स्थगित करने के दौरान सरकार ने मांगों को पूरा करने का लिखित रूप से वादा किया था, लेकिन अब वह अपने वादे से मुकर रही है, जिसे लेकर किसानों में रोष है. न एमएसपी पर कमेटी का गठन हुआ, न किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने की प्रक्रिया शुरू हुई और न ही मृत किसानों के परिवारों को मुआवजा मिला. इसके अलावा सबसे बड़े मुद्दे के रूप में लखीमपुर खीरी की घटना को जनता के बीच उठाया जा रहा है, जिसमें गृह राज्यमंत्री के बेटे अशीष मिश्रा मुख्य आरोपी हैं. आशीष मिश्रा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय से जमानत भी मिल चुकी है, जिसका संयुक्त किसान मोर्चा ने कड़ा विरोध किया है.
किसान नेता ने कहा कि अदालत के निर्णय पर वह टिप्पणी नहीं कर रहे हैं, लेकिन जिस तरह से तथ्यों को पेश कराया जाना था, वैसे पेश नहीं किया गया. इसकी जिम्मेदारी सरकार और प्रशासन की थी जो जाहिर तौर पर गृह राज्यमंत्री और भाजपा के प्रभाव में काम कर रही है. अब आम लोगों के बीच भी इस बात की चर्चा हो रही है कि हत्या के आरोप होने के बावजूद किसी को इतनी जल्दी जमानत कैसे मिल सकती है.
संयुक्त किसान मोर्चा न केवल इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय जाने की तैयारी कर रहा है, बल्कि अपने नुक्कड़ सभाओं और प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से लोगों के बीच भी इस मुद्दे को उठा रहा है. हनन मोल्ला की मानें तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को वह भारी नुक्सान पहुंचाने में सफल रहे हैं. अब बारी बुंदेलखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश की है.
हालांकि, पूर्वी उत्तर प्रदेश में किसान संगठनों की संख्या भी कम है और आंदोलन का प्रभाव भी कम बताया जाता है, लेकिन किसान मोर्चा के नेता ऐसा नहीं मानते हैं. हनन मोल्ला ने बताया कि बुंदेलखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के 20 से 25 किसान संगठन संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा हैं. वह सक्रियता से भाजपा के खिलाफ चुनावों में काम कर रहे हैं. एमएसपी, बिजली दर आदि उनके लिए भी बड़े मुद्दे हैं.