उदयपुर :राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत तीन दिवसीय प्रवास पर उदयपुर में हैं. रविवार को उन्होंने शहर के विद्या निकेतन स्कूल में प्रबुद्ध जन कार्यक्रम में मौजूद लोगों को संबोधित किया. जिसमें करीब 300 से अधिक लोग शामिल हुए.
संवाद कार्यक्रम में संघ प्रमुख ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ की आहुति देते हुए भारतवर्ष के लिए कार्य करने का मार्ग सहर्ष चुना. डॉ. हेडगेवार ने प्रारंभिक वर्षों में यह अनुभव किया कि स्वाधीनता मिलने के बाद भी फिर से हम पराधीन न हों, इस पर विचार करना होगा. संघ की स्थापना के मूल में यही चिंतन रहा.
यह कार्यक्रम रविवार को उदयपुर के विद्या निकेतन सेक्टर-4 में आयोजित हुआ. उदयपुर के गणमान्य नागरिकों को संघ के उद्देश्य, विचार और कार्य पद्धति के विषय पर उद्बोधन देते हुए सरसंघचालक ने कहा कि व्यक्ति निर्माण का कार्य संघ का लक्ष्य है. व्यक्ति निर्माण से समाज निर्माण, समाज निर्माण से देश निर्माण संभव है.
उन्होंने कहा कि जो स्वयंसेवक अन्यान्य क्षेत्र में स्वायत्त रूप से कार्य कर रहे हैं, मात्र उन्हें देख कर ही संघ के प्रति किसी तरह की धारणा नहीं बनाई जा सकती. संघ विश्व बंधुत्व की भावना से कार्य करता है. संघ के लिए समस्त विश्व अपना है.
उन्होंने कहा कि संघ को नाम कमाने की लालसा नहीं है. क्रेडिट, लोकप्रियता संघ को नहीं चाहिए. 80 के दशक तक हिंदू शब्द से भी सार्वजनिक परहेज किया जाता था, संघ ने इस विपरीत परिस्थिति में भी कार्य किया. प्रारंभिक काल की साधनहीनता के बावजूद संघ आज विश्व के सबसे बड़े संगठन के स्वरूप में है. संघ प्रमाणिक रूप से कार्य करने वाले विश्वसनीय, कथनी करनी में अंतर न रखने वाले समाज के विश्वासपात्र लोगों का संगठन है. सभी हिंदू हमारे बंधु हैं, यही संघ है. संघ की शाखा, संघ के स्वयंसेवक यही संघ है. समाज में सकारात्मक सेवा कार्य स्वयंसेवक स्वायत्त रूप से करते हैं.
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सरसंघचालक डॉ. भागवत ने संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार को उद्धृत करते हुए कहा कि वे कहते थे, हिंदू समाज का संगठन भारत की समस्त समस्याओं का समाधान कर सकता है. हम सभी भारत माता की संतान हैं, हिंदू अर्थात सनातन संस्कृति को मानने वाले हैं. सनातन संस्कृति के संस्कार विश्व को आलोकित कर सकते हैं. हिंदू की विचारधारा ही शांति और सत्य की है. हम हिंदू नहीं है, ऐसा एक अभियान देश और समाज को कमजोर करने के उद्देश्य से किया जा रहा है. जहां जहां विभिन्न कारणों से हिंदू जनसंख्या कम हुई है, वहां समस्याएं उत्पन हुई हैं, इसलिए हिंदू संगठन सर्वव्यापी बन कर विश्व कल्याण की ही बात करेगा. उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्र के परम वैभव में विश्व का ही कल्याण होगा.
हिन्दुत्व को सरल शब्दों में समझाते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि संघ के स्वयंसेवकों की ओर से कोरोनाकाल में किया गया निस्वार्थ सेवा कार्य ही हिन्दुत्व है. इसमें सर्वकल्याण का भाव निहित है. उन्होंने कहा कि संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने अनुभव किया था कि दिखने में जो भारत की विविधता है उसके मूल में एकता का एक भाव है, युगों से इस पुण्य भूमि पर रहने वाले पूर्वजों के वंशज हम सभी हिंदू हैं, यही भाव हिंदुत्व है.
इससे पूर्व, सरसंघचालक डॉ. भागवत, राजस्थान क्षेत्र के क्षेत्रीय संघचालक रमेशचंद अग्रवाल और महानगर संघचालक गोविन्द अग्रवाल की ओर से भारत माता की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई. कार्यक्रम में अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख स्वांत रंजन, अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य हस्तीमल व वरिष्ठ प्रचारक गुणवंत सिंह कोठारी भी उपस्थित थे. कार्यक्रम का समापन वंदे मातरम गायन के साथ हुआ.
जिज्ञासा सत्र
उद्बोधन के पश्चात जिज्ञासा सत्र में सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कई प्रश्नों पर मागदर्शन प्रदान किया. मीडिया में संघ की छवि के बारे में प्रश्न पर उन्होंने कहा कि प्रचार हमारा उद्देश्य नहीं रहा, प्रसिद्धि नहीं, अहंकार रहित, स्वार्थ रहित, संस्कारित स्वयंसेवक और कार्य प्राथमिक उद्देश्य है. प्रचार के क्षेत्र में इसीलिए देरी से आना हुआ. कार्य करने का ढिंढोरा संघ नहीं पीटता. कार्य होगा तो बिना कहे भी प्रचार हो जाएगा.