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SC On Same-Sex Marriage: भारत में समलैंगिक शादी को मान्यता देने से SC का इनकार, सरकारों को दिये कई निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने मई में समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने की मांग वाली याचिकाओं पर 10 दिन दिन तक सुनवाई की थी. शीर्ष कोर्ट आज इन याचिकाओं पर फैसला सुनाया. SC to pronounce verdict, Supreme Court, same-sex marriage, verdict on same sex marriage.

SC On Same sex Marriage
प्रतिकात्मक तस्वीर

By ANI

Published : Oct 17, 2023, 7:11 AM IST

Updated : Oct 17, 2023, 9:22 PM IST

फैसला सुनाते हुए सीजेआई.

नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बहुमत के आधार पर फैसला सुनाया. तीन दो के आधार पर विभाजित फैसले में एससी ने कहा कि एलजीबीटीक्यूआईए प्लस जोड़ों के लिए विवाह का कोई अयोग्य अधिकार नहीं है और इसे सिर्फ कानून बना कर ही कानूनी दर्जा प्रदान किया जा सकता है.

SC के फैसले पर वकील की राय.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट्ट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने इस साल 11 मई को सुरक्षित रखा फैसला सुनाया. हालांकि, अदालत ने कहा कि फैसले से समलैंगिक व्यक्तियों के रिश्ते में प्रवेश करने के अधिकार पर रोक नहीं लगेगी. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि कम वर्गीकरण के आधार पर विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) को चुनौती देने का कोई औचित्य नहीं है.

याचिकाकर्ताओं की प्रतिक्रिया.
SC के फैसले पर वकील की राय.

न्यायमूर्ति रवींद्र भट्ट, न्यायमूर्ति नरसिम्हा और न्यायमूर्ति हिमा कोहली इस फैसले से सहमत थे जबकि सीजेआई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने अलग-अलग रुख अपनाया. फैसले की शुरुआत में पीठ ने स्पष्ट किया कि इस मामले में चार फैसले हैं. एक सीजेआई चंद्रचूड़ का, दूसरा जस्टिस संजय किशन कौल का, तीसरा जस्टिस रवींद्र भट का और आखिरी जस्टिस नरसिम्हा का. अपने फैसले में सीजेआई ने निर्देश दिया कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि क्वीर समुदाय के खिलाफ कोई भेदभाव न हो.

SC के फैसले पर वकील की राय.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चार फैसले हैं. सीजेआई का कहना है कि फैसलों में कुछ हद तक सहमति और कुछ हद तक असहमति है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालत ने न्यायिक समीक्षा और शक्तियों के पृथक्करण के मुद्दे से निपटा है.

SC के फैसले पर वकील की राय.

सीजेआई ने अपने आदेश में कहा कि केंद्र सरकार समलैंगिक संघों में व्यक्तियों के अधिकारों और हकों को तय करने के लिए एक समिति का गठन करेगी. यह समिति समलैंगिक जोड़ों को राशन कार्डों में 'परिवार' के रूप में शामिल करने, समलैंगिक जोड़ों को संयुक्त बैंक खातों के लिए नामांकन करने में सक्षम बनाने, पेंशन से मिलने वाले अधिकारों ग्रेच्युटी आदि पर विचार करेगी. समिति की रिपोर्ट को केंद्र सरकार के स्तर पर देखा जाएगा.

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि केंद्र सरकार, राज्य सरकार और केंद्र शासित प्रदेश समलैंगिक समुदाय के संघ में प्रवेश के अधिकार के खिलाफ भेदभाव नहीं करेंगे.

शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का अर्थ है कि राज्य के तीन अंगों में से प्रत्येक अलग-अलग कार्य करता है. कोई भी शाखा किसी अन्य के समान कार्य नहीं कर सकती है. भारत संघ ने सुझाव दिया कि यह न्यायालय शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करेगा यदि वह इस मामले में कुछ निर्धारित करता है. हालांकि, शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत न्यायिक समीक्षा की शक्ति पर रोक नहीं लगाता है.

संविधान की मांग है कि यह न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करे. शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत इस न्यायालय की ओर से निर्देश जारी करने के रास्ते में नहीं आता है. मौलिक अधिकारों की सुरक्षा.

सीजेआई चंद्रचूड़ का कहना है कि समलैंगिकता एक शहरी अवधारणा नहीं है या समाज के उच्च वर्गों तक ही सीमित नहीं है... यह किसी की जाति या वर्ग या सामाजिक-आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना हो सकती है.

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह कहना गलत है कि विवाह एक स्थिर और अपरिवर्तनीय संस्था है. उन्होंने कहा कि अगर विशेष विवाह अधिनियम को खत्म कर दिया गया तो यह देश को आजादी से पहले के युग में ले जाएगा. विशेष विवाह अधिनियम की व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है या नहीं, यह संसद को तय करना है. सीजेआई ने कहा, इस न्यायालय को विधायी क्षेत्र में प्रवेश न करने के प्रति सावधान रहना चाहिए.

सीजेआई का कहना है कि समानता का सिद्धांत मांग करता है कि व्यक्तियों के साथ उनके यौन रुझान के आधार पर भेदभाव न किया जाए. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसी कोई सामग्री नहीं है जो यह साबित करती हो कि केवल एक विवाहित विषमलैंगिक जोड़ा ही बच्चे को स्थिरता प्रदान कर सकता है. सीजेआई ने कहा कि विषमलैंगिक जोड़ों को भौतिक लाभ/सेवाएं देना और समलैंगिक जोड़ों को इससे वंचित करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा. CJI ने कहा कि समलैंगिक जोड़ों को गोद लेने का अधिकार नहीं देने वाला CARA सर्कुलर संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है.

सीजेआई ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि समलैंगिक समुदाय के लिए वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच में कोई भेदभाव न हो. उन्होंने सरकार को समलैंगिक अधिकारों के बारे में जनता को जागरूक करने का निर्देश दिया. सरकार समलैंगिक समुदाय के लिए हॉटलाइन बनाएगी, हिंसा का सामना करने वाले समलैंगिक जोड़ों के लिए सुरक्षित घर 'गरिमा गृह' बनाएगी और यह सुनिश्चित करेगी कि अंतर-लिंग वाले बच्चों को ऑपरेशन के लिए मजबूर न किया जाए.

सीजेआई ने कहा कि यौन अभिविन्यास के आधार पर संघ में प्रवेश करने का अधिकार प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है. विषमलैंगिक संबंधों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को व्यक्तिगत कानूनों सहित मौजूदा कानूनों के तहत शादी करने का अधिकार है. समलैंगिक जोड़ों सहित अविवाहित जोड़े संयुक्त रूप से एक बच्चे को गोद ले सकते हैं ...

इस मामले में अपने फैसले में कहा कि न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने कहा कि गैर-विषमलैंगिक संघ संविधान के तहत सुरक्षा के हकदार हैं. जस्टिस कौल ने कहा कि समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता विवाह समानता की दिशा में एक कदम है. हालांकि, शादी अंत नहीं है. आइए हम स्वायत्तता बनाए रखें क्योंकि इससे दूसरों के अधिकारों का हनन नहीं होता है.

जस्टिस रवींद्र भट्ट का कहना है कि वह विशेष विवाह अधिनियम पर सीजेआई की ओर से जारी निर्देशों से सहमत नहीं हैं. न्यायमूर्ति रवींद्र भट ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि शादी करने का कोई अधिकार अयोग्य नहीं हो सकता है. जिसे मौलिक अधिकार माना जाना चाहिए. हालांकि हम सहमत हैं कि रिश्ते का अधिकार है, हम स्पष्ट रूप से मानते हैं कि यह अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है. यह इसमें एक साथी चुनने और उनके साथ शारीरिक अंतरंगता का आनंद लेने का अधिकार शामिल है, जिसमें निजता, स्वायत्तता आदि का अधिकार भी शामिल है और समाज से बिना किसी बाधा के इस अधिकार का आनंद लेना चाहिए. और जब इसमें खतरा हो तो राज्य को इसकी रक्षा करनी होगी. इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है.

उन्होंने कहा कि न्यायालय राज्य को किसी भी दायित्व के तहत नहीं डाल सकता है खासतौर से जब गैर-विषमलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह का कोई संवैधानिक अधिकार या संघों की कानूनी मान्यता नहीं है. न्यायमूर्ति भट ने कहा कि वह समलैंगिक जोड़ों के बच्चा गोद लेने के अधिकार पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ से असहमत हैं.

उन्होंने इस मामले पर कुछ चिंताएं भी जताई. न्यायमूर्ति भट ने कहा कि समलैंगिक लोगों को नागरिक संघ का कानूनी दर्जा प्रदान करना केवल अधिनियमित कानून के माध्यम से ही हो सकता है, लेकिन ये निष्कर्ष समलैंगिक व्यक्तियों के रिश्तों में प्रवेश करने के अधिकार को नहीं रोकेंगे.

संविधान पीठ ने 18 अप्रैल को मामले पर सुनवाई शुरू की और करीब 10 दिन तक सुनवाई चली. सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली विभिन्न याचिकाओं पर विचार कर रहा है. पहले दायर की गई याचिकाओं में से एक में LGBTQIA+ समुदाय के सदस्यों को अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति से शादी करने की अनुमति देने वाले कानूनी ढांचे की अनुपस्थिति का मुद्दा उठाया था.

अदालत ने स्पष्ट किया है कि वह विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत इस मुद्दे से निपटेगी और इस पहलू पर विभिन्न धर्मों के पर्सनल लॉ को नहीं छुएगी. एक याचिका के अनुसार, जोड़े ने अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति से शादी करने के लिए एलजीबीटीक्यू+ व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों को लागू करने की मांग की. इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने एक-दूसरे से शादी करने के अपने मौलिक अधिकार का दावा किया. इस न्यायालय से उन्हें ऐसा करने की अनुमति देने और सक्षम बनाने के लिए उचित निर्देश देने की प्रार्थना की.

याचिका का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और सौरभ कृपाल ने किया. केंद्र सरकार ने याचिका का विरोध किया है और कहा है कि इस मुद्दे पर कोर्ट नहीं बल्कि संसद को विचार करना चाहिए. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि कानूनों की पूरी संरचना बच्चे के कल्याण को सर्वोपरि रखने के परिप्रेक्ष्य से है और गोद लेना विषमलैंगिक जोड़ों के परिवारों में बायोलॉजिकल बर्थ का विकल्प नहीं है.

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केंद्र ने 18 अप्रैल को राज्यों को एक पत्र जारी कर समलैंगिक विवाह से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय देने को कहा था. असम, आंध्र प्रदेश और राजस्थान राज्यों ने देश में समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता का विरोध किया है.

Last Updated : Oct 17, 2023, 9:22 PM IST

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