नई दिल्ली : डॉलर के मुकाबले रुपये लगातार कमजोर हो रहा है. सोमवार को रुपया रेकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया था. एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 77.5 रुपये हो गई थी. हालांकि ऑल टाइम लो होने के बाद मंगलवार को रुपये में थोड़ी मजबूती आई और यह 77.33 पर पहुंच गया. एक्सपर्ट के मुताबिक, रुपये में यह सुधार टिकाऊ नहीं मानी जा रही है. भारतीय रूपये का आधिकारिक अवमूल्यन नहीं हुआ है बल्कि डिमांड बढ़ने से अमेरिकी डॉलर की कीमत बढ़ी है, जिसके कारण विनिमय दर में यह अंतर आया है. तेल आयात पर खर्च का लगातार बढ़ने, भारी मात्रा में सोने और विलासिता वाले सामान के आयात बढ़ने के कारण डॉलर मजबूत हुआ है. इसके अलावा अमेरिका के फेडरल रिजर्व की ओर से महंगाई पर काबू करने के लिए ब्याज दर में बढ़ोतरी की संभावना से डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है. निवेशकों का यूएस के बॉन्ड में भी भरोसा बढ़ा है, इसका फायदा डॉलर को मिल रहा है.
एक्सपर्टस का मानना है कि अभी रुपये की कीमत में गिरावट बनी रहेगी, कमजोर एशियाई करेंसीज, महंगाई और घटती विदेशी मुद्रा का असर रुपये पर दिखेगा. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण ग्लोबल मार्केट में अनिश्चितता और भारतीय रिजर्व बैंक के सीमित हस्तक्षेप के कारण के कारण आने वाले समय में एक डॉलर का मूल्य 78 रुपये तक पहुंच सकता है. ऐसा नहीं है कि डॉलर के मुकाबले सिर्फ भारतीय रुपये की कीमत गिरी है, एशिया के कई देशों की करेंसी भी कमजोर हुई है. ग्लोबल मार्केट में ब्याज दरों में बढ़ोतरी और मंदी की चिंता हावी हो गई है. मुद्रास्फीति को लेकर बढ़ी चिंताओं के कारण निवेशक जोखिम नहीं लेना चाहते हैं.
डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी कम हो रहा है. विदेशी मुद्रा भंडार घटकर पहली बार 600 अरब डॉलर से नीचे पहुंच गया है. लगातार आठ हफ्ते से इसमें गिरावट हो रही है. भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी क्रूड ऑयल आयात करता है, इस कारण देश के इंपोर्ट बिल में भी इजाफा होगा. विदेशी मुद्रा ज्यादा खर्च होने के कारण फॉरेन रिजर्व भी कम होगा. साथ ही देश में महंगाई बढ़ जाएगी. खासकर वे सारी चीजें महंगी हो जाएंगी, जिसका भारत आयात करता है.