नई दिल्ली : आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि '... जो बिखरा हुआ था उसे एकीकृत करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है.' इसी कार्यक्रम में भागवत ने कहा है कि विभाजन एक कभी न भूलने वाली पीड़ा है. उन्होंने कहा कि जो खंडित हुआ उसे अखंड बनाना पड़ेगा, यही हमारा राष्ट्रीय, धार्मिक और मानवीय कर्तव्य है. विभाजन को लेकर भागवत ने कहा कि खून की नदियां न बहें, इसके लिए विभाजन का प्रस्ताव स्वीकार किया गया. नहीं करने पर जितना खून बहता उससे कई गुना खून उस समय बहा और आज तक बह रहा है.
उन्होंने कहा कि एक बात साफ है कि विभाजन का उपाय, उपाय नहीं था. इससे न भारत सुखी है, न जिन्होंने इस्लाम के नाम पर विभाजन की मांग की वे सुखी हैं. भागवत ने कहा कि विभाजन की उत्पत्ति उस मानसिकता से होती है कि हम तुमसे अलग हैं. भारत नाम की प्रवृत्ति कहती है कि जितना तुम्हारा अलगाव है अपने पास रखो. तुम अलग हो इसलिए अलग होने की जरूरत नहीं, झगड़े की बात नहीं है. मिलकर चलें. उन्होंने कहा कि विभाजन इस्लाम के आक्रमण के अलावा ब्रिटिश के आक्रमण और ऐसे ही कई अन्य हमलों का नतीजा है.
भागवत ने नोएडा में एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में विभाजन पर कई बातें कहीं. मोहन भागवत ने कहा कि इतिहास का समग्रता में अध्ययन होना चाहिए और यह हमेशा याद भी रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत को स्वतंत्रता पूरी दुनिया को कुछ देने के लिए मिली है.
बकौल भागवत, पूरी दुनिया को कुछ देने लायक हम तब बनेंगे जब इतिहास के दुराध्याय को पलटकर हम अपने परम वैभव का मार्ग चुनें. यह हम सबका कर्तव्य बनता है. उन्होंने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री संविधान से बंधे हैं. उनको सारी जनता को संभालकर ले जाना है. वास्तविक परिस्थिति का भान उन्हें रखना पड़ता है.