नई दिल्ली: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का मस्जिद प्रेम क्या हिंदू मुस्लिम भाईचारे का प्रयास है या फिर भाजपा से दूरी बढ़ाने का प्रयास. इस बात को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है. अपनी-अपनी दलीलें और अटकलों को लेकर दावे प्रतिदावे किए जा रहे हैं, लेकिन इस घटना ने एक बहस जरूर छेड़ दी है.
ऐसा नहीं की ये पहली घटना है, पिछले 22 अगस्त को भी मुस्लिम बुद्धिजीवियों से संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुलाकात (mohan bhagwat mosque madrasa visit) की थी और सिर्फ ये मुलाकात ही नहीं बल्कि इसके बाद वो मुस्लिम धर्मगुरुओं से भी मिले थे और ठीक एक महीने बाद फिर उन्होंने मस्जिद और मदरसा जाकर लोगों को चौंका दिया है.
एक तरफ जहां राहुल गांधी और कांग्रेस के नेतागण पूरे देश में घूम घूम कर बीजेपी और आरएसएस पर देश के सौहार्द को बिगाड़ने और सांप्रदायिकता फैलाने का आरोप लगा रहे हैं, वहीं इसके उलट संघ प्रमुख ने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए आगे बढ़कर मोर्चा संभाल लिया है. संघ प्रमुख का नई दिल्ली में कस्तूरबा गांधी मार्ग पर स्थित मस्जिद जाकर अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख मौलाना उमर अहमद इलियासी के साथ मुलाकात करना और उसके बाद इलियासी का मोहन भागवत को राष्ट्रपिता कहना, और फिर संघ प्रमुख का पुरानी दिल्ली के मदरसे में पहुंचकर बच्चों और शिक्षिकों के हाल जानने की घटना ने देश की राजनीति की नई दिशा की तरफ बहस छेड़ दी है और बयानबाजी और अटकलों का दौर शुरू हो चुका है.
क्या संघ प्रमुख देश में अमन और सौहार्द का पैगाम देना चाह रहे हैं या फिर एक तरफ उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर की जा रही कारवाई और जमीन वापसी की मुहिम और बुलडोजर चलाने की घटनाओं से बढ़ रहे सांप्रदायिकता के माहौल को कम करने की कोशिश कर रहे हैं. क्या मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने की कोशिश है या संघ पर लगे ठप्पे को हटाने का प्रयास है? सवाल तमाम हैं मगर विपक्ष इसे महज दिखावा करार दे रहा है.