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UP: संस्कृत व्याकरण के विद्वान पद्मश्री रामयत्न शुक्ल का वाराणसी में निधन - Sanskrit Grammar Scholars in Varanasi

काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष और पद्मश्री से सम्मानित 90 वर्षीय प्रोफेसर रामयत्न शुक्ल(Professor Ramyatna Shukla) का वाराणसी में निधन हो गया.

पद्मश्री रामयत्न शुक्ल का वाराणसी में निधन
पद्मश्री रामयत्न शुक्ल का वाराणसी में निधन

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Published : Sep 20, 2022, 10:20 PM IST

वाराणसीः काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष और पद्मश्री से सम्मानित 90 वर्षीय प्रोफेसर रामयत्न शुक्ल(Professor Ramyatna Shukla) मंगलवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. 2 दिन पहले उन्हें ब्रेन हेमरेज के बाद एक निजी अस्पताल में भर्ती किया गया था, जहां उन्होंने मंगलवार शाम 6.02 मिनट पर अंतिम सांस ली. उनके निधन की सूचना मिलने के बाद वाराणसी समेत पूरे उत्तर प्रदेश में शोक की लहर दौड़ गई है. संस्कृत और वेद वेदांग के मर्मज्ञ प्रोफेसर रामयत्न शुक्ल को 2021 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया था.

वाराणसी के शंकुलधारा पोखरा स्थित आवास पर रहकर संस्कृत व्याकरण के सूत्रों और टिप्पणी पर व्याख्यान देते हुए अपने शिष्यों को जीवन में आगे बढ़ने का मंत्र देते थे. प्रोफेसर शुक्ल का जन्म भदोही जिले के एक गांव में 1932 ई. में हुआ था. पिता निरंजन शुक्ल भी संस्कृत के बड़े विद्वान थे. प्रोफेसर शुक्ल ने धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी(Dharma Samrat Swami Karpatri) एवं स्वामी चैतन्य भारती (Swami Chaitanya Bharti) से वेदांत शास्त्र, हरिराम शुक्ल (Hariram Shukla) से मीमांस और पंडित रामचंद्र शास्त्री से दर्शन और योग शास्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी.

प्रोफेसर शुक्ल काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म संकाय विभाग में आचार्य पद पर कार्य किया. संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय(Sampurnanand Sanskrit University) में भी व्याकरण विभाग के आचार्य और अध्यक्ष पद पर वह रह चुके थे. संस्कृत की सेवा और वेद- वेदांग और व्याकरण को लेकर उनकी जानकारी की वजह से उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया था. उन्होंने अष्टाध्याई की वीडियो रिकॉर्डिंग करवा कर नई पीढ़ी को संस्कृत का ध्यान देने का एक अति उत्तम कार्य किया था. 2015 में संस्कृत भाषा का सम्मान विश्वभारती भी उन्हें प्रदान किया गया था. वे संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए युवा स्नातकों को निशुल्क संस्कृत की शिक्षा भी देते थे. प्रोफेसर शुक्ल की विद्वता और उनके संस्कृत व्याकरण के ज्ञान की वजह से उन्हें बड़े-बड़े राजनेताओं समेत देश के प्रतिष्ठित व अन्य संत बहुत ही सम्मान देते थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन समेत कई बड़े राजनेताओं ने उनसे मुलाकात कर उन्हें नमन किया था.

सन 1999 में विश्व भारती सम्मान सन 2015, पद्मश्री सन 2021मे प्राप्त हुआ तथा संस्कृत वाड़मय के अनेक पुरस्कारों से सम्मानित भारत के अनेक धर्माचार्यो के शिक्षा गुरु तथा भारत ही नहीं विश्व में संस्कृत भाषा तथा पारम्परिक शास्त्रों के संरक्षण संवर्धन में योगदान देने वाले आचार्य के न रहने पर अपूर्णीय क्षति हुई. उनके दो पुत्र तथा दो पुत्रियां हैं. बड़े पुत्र डॉ. रामाश्रय शुक्ल, द्वितीय पुत्र भोला नाथ शुक्ल हैं.

काशी विद्वतपरिषद् के महामंत्री प्रोफेसर रामनारायण द्विवेदी ने कहा कि संस्कृत परम्परा की कड़ी टूट गई देश भर के संस्कृत के विद्वानों ने शोक व्यक्त किया. शहर दक्षिणी के विधायक व पूर्व मंत्री डॉ. नीलकंठ तिवारी ने इस संस्कृत व्याकरण व काशी की विद्वत परम्परा की अपूरणीय क्षति बताया है. सभी संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपतियों ने शोक व्यक्त किया तथा देश भर के धर्माचार्यों तथा शंकराचार्यों के शोक संदेश आ रहें हैं.

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