पटना : बिहार में लालू यादव (Lalu Prasad Yadav) की सत्ता और उनकी सियासत दोनों इतनी मजबूत रही कि विरोधियों को भी लालू यादव की रणनीति पर दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाना पड़ता था. लालू यादव बड़ी दबंगई से यह बात कहते थे कि उन्हें भैंस नहीं पटक पाई तो भाजपा क्या पटक पाएगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनका कुछ नहीं कर सकते.
लालू यादव सियासत की हर जंग बड़ी मजबूती से जीते. हालांकि सियासत में जिस तरह से चीजें बदलीं उसमें केस (चारा घोटाला) का हवाला छोड़ दिया जाए तो बाकी लालू यादव की राजनीति से अभी भी बिहार बाहर नहीं जा पाया है. सियासत में लालू यादव लगातार जीते, लेकिन बड़े बेटे की राजनीति में हार गए. लालू के प्रशंसक, पुराने साथी और राष्ट्रीय जनता दल के कई हितैषी इस बात को मान रहे हैं कि जिस तरीके से लालू का परिवार राजनीतिक मुद्दों पर भटक रहा है. खासतौर से तेज प्रताप यादव ने जिस तरीके से मोर्चा खोल रखा है उसे रोक पाने में लालू यादव फेल हो गए हैं.
पार्टी को समझ रहे घर की जागीर
राजद के एक पुराने और लालू के काफी करीबी रहे बड़े नेता का कहना है कि साहब के रहते पार्टी जितनी मजबूत थी और पार्टी में जो अनुशासन था वह अब नहीं रहा. मुद्दों को लेकर पार्टी में बात होनी चाहिए, लेकिन व्यक्तित्व को मुद्दा बनाने का काम जिस तरीके से शुरू किया गया है उसे साहब नहीं रोक पाए. चाहे बात लालू यादव के सबसे करीबी मित्र रघुवंश प्रसाद सिंह की रही हो या फिर जगदानंद सिंह की. पार्टी को उनके घर के लोग अपनी जागीर समझने लगे हैं. यही वजह है कि अब हर जगह पार्टी के नाम पर किरकिरी हो रही है. लालू यादव हर मंच से यह बात जरूर कहते थे कि उन्हें भैंस नहीं पटक पाई. लालू को भैंस तो नहीं पटक पाई, लेकिन उन्हें अपने बड़े बेटे से ही शिकस्त मिल रही है.
लालू के एक और करीबी बताते हैं कि तेज प्रताप शुरू से ही कुछ जिद्दी स्वभाव के हैं, लेकिन इसे लगातार घर में नजरअंदाज किया गया. 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद लालू के दोनों बेटे विधानसभा में जीत कर आए, लेकिन मंत्री बनने के नाम पर जिस तरीके से घर के अंदर महाभारत हुई थी वह लालू यादव बेहतर तरीके से जानते हैं. तेजस्वी यादव को उप मुख्यमंत्री की कमान दी गई तो इस पर भी बहुत विरोध हुआ था. टिकट बंटवारे में जिस तरह से दिक्कत होती थी वह भी जगजाहिर है.
2014 के लोकसभा चुनाव में टिकट के लिए लालू परिवार में खींचतान मची थी. 2015 में मंत्री पद को लेकर हुए विवाद को लालू यादव को मैनेज करना पड़ा था. 2020 के चुनाव में तेज प्रताप को महुआ सीट बदलने के लिए जिस तरीके के शब्दों का उपयोग करना पड़ा और पार्टी के भीतर जो फजीहत हुई वह भी छिपी नहीं रही. वास्तव में ये तमाम चीजें लालू यादव के नजर में थी और है भी कि तेज प्रताप एक अलग स्टैंड ले चुके हैं. इसके बाद भी इस पर रोक लगाने के लिए कोई कारगर कदम लालू यादव नहीं उठा पाए या फिर लालू यादव को इस बात का डर है कि अगर इस पर किसी तरह की बात हुई तो तेज प्रताप और ज्यादा मुखर हो जाएंगे.