नई दिल्ली: अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच कैंप डेविड में शुक्रवार को त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन होना है. इस सम्मेलन ने एक बार फिर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सियोल की भूमिका को फोकस में ला दिया है. अमेरिका की अपनी यात्रा से पहले, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यूं सुक येओ ने सियोल में एक टेलीविजन भाषण दिया. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि शिखर सम्मेलन कोरियाई प्रायद्वीप और इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में शांति और समृद्धि में योगदान देने वाले त्रिपक्षीय सहयोग में एक नया मील का पत्थर साबित होगा.
पिछले साल दिसंबर में, दक्षिण कोरिया ने एक नई इंडो-पैसिफिक रणनीति का अनावरण किया था. पर्यवेक्षकों की राय में कोरिया की यह नीति भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की रणनीतियों के साथ मेल खाती है. बता दें कि भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया क्वाड का हिस्सा हैं जो क्षेत्र में चीन के आधिपत्य का नियंत्रित करने और स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक के लिए काम कर रहे हैं. अपनी नई रणनीति में, दक्षिण कोरिया ने स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए क्षेत्रीय नियम-आधारित व्यवस्था को मजबूत करने का वादा किया है.
राष्ट्रपति यून ने पहले भी लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा के लिए अधिक जिम्मेदारी लेने की बात स्वीकार की है. यह दस्तावेज भी इसका ही विस्तार है. इसके साथ ही यह अमेरिका और उसके सहयोगियों की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीतियों के अनुरूप है. हालांकि, इस दस्तावेज में भी क्षेत्र में चीनी खतरे की तीव्रता को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है. इस बारे में भी यह लगभग उतनी ही बात करता है जितनी अमेरिका, भारत, जापान और आस्ट्रेलिया एक साथ और अलग-अलग मंचों पर कर चुके हैं.
एशियन कॉन्फ्लुएंस थिंक टैंक के फेलो और इंडो-पैसिफिक मुद्दों के विशेषज्ञ के योहोम ने ईटीवी भारत को बताया कि इंडो-पैसिफिक में चीन की गतिविधियों से दक्षिण कोरिया निश्चित रूप से चिंतित है. हालांकि, दक्षिण कोरिया कभी भी खुल कर चीन के मुकाबले में नहीं दिखना चाहता है. दक्षिण कोरिया चाहता है कि उसकी भूमिका आर्थिक क्षेत्रों में दिखे न कि अमेरिका के साथ खड़े किसी देश के रूप में.
1953 की आपसी रक्षा संधि के तहत अमेरिका का औपचारिक सहयोगी होने के बावजूद, दक्षिण कोरिया के चीन के साथ गहरे आर्थिक संबंध हैं. चीन 2015 के बाद से मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के तहत उसका सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है. मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के रिसर्च एनालिस्ट आर विग्नेश लिखते हैं कि सियोल में मून जे-इन के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती सरकार चीन को नाराज करने से बचने के लिए रणनीतिक अस्पष्टता की सतर्क मुद्रा अपनाती रही है.