प्रयागराज :देववाणी संस्कृत संस्कृत को भाषाओं की जननी माना जाता है, लेकिन यहां पठन-पाठन के स्तर पर ये अपनी आखरी सांसें ले रही है. संस्कृत शिक्षा के लिए खोले गए महाविद्यालयों में कर्मचारी लगभग न के बराबर हैं. हैरानी तो ये है कि इनकी भर्ती भी नहीं की जा रही है. इसके चलते किसी महाविद्यालय को क्लर्क तो किसी को एक शिक्षक बतौर शिक्षक, क्लर्क और प्रभारी प्राचार्य तीनों की भूमिका में चला रहे हैं.
शिक्षकों का आरोप है कि संस्कृत शिक्षा को लेकर अध्यापकों की भर्ती की प्रक्रिया 2017 में शुरू भी हुई, लेकिन इस दौरान संस्कृति की वाहक कही जाने वाली प्रदेश की भाजपा सरकार ने इस पर रोक लगा दी. इसे लेकर अदालत तक का दरवाजा खटखटाया गया लेकिन मामला सिफर ही रहा.
खासकर प्रयागराज की बात करें तो यहां सरकार से सहायता प्राप्त 42 संस्कृत महाविद्यालय ऐसे हैं जहां कई सालों से शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है. बीते बीस सालों में जो शिक्षक थे, वो भी रिटायर हो चुके हैं. ऐसे में कई महाविद्यालयों में ऐसे हालात हैं कि इनमें एक भी शिक्षक नहीं रह गया है. कुछ में एक ही शिक्षक पढ़ाने के साथ ही क्लर्क और प्रिंसिपल का काम भी देख रहा है.
गौरतलब है कि देववाणी संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए उन्नीसवीं व बीसवीं सदी में उत्तर प्रदेश में अनेक संस्कृत महाविद्यालयों की स्थापना की गयी. बाद में इन्हें संपूर्णानंद संस्कृत विश्विद्यालय से संबद्ध कर दिया गया था. लेकिन आज वही महाविद्यालय शिक्षक व अन्य स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं.
इससे लगातार संस्कृत सीखने की ललक रखने वाले छात्रों की संख्या में कमी आ रही है. शिक्षकों व अन्य सुविधाओं के अभाव में चलते इन महाविद्यालयों में अब सिर्फ एक दो या तीन स्टाफ ही बचे हैं.
जिले के 42 महाविद्यालयों में से 16 में एक भी शिक्षक नहीं हैं जबकि बचे हुए महाविद्यालयों में एक शिक्षक और एक चपरासी के बल पर ही काम किया जा रहा है. लेकिन देववाणी संस्कृत की शिक्षा देने वाले इन महाविद्यालयों के हालात बेहद खराब हैं.
इन महाविद्यालयों में बीते 20 सालों से शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो रही है. इस दौरान कुछ शिक्षकों की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति जरूर हुई है. बहरहाल इन महाविद्यालयों की दुर्दशा देखकर आप भी दंग रह जाएंगे.
क्लर्क शिक्षक के साथ प्रधानाचार्य का काम भी
बहादुरगंज इलाके में स्थित सर्वाय आदर्श संस्कृत महाविद्यालय 120 साल पुराना है. सरकार की उपेक्षा से ये बदहाल है. यहां प्रथमा यानी आठवीं स्तर से लेकर आचार्य परास्नातक कक्षा तक की पढ़ाई करवायी जा रही है. लेकिन दो दशक पहले जहां सैकड़ों छात्र पढ़ाई करते थे, आज महज 70 छात्र ही बचे हैं. यहां शिक्षा के बेहतर इंतजाम नहीं हैं. यहां सिर्फ एक क्लर्क और एक चपरासी ही बचे हैं.
क्लर्क के जिम्मे ही पढ़ाने के साथ ही प्रिंसिपल की भी भूमिका है. उन्होंने बताया कि जो बच्चे बचे हैं, उन्हें देववाणी का बेहतर ज्ञान देने के लिए वह पुराने छात्रों से मदद लेते हैं. इसके साथ ही वो खुद भी आने वाले छात्रों को जितना संभव होता है, पढ़ाते हैं.
सिर्फ एक महिला शिक्षिका के सहारे महाविद्यालय