दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

आरटी-पीसीआर टेस्ट वायरस डिटेक्ट करने में 20 फीसदी नाकाम - एमजीएम मेडिकल कॉलेज

आरटी-पीसीआर जांच रिपोर्ट के आधार पर एमजीएम मेडिकल कॉलेज सहित विभिन्न चिकित्सा संस्थानों के डॉक्टरों ने स्पष्ट किया है कि कोरोना के परीक्षण के लिए आरटी-पीसीआर की जांच सिर्फ 70 से 80 फीसदी ही कारगर साबित हो रही है, जबकि 20 से 30 प्रतिशत मामलों में यह जांच गलत पाई जा रही है.

आरटी-पीसीआर टेस्ट
आरटी-पीसीआर टेस्ट

By

Published : Apr 16, 2021, 1:22 PM IST

इंदौर :जिस कोरोना वायरस से पूरी दुनिया परेशान है. उस वायरस का संक्रमण जानने के लिए भारत में उपयोग की जाने वाली आरटी-पीसीआर (रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमर चेन रिएक्शन) की जांच ही सवालों के घेरे में आ गई है.आरटी-पीसीआर जांच रिपोर्ट के आधार पर एमजीएम मेडिकल कॉलेज समेत विभिन्न चिकित्सा संस्थानों के डॉक्टरों ने स्पष्ट किया है कि कोरोना के परीक्षण के लिए आरटी-पीसीआर की जांच सिर्फ 70 से 80 फीसदी ही कारगर है. 20 से 30 फीसदी मामलों में यह जांच गलत पाई जा रही है. मरीजों का दोबारा परीक्षण करना पड़ रहा है.

लिहाजा अब संक्रमण की पुष्टि के लिए डॉक्टर और चिकित्सा संस्थान सीटी स्कैन जांच के बाद ही कोरोना की पुष्टि करने पर मजबूर हैं. इधर इसकी एक और वजह कोरोना के नए वेरिएंट को भी माना जा रहा है, जो अब नाक और मुंह के अलावा सीधे फेफड़ों में पहुंचकर संक्रमण फैला रहा है.

देश भर में इन दिनों जो भी गंभीर मरीज अस्पतालों में पहुंच रहे हैं, उनमें से अधिकांश की आरटी-पीसीआर जांच रिपोर्ट या तो नेगेटिव रही है या फिर मरीज के शरीर में संक्रमण बढ़ जाने के बाद उसका इलाज देरी से शुरू हो रहा है. देश में तमाम संक्रमित मरीजों की मौत के पीछे यही सबसे बड़ा कारण सामने आया है.

वायरस डिटेकट करने में 80 फीसदी नाकाम

यही वजह है कि अब अधिकांश बड़े अस्पतालों में कोरोना संक्रमण की पुष्टि के लिए आरटी-पीसीआर जांच के अलावा फेफड़ों का सीटी स्कैन संक्रमण की पुष्टि का आधार माना जा रहा है. इसके अलावा कोरोना वायरस पर लगातार शोध कर रहे शोधार्थियों का मानना है कि नए वायरस का वेरिएंट नाक और मुंह के बजाय सीधे फेफड़ों के अंदर पहुंच रहा है, जिसके फुटप्रिंट अब मुंह या नाक के सलाइवा में नहीं मिल रहे है.

इसकी एक और वजह कम्युनिटी स्प्रेड को भी माना जा रहा है. हालांकि, भारत सरकार और आईसीएमआर द्वारा कोरोना के नए टेस्ट के बारे में कोई अधिकृत बयान जारी नहीं किया गया है. इस स्थिति से परेशान डॉक्टर्स अब आरटी-पीसीआर के साथ सीटी स्कैन को प्राथमिकता दे रहे हैं.

ऐसे में डॉक्टर्स का कहना है कि चेस्ट का सिटी स्कैन कराकर जल्द ही इसका इलाज मरीजों को दिया जा सकता है.

एंटीबॉडी टेस्ट का फेल होना चिंता का विषय

मुसीबत यही नहीं रूकती. अब हमारे आसपास कई ऐसे लोग है, जिनमें कोरोना के कोई भी लक्षण नहीं नजर आ रहे है. कोरोना मरीजों का इलाज ज्यादातर लक्षण दिखने के बाद ही शुरू किया जाता है, लेकिन बिना लक्षण वाले मरीजों के लिए दो तरह की चुनौतियां सामने आ रही है. एक तो ये कि मरीज अनजाने में अन्य के संपर्क में आ जाते है. दूसरा बड़ा खतरा ये कि जब तक किसी में लक्षण नहीं दिखेंगे, तब तक इलाज शुरू नहीं हो पाएगा. ऐसे शहर में बहुत से मरीज है, जिनमें लक्षण दिखाई नहीं दे रहे है. उनके टेस्ट अभी भी पेंडिंग है.

डॉक्टर्स को यह उम्मीद थी कि आरटी-पीसीआर और रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट से इस संक्रमण को पहचाना जा सकता है, लेकिन इन टेस्ट से भी संक्रमण का पता नहीं चल पा रहा है. ऐसे में आरटी-पीसीआर की जगह एक तरीका ये अपनाया जा सकता है कि फेफड़ों का सीटी स्कैन या फिर चेस्ट एक्स-रे किया जाए, क्योंकि इससे कोरोना से हो रहे नुकसान का पता लगाया जा सकता है.

इस साल मार्च माह में अमेरिकन जर्नल ऑफ रोएंटजनोलॉजी में एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी, जिसमें वुहान के 62 रोगियों पर CT-स्कैन कर इस बात का पता चल सका कि कोरोना की शुरुआती अवस्था में 62 लक्षण वाले रोगियों में से 52 रोगियों के फेफड़ों में ग्राउंड गलास ओपेसिटी है. ग्राउंड ओपेसिटी का पता लगना इसलिए अहम है क्योंकि ये ओपेसिटी कोरोना का एक महत्वपूर्ण लक्षण है. इस स्थिति में दिया गया उपचार काफी निर्णायक सिद्ध हो सकता है.

केसेस की स्टडी से साफ तौर पर यह परिणाम निकलते है कि चेस्ट का सिटी स्कैन आरटी-पीसीआर की तरह ही कोरोना वायरस संक्रमण की पहचान के लिए इसे इस्तेमाल किया जा सकता है. इस स्टडी में चेस्ट सिटी स्कैन RT-पीसीआर की डायग्नोस्टिक वैल्यू की तुलना की गई है. यह स्टडी बताती है कि चेस्ट का सिटी स्कैन RT-पीसीआर से बेहतर है.

संजय गुप्ता का बयान

आरटी-पीसीआर से नहीं हो रही नए वायरस की पुष्टि
दरअसल, कोरोना संक्रमण और जांच की तमाम प्रक्रिया पर रिसर्च, सैंपलिंग आईसीएमआर सहित सेंटर ऑफ नेशनल कंट्रोल ऑफ डिजीज द्वारा जिनोम सीक्वेंसिंग के जरिए की जा रही है. उसमें भी पता चला है कि 6 फीसदी मामले ऐसे हैं, जिनमें वायरस नॉरमल इम्यून रिस्पांस को ब्लॉक कर देता है, जिसके कारण संक्रमण का पता जांच के दौरान नहीं चल पाया. हालांकि जब संबंधित मरीज का ही 48 घंटे बाद टेस्ट किया गया, तो रिपोर्ट पॉजिटिव आई.

पढ़ें- कोरोना से मुकाबले के लिए हैं तैयार हम : डॉ हर्षवर्धन

दो सालों से लगातार आरटी-पीसीआर की जांच करने वाले पैथोलॉजिस्ट भी मानते हैं कि अब वायरस की पुष्टि के लिए आरटी-पीसीआर के अलावा चेस्ट सीटी स्कैन की भी जरूरत पड़ रही है. इसके पीछे भी दो वजह बताई जा रही है, जिसमें संक्रमण के 48 घंटे के बाद टेस्ट किए जाने पर ही आरटी-पीसीआर की जांच सही तरीके से हो पाती है.

इसके पूर्व जांच कराने से कई बार संक्रमण का पता नहीं चलता है. इसके अलावा अब मरीजों की संख्या अत्यधिक बढ़ने के कारण जांच की प्रक्रिया के दौरान मरीज की स्क्रीनिंग नहीं हो पा रही है. अस्पतालों के अलावा प्राइवेट लैब के कर्मचारी वायरस की जांच के लिए सैंपल ले रहे हैं, जो निर्धारित प्रोटोकॉल के तहत नहीं ले रहे है. इसके कारण भी जांच रिपोर्ट प्रभावित होती है.

मेडिक्लेम में भी आ रही दिक्कत
गुजरात के वडोदरा नगर में बीमा कंपनियों को निर्देशित किया गया है कि रैपिड एंटीजन और आरटी-पीसीआर रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद भी सीटी स्कैन के आधार पर मरीज को कोरोना मरीज माना जाए. इसके अलावा दिल्ली के कई प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों ने स्पष्ट किया है कि सेकंड वेव के नए कोरोना वायरस का संक्रमण आरटी-पीसीआर और रैपिड एंटीजन टेस्ट के स्थान पर ब्रोंकाएलव्योलॉर लेवेज टेस्ट से ही पकड़ में आ रहा है.

मुंह या नाक के सलाइवा के सैंपल से इसकी पुष्टि नहीं हो पा रही है. इसके अलावा तेज बुखार और सांस लेने में दिक्कत जैसे लक्षण देखने के बाद भी जब मरीजों का आरटी-पीसीआर या रैपिड एंटीजन टेस्ट कराया जा रहा है, तो कोविड-19 नेगेटिव आ रही है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details