नई दिल्ली :जाम्बिया, मालदीव, हंगरी, स्वीडन में भारतीय मिशनों में विभिन्न पदों पर कार्य करने वाले पूर्व राजदूत जितेंद्र त्रिपाठी (Former Ambassador Jitendra Tripathi ) का मानना है कि जयशंकर की तेहरान के माध्यम से मास्को की यात्रा पाकिस्तान के कदमों को रोकने के लिए भारत का एक महत्वपूर्ण प्रयास है.
विदेश मंत्री (External Affairs Minister) डॉ एस जयशंकर (Dr S Jaishankar) बुधवार को तेहरान के रास्ते रूस के लिए रवाना हुए, जहां अफगानिस्ता घटनाक्रम सबसे अहम एजेंडा थे.
उल्लेखनीय है कि जयशंकर तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर रूस जाते समय तेहरान में रुके थे. अपने ईंधन भरने के ठहराव के दौरान, उन्होंने ईरान के विदेश मंत्री (Iran Foreign Minister ) जवाद जरीफ (Javad Zarif) और निर्वाचित राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी (Ebrahim Raisi) सहित तेहरान में सरकार से मुलाकात की.
उन्होंने कहा कि जयशंकर का तेहरान में रुकना महज एक इत्तेफाक नहीं है. आज ही ईरान ने तालिबान और अफगानिस्तान सरकार (Afghanistan government ) के बीच सहमती के लिए एक इंट्रा-अफगान बैठक (Intra-Afghan meeting) की मेजबानी की है. इसलिए इस समय जयशंकर की तेहरान यात्रा और ईरान के विदेश मंत्री के साथ बैठक बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ईरान हमारा पारंपरिक सहयोगी रहा है.
विदेशमंत्री तेहरान में ऐसे समय में रुके हैं, जब अफगानिस्तान में स्थिति अस्थिर है क्योंकि तालिबान और अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा बल (Afghan National Security Forces) अमेरिकी सेना की वापसी के बाद लड़ाई में लगे हुए हैं.
जब तालिबान अपने चरम पर था, तब रूस और ईरान (Russia and Iran) तालिबान विरोधी थे और चाहते थे कि तालिबान शासन समाप्त हो जाए. यह मुजाहिदीन थे, जिसने अफगानिस्तान से रूस को विस्थापित किया और तालिबान रूस विरोधी लहर के चलते सत्ता में आया.
त्रिपाठी ने ईटीवी भारत को बताया कि इसके अलावा रूस ने अफगानिस्तान में दो युद्धरत गुटों के बीच सहमत होने के लिए एक बैठक की भी मेजबानी की है. अफगानिस्तान में शांति और सतत विकास हासिल करने के लिए रूस और ईरान (Russia and Iran) बहुत महत्वपूर्ण कारक हैं. इसलिए भारत अफगानिस्तान के स्थिरीकरण (stabilization) के लिए ईरान और रूस से संपर्क करने की कोशिश कर रहा है.
गौरतलब है कि भारत, ईरान और रूस तालिबान विरोधी गठबंधन (anti-Taliban alliance ) के मुख्य समर्थक थे जब 1996 और 2001 के बीच कट्टरपंथी सुन्नी समूह काबुल को नियंत्रित कर रहे थे. त्रिपाठी ने आगे बताया, 'इस क्षेत्र में सत्ता की गतिशीलता ऐसी है कि तुर्की ने पाकिस्तान और चीन का पक्ष लिया है और ग्रीस के खिलाफ है.'