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स्वतंत्रता आंदोलन में वाराणसी के 'भारत माता मंदिर' की भूमिका

भारतवर्ष इस साल आजादी के 75 साल पूरे होने पर 'आजादी का अमृत महोत्सव' मना रहा है. 75वां स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश को आजादी दिलाने वाले महान क्रांतिकारियों के बलिदान को याद कर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं. इस मौके पर वाराणसी के भारत माता मंदिर का जिक्र न हो तो अधूरा सा लगता है. आइए जानते हैं भारत माता मंदिर ने स्वतंत्रता आंदोलन में क्या भूमिका निभाई है...

भारत माता मंदिर
भारत माता मंदिर

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Published : Oct 16, 2021, 5:03 AM IST

वाराणसी: 15 अगस्त 1947 भारत के लिए वह दिन, जब हमें आजादी मिली. आजादी के 75 साल पूरे होने पर भारत सरकार ने 'आजादी का अमृत महोत्सव' की शुरुआत की है. अमृत महोत्सव के पहले ईटीवी भारत भी आपको आजादी से जुड़ी उन तमाम कहानियों और स्मृतियों को बताने जा रहा है, जिसे जानकर आप भी आजादी की इस गाथा से खुद को गौरवान्वित महसूस करेंगे.

इसी क्रम में आज हम आपको धर्म नगरी वाराणसी के उस अद्भुत मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसको भारत माता मंदिर के नाम से जाना जाता है. कहने को तो यह एक मंदिर है, लेकिन अंदर प्रवेश करने के बाद आपको न यहां पर कोई प्रतिमा मिलेगी न ही किसी भगवान की कोई तस्वीर क्योंकि, इस भव्य मंदिर के अंदर 1917 के अखंड भारत का अद्भुत मानचित्र मौजूद है जो भारत को एक विशाल देश बनाता था. कजाकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान से लेकर भारत जब एक हुआ करता था.

बनारस में मौजूद यह भव्य मंदिर निर्माण की अद्भुत मिसाल है. मंदिर में इस्तेमाल हुए लाल पत्थर, मकराना मार्बल और अन्य निर्माण सामग्री इस मंदिर को और भी भव्य बना देते हैं. 1917 के बाद इस मंदिर के निर्माण की शुरुआत हुई और 1924 में यह मंदिर बनकर तैयार हुआ, लेकिन अंग्रेजों की सख्ती और क्रांतिकारियों पर हो रहे जुल्म ने इस मंदिर को खुलने नहीं दिया. हालांकि महात्मा गांधी ने अक्टूबर 1936 में इस मंदिर का उद्घाटन किया.

स्वतंत्रता आंदोलन में वाराणसी के भारत माता मंदिर की भूमिका

वाराणसी के चंदवा सब्जी मंडी इलाके में स्थित यह मंदिर देशभक्त और राष्ट्रवादी लोगों के लिए बड़ा केंद्र है. सफेद मकराना मार्बल पर पहाड़ की ऊंचाई, समुद्र की गहराई और अलग-अलग राज्यों को इसमें खूबसूरती से उकेरा गया है, जिसे देखकर हर कोई नतमस्तक हो जाता है. शिव प्रसाद गुप्त ने तैयार रूपरेखाराष्ट्र रत्न शिव प्रसाद गुप्त ने उस वक्त इस मंदिर के निर्माण की रूपरेखा तैयार की और महात्मा गांधी से आदेश लेने के बाद इस मंदिर का निर्माण शुरू किया. साल 1924 में मंदिर बनकर तैयार हुआ और 12 सालों बाद महात्मा गांधी ने इस मंदिर का अपने हाथों से उद्घाटन किया.

उस वक्त की तस्वीरों से लेकर इस मंदिर में लगे शिलापट्ट तक पर बापू की मौजूदगी का उल्लेख मिलता है. उस वक्त की तस्वीरों में मंदिर के मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश करते वक्त की बापू की तस्वीर, राष्ट्र रत्न शिव प्रसाद गुप्त के साथ उस वक्त के कई महान नेता भी यहां मौजूद थे. जिस समय ट्रेन और अन्य साधनों की कमी थी उस वक्त भी इस मंदिर के उद्घाटन में 25000 से ज्यादा लोगों की भीड़ देश भर से जुटी थी.

गणितीय सूत्र और इस तकनीक से हुआ तैयार

बाबू शिव प्रसाद गुप्त ने गणितीय सूत्रों के आधार पर दुर्गा प्रसाद खत्री की देख-रेख में 25 शिल्पकार और 30 मजदूरों को लगाकर इस मंदिर का निर्माण करवाया था. मकराना मार्बल पर अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका इसमें साफ तौर पर दिखाई देंगे. 450 पर्वत श्रृंखलाएं और चोटियां मैदान, पठार, जलाशय, नदियां, महासागर उनकी ऊंचाई और गहराई सब अंकित हैं. इसकी धरातल भूमि 1 इंच में 2000 फीट दिखाई गई है. चित्र की लंबाई 32 फीट, 2 इंच और चौड़ाई 30 फीट 2 इंच है, जिसे 762 खानों में बांटा गया है. पुणे के एक आश्रम में मिट्टी पर उकेरे गए मानचित्र को देखकर शिव प्रसाद ने मार्बल से इस मंदिर में मानचित्र बनाने की ठानी और बापू से परमिशन के बाद इसे तैयार करवाकर उनके ही हाथों उसका उद्घाटन करवाया.

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सभी धर्मों के लोगों के लिए है महत्वपूर्ण

भारत माता मंदिर ने आजादी की लड़ाई में बहुत बड़ा योगदान दिया है. यहीं पर क्रांतिकारी अपनी मीटिंग कर आगे की रणनीति बनाते थे. आजादी के मतवालों के अंदर भारत माता के प्रति श्रद्धा और आस्था जगाने के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया गया. मंदिर के केयरटेकर का कहना है कि सर्वधर्म समभाव की दृष्टि से इस मंदिर को बनाया गया. सभी धर्म के लोग यहां आएं. इसलिए यहां पर किसी प्रतिमा या अन्य चीजों को नहीं रखा गया.

अखंड भारत के नक्शे की पूजा यहां पर शुरू की गई. सबसे बड़ी बात यह है कि जब आजादी की लड़ाई अपने चरम पर थी. तब बहुत से आजादी के मतवाले इसी स्थान पर अपनी रणनीति बनाते थे. चंद्रशेखर आजाद समेत कई बड़े क्रांतिकारी इसके कैंपस में ही स्थित महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में पढ़ने आते थे. इस मंदिर में बैठ कर बैठके किया करते थे. आज यह मंदिर काशी में आने वाले पर्यटकों के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थल है.

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