नई दिल्ली: यूक्रेन के नागरिक शुक्रवार को दिल्ली में रूस-यूक्रेन संघर्ष की पहली वर्षगांठ मनाने के लिए यहां यूक्रेन दूतावास में एकत्र हुए. आज से ठीक एक साल पहले यूक्रेन पर रूस ने आक्रमण किया था. यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यूरोप में अब तक का सबसे बड़ा युद्ध है, जिसके कारण भारी तबाही हुई, लोगों की जानें गईं, आर्थिक नुकसान होने के साथ ही वैश्विक ऊर्जा संकट पैदा हुआ है. युद्ध के बाद लगभग 80 लाख यूक्रेनियन भाग गए. युद्ध के दुष्परिणाम न केवल यूरोप में देखे जा रहे हैं बल्कि भू-राजनीति, ऊर्जा या अर्थशास्त्र के मामले में युद्ध के परिणामों को पूरी दुनिया ने भुगता है (One Year Of Russia Ukraine War).
19 साल से भारत में रह रही यूक्रेन की रहने वाली तेत्याना मलिक (Tetyana Malik) ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि 'अगर हम यूक्रेन और रूस के इतिहास में वापस जाएं, तो इसकी शुरुआत कई सदियों पहले हुई थी. रूस यूक्रेनी क्षेत्र को नियंत्रित करना चाहता था क्योंकि कीव के बिना उनके पास इतिहास नहीं है.'
तेत्याना ने कहा, 'मैं राजनीति के खेल के बारे में बहुत अच्छी तरह से नहीं जानती लेकिन पिछले 10 से अधिक वर्षों में यूक्रेन ने यूरोप की ओर बढ़ना शुरू कर दिया क्योंकि रूस की संस्कृति की तुलना में यूरोप हमारे अधिक निकट है. युद्ध ने दिखाया है कि आजादी के चाहने वाले आजादी के बिना नहीं रह सकते और पिछले साल 24 फरवरी को जो हुआ वह यह है कि 'हम अपनी आजादी के लिए लड़ने लगे'.
उन्होंने कहा कि 'यूक्रेनी लोगों के लिए कोई बातचीत नहीं है. यहां तक कि अगर सरकार बातचीत शुरू करती है, तब भी हम लड़ते रहेंगे क्योंकि जब तक रूस आत्मसमर्पण नहीं करता है या सैनिकों को स्थानांतरित नहीं करता है, बातचीत करने और रूसियों के साथ शांति का रास्ता खोजने का कोई अन्य बिंदु नहीं है. क्योंकि वे शांति नहीं देखते हैं. वे (रूसी) फिर से शुरुआत करने के लिए ब्रेक ले सकते हैं. रूस दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनना चाहता था लेकिन अब हम देख रहे हैं कि ऐसा नहीं है.'