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शिक्षा के व्यापारीकरण को रोकने के लिये बने अधिनियम : दत्तात्रेय होसबाले - RSS leader Dattatreya Hosabale

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले (RSS leader Dattatreya Hosabale) ने शिक्षा के व्यापारीकरण को रोकने के लिये अधिनियम बनाने पर जोर दिया है. होसबाले भारतीय शिक्षा पर लिखी किताबों के विमोचन अवसर पर बोल रहे थे. जानिए उन्होंने और क्या कहा.

दत्तात्रेय होसबाले
दत्तात्रेय होसबाले

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Published : Oct 21, 2021, 10:45 PM IST

नई दिल्ली :राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा है कि देश में शिक्षा का व्यापारीकरण नहीं होना चाहिये और इसके लिये सरकारी अधिनियम बनाए जाए. साथ ही संघ के महासचिव ने यह भी कहा कि यदि शिक्षा का पूर्ण रूप से सरकारीकरण होता है तो यह भी एक भयानक स्थिती होगी, इसलिये आवश्यक है कि इसमें समाज की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो. इन दोनों के बीच किस तरह से सामंजस्य बिठाया जाए यह विचार करना होगा.

आरएसएस के सरकार्यवाह गुरुवार को दिल्ली में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर शिक्षाविद् और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय संयोजक अतुल कोठारी द्वारा भारतीय शिक्षा पर लिखी गईं 4 पुस्तकों के विमोचन कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे. होसबाले ने कहा कि आधिकारिक शिक्षा की रचना व्यवस्था सरकारी प्रयोजकत्व में होना चाहिये यह श्यामा प्रसाद मुखर्जी का आग्रह था. शिक्षा में समाज की सहभागिता होनी चाहिए और भारत में हमेशा शिक्षा में समाज और राज्य दोनों ने अपनी भूमिका निभाई है, इसलिये शिक्षा का दायित्व समाज के पास है.

सुनिए दत्तात्रेय होसबाले ने क्या कहा
शिक्षा में भाषा की भूमिका पर बात करते हुए दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि मातृभाषा या भारतीय भाषा में प्रारंभिक शिक्षा रहे, इसके लिये क्या समाज तैयार है? ऐसा होना चाहिये. भारतीय भाषा में प्रारम्भिक शिक्षा देने में आज कई समस्याएं हैं जिसे समाप्त कर आगे का रास्ता तैयार करने की जरूरत है. यदि नई शिक्षा नीति इसमें सफल होती है तो देश के लिये एक बड़ा काम हो जाएगा.

बीते कुछ दिनों में यह सूचना सामने आई है कि मेडिकल और इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रमों को कई भारतीय भाषाओं में रूपांतरित किया जा चुका है और कुछ भाषाओं पर काम भी चल रहा है. संघ के नेता ने इसकी तारीफ करते हुए कहा कि समस्याएं हैं और आएंगी क्योंकि देश में हर समाधान के लिये एक समस्या खड़ी हो जाती है.

शिक्षा में समाज की सहभागिता जरूरी
उदाहरण देते हुए होसबाले ने कहा कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में होना चाहिये लेकिन ऐसा तय हो जाने के बाद भी कुछ लोग सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गए और देश के मुख्य न्यायाधीश ने यह निर्णय दिया कि मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा को छात्रों पर लागू नहीं किया जाना चाहिये. उन्होंने कहा कि यह छात्र और अभिभावक का अधिकार है कि वह किस भाषा में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं, लेकिन अब यह देश के शिक्षाविदों को देखना है कि कैसे इसका कोई रास्ता निकाला जाए. शिक्षा में समाज की सहभागिता और सरकार की भूमिका इन दोनों के संदर्भ में विचार करना चाहिये.

नई शिक्षा नीति 2020 की तारीफ करते हुए संघ के महासचिव ने कहा कि अंग्रेजों से आजाद होने के बाद भी देश की शिक्षा कई दशकों तक कैद थी. नई शिक्षा नीति आने के बाद वह दूसरी बार आजाद हुई है. अब सही मायने में शिक्षा में भारतीय मूल्य दिखाई देंगे.

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