हैदराबाद :अफगानिस्तान में तालिबान तेजी से शहरों व सरकारी प्रतिष्ठानों पर कब्जा जमाता जा रहा है. शुक्रवार को तालिबान ने दावा किया कि उसने सलमा डैम पर भी कब्जा कर लिया है जो कई मायनों में चौंकाने वाला है. दरअसल, सलमा डैम भारत व अफगानिस्तान की दोस्ती का प्रतीक भी माना जाता है.
वर्तमान में अफगानिस्तान के ज्यादातर हिस्से तालिबान के कब्जे में हैं और अब राजधानी काबुल से सिर्फ कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर हैं. इस बीच तालिबान ने नया दावा किया है कि उसने सलमा डैम पर भी कब्जा जमा लिया है. अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में आने वाले सलमा डैम को भारत-अफगान फ्रेंडशिप डैम के रूप में जाना जाता है. तालिबान के प्रवक्ता ने इस डैम पर कब्जा करने का दावा करके दुनिया को हैरत में डाल दिया है.
वहीं अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय प्रवक्ता फवाद अमन ने बताया था कि तालिबान के आतंकियों ने सलमा डैम पर हमला करने का प्रयास किया. उन्होंने ट्वीट किया कि तालिबान का सलमा डैम पर किया गया हमला विफल रहा है. बीती रात तालिबान ने हेरात प्रांत में हमला करके सलमा डैम को धवस्त करने की कोशिश की, लेकिन काउंटर अटैक में बड़ी संख्या में तालिबानियों को नुकसान पहुंचा है.
ब्रिटेन के गढ़ पर भी तालिबानी कब्जा
अफगानिस्तान के जिस दक्षिणी सूबे हेलमंद को गत 20 साल में अधिकतर समय तालिबान से बचाने की ब्रिटिश सेना कोशिश करती रही, उसपर तालिबान ने कब्जा कर लिया है. हेलमंद की राजधानी लश्कर गाह पर तालिबान के कब्जे की शुक्रवार को हुई पुष्टि की गूंज ब्रिटेन में सुनाई दी क्योंकि अमेरिका और नाटो गठबंधन के साथ अफगानिस्तान में लड़ते हुए जिन 457 ब्रिटिश सैनिकों की मौत हुई थी उनमें अधिकतर की जान हेलमंद प्रांत में ही गई थी. वर्ष 2006 से 2014 तक हेलमंद का कैम्प बैस्टन कॉम्प्लेक्स ब्रिटिश सैन्य अभियान का मुख्यालय रहा.
तालिबान का अफगानिस्तान के दो तिहाई हिस्से पर कब्जा हो गया है और सवाल उठ रहे हैं कि क्यों नहीं ब्रिटिश सैनिक हेलमंद में अमेरिकी सैनिकों की 11 सितंबर तक वापसी की योजना तक वहां रहे. गौरतलब है कि गठबंधन बलों के पुनर्गठन के तहत ब्रिटेन ने वर्ष 2006 में अपने सैनिकों को हेलमंद भेजा था. शुरुआत में उनका कार्य स्थिरता और पुनर्निर्माण परियोजनाओं को सुरक्षा प्रदान करना था लेकिन जल्द ही ब्रिटिश सैनिक भी सैन्य अभियान में शामिल हो गए. हेलमंद का कैम्प बैस्टन ब्रिटिश ऑपरेशन हैरिक का मुख्यालय बना जहां पर करीब 9,500 ब्रिटिश सैनिक तैनात थे.
क्या बाइडेन ने की गलती
ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी की पूर्ववर्ती सरकार में रक्षा मंत्री रहे और अफगानिस्तान में बतौर अपनी सेवा दे चुके जॉनी मर्सर ने कहा कि बाइडेन ने बड़ी गलती की है लेकिन ब्रिटेन को उनका अनुकरण नहीं करना चाहिए था. अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल में नाटो के अन्य देशों के साथ सहयोग जुटाना चाहिए था. मर्सर ने बीबीसी से कहा कि यह विचार कि हम एकतरफा तरीके से कदम नहीं उठा सकते थे और अफगान सुरक्षा बलों का समर्थन नहीं कर सकते थे, सही नहीं है. अफगानिस्तान की सुरक्षा को समर्थन करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी और इसकी वजह से कई लोगों की जान जाएगी. यह बहुत अपमानजनक है.
ब्रिटिश रक्षामंत्री ने जताई चिंता
ब्रिटेन के रक्षामंत्री बेल वालेस ने भी अफगानिस्तान की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है लेकिन कहा कि सरकार के पास अमेरिका का अनुकरण करने के अलावा कोई चारा नहीं था. वालेस ने दावा किया कि अफगानिस्तान में मौजूद चार हजार ब्रिटिश नागरिकों को लाने में मदद के लिए करीब छह हजार सैनिकों को भेजने का फैसला अफरा-तफरी में तत्काल नहीं लिया गया बल्कि इसकी योजना महीनों पहले बनाई गई थी.