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प्रिया रमानी के खिलाफ एमजे अकबर की मानहानि याचिका पर फैसला सुरक्षित - पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ दायर मानहानि याचिका

प्रिया रमानी के खिलाफ एमजे अकबर की मानहानि याचिका पर दिल्ली की राऊज एवेन्यु कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. अब इस मामले में 10 फरवरी को फैसला सुनाने का आदेश दिया है.

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दिल्ली की राऊज एवेन्यु कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

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Published : Feb 1, 2021, 9:52 PM IST

नई दिल्ली : राऊज एवेन्यु कोर्ट ने पूर्व मंत्री एमजे अकबर की ओर से पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ दायर मानहानि याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया है. एडिशनल मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट रविंद्र कुमार पांडेय ने 10 फरवरी को फैसला सुनाने का आदेश दिया.

सुनवाई के दौरान प्रिया रमानी की ओर से वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने कहा कि एमजे अकबर के खिलाफ यौन प्रताड़ना के आरोप सही हैं. उसके बारे में किए गए ट्वीट मानहानि वाले नहीं थे और वे जनहित में किए गए थे. उन्होंने कहा कि यौन प्रताड़ना के आरोपी को उच्च पदों पर नहीं होना चाहिए जो कि एक जनहित था. रेबेका जॉन ने कहा कि दूसरी महिलाओं ने अगर आरोप नहीं लगाए इसका मतलब ये नहीं है. उन्होंने कहा कि एमजे अकबर को गजाला वहाब और पल्लवी गोगोई के आरोपों से परेशानी क्यों नहीं हुई? उनके आरोप ज्यादा गंभीर थे.

'पिक एंड चूज नहीं कर सकते हैं'
रेबेका जॉन ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले को उद्धृत करते हुए कहा कि अगर आप पिक एंड चूज करते हैं तो आपको चूज नहीं करने का कारण बताना होगा. एमजे अकबर रमानी के पीछे इसलिए पड़े कि वह एक सॉफ्ट टारगेट थी. जॉन ने कहा कि प्रिया रमानी ने व्यक्तिगत कारणों से ट्विटर अकाउंट निष्क्रिय किया था. उन्होंने कहा कि प्रिया रमानी ने एक ईमानदार बयान दिया था.

'कानून होने के बावजूद शिकायत नहीं की'
पिछले 27 जनवरी को एमजे अकबर की ओर से वकील गीता लूथरा ने अपनी दलीलें पूरी कर ली थीं. सुनवाई के दौरान लूथरा ने कहा था कि प्रिया रमानी ने जो आरोप लगाए वह उसे साबित करने में नाकाम रही है. लूथरा ने कहा था कि एक रिपोर्टर को कानून की बुनियादी जानकारी होनी चाहिए. प्रेस और मीडिया का कर्तव्य है कि वह लोगों को शिक्षित करे. उन्होंने कहा था कि सोशल मीडिया पर बिना कुछ वेरिफाई किए कुछ कहना आसान होता है. लूथरा ने कहा था कि 2013 के कानून के मुताबिक, शिकायत तीन महीने में करनी होती है, लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ नहीं किया गया. एक व्यक्ति किसी की छवि को सार्वजनिक रूप से खराब कर सकता है. उन्होंने कहा था कि रमानी ने एमजे अकबर को शिकारी कहा और इसका कोई सबूत नहीं है.

'सोशल मीडिया पर ट्रायल चल रहा है'
पिछले 23 जनवरी को सुनवाई के दौरान लूथरा ने कहा था कि कानून के राज में सोशल मीडिया ट्रायल स्वीकार्य नहीं है. लूथरा ने कहा था कि पत्रकारों को अलग से कोई विशेषाधिकार नहीं है. लूथरा ने कहा था कि प्रेस काउंसिल ने भी कहा है कि पत्रकारों को जिम्मेदार होना चाहिए. ऐसे कई फैसले हैं जो बताते हैं कि समानांतर ट्रायल नहीं चलाया जा सकता है. यहां सोशल मीडिया पर ट्रायल चल रहा है. यह कानून के शासन में अस्वीकार्य है. लूथरा ने कहा था कि निष्पक्ष टिप्पणी अपमानजक नहीं मानी जा सकती है. लूथरा ने कहा था कि एमजे अकबर को सबसे बड़ा शिकारी (predator) कहा गया. रमानी ने सोशल मीडिया का दुरुपयोग किया और यह जनहित में कदापि नहीं था.

'रमानी ने कहानी गढ़ी'
लूथरा ने कहा था कि रमानी ने अपने ट्वीट हटाए. प्रिया रमानी ने वोग मैगजीन में छपे आलेख को लेकर कहानी गढ़ी, जिसका कोई अस्तित्व नहीं है. इसे प्रमाणित करने की जिम्मेदारी एमजे अकबर की नहीं है. लूथरा ने कहा था कि हमने जितने भी गवाह पेश किए उनमें से किसी से भी एमजे अकबर की छवि के बारे में सवाल नहीं किया गया, लेकिन दलीलों में इसे रखा गया. आप 20-30 सालों के बाद बिना किसी जिम्मेदारी के सोशल मीडिया पर आरोप नहीं लगा सकती हैं.

ये भी पढ़ें: प्रिया रमानी के खिलाफ दायर मानहानि मामले में एमजे अकबर की ओर से दलीलें पूरी

2018 में दर्ज किया था मुकदमा
एमजे अकबर ने 15 अक्टूबर 2018 को प्रिया रमानी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया था. उन्होंने प्रिया रमानी द्वारा अपने खिलाफ यौन प्रताड़ना का आरोप लगाने के बाद ये आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया है. 18 अक्टूबर 2018 को कोर्ट ने एमजे अकबर की आपराधिक मानहानि की याचिका पर संज्ञान लिया था. 25 फरवरी 2019 को कोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और पत्रकार एमजे अकबर द्वारा दायर आपराधिक मानहानि के मामले में पत्रकार प्रिया रमानी को जमानत दी थी. कोर्ट ने प्रिया रमानी को 10 हजार रुपए के निजी मुचलके पर जमानत दी थी. कोर्ट ने 10 अप्रैल 2019 को प्रिया रमानी के खिलाफ आरोप तय किए थे.

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