हैदराबाद: कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान भारत दो सबसे बुरे संकटों से गुजर रहा है. पहला है रोजाना कोरोना के नए मामले में होती रिकॉर्ड बढ़ोतरी और दूसरा राज्यों का कोरोना वैक्सीन की कमी का दावा. महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और झारखंड जैसे राज्य कोरोना वैक्सीन की कमी की शिकायत कर रहे हैं. कई राज्यों के मुताबिक उनके पास कुछ ही दिनों का वैक्सीन स्टॉक है, इसे लेकर कई राज्य मदद के लिए केंद्र का दरवाजा खटखटा रहे हैं. देशभर में कोरोना संक्रमण की रफ्तार डरा रही है. इस बीच कोरोना वैक्सीन की कमी बड़ा संकट है.
भारत की वैक्सीन पॉलिसी
भारत में 16 जनवरी, 2021 को कोरोना के टीकाकरण का अभियान शुरू हुआ था. उसके बाद से 35 मिलियन वैक्सीन डोज़ दी गई है. इसके अलावा भारत ने कोरोना की 23 मिलियन डोज़ दुनिया के 20 देशों तक भी पहुंचाई है. इनमें बेची गई और अनुदान में दी गई वैक्सीन का आंकड़ा शामिल है. 21 जनवरी से शुरू हुए वैक्सीन मैत्री अभियान के तहत दूसरे देशों को वैक्सीन की सप्लाई से भारत की साख बढ़ी है, खासकर कॉमनवेल्थ ऑफ डोमिनिका जैसे छोटे देशों को वैक्सीन सप्लाई करने से भारत का मान बढ़ा है.
कोरोना महामारी के खिलाफ भारत और अन्य देशों में टीकाकरण अभियान शुरू हुआ. अभियान के तहत चरणबद्ध तरीके से स्वास्थ्य कर्मियों, फ्रंट लाइन वर्कर्स और एक निश्चित उम्र से अधिक, कमजोर लोगों को पहले टीके लगाए गए.
भारत में इस वक्त कोरोना के दो टीके उपलब्ध हैं. भारत बायोटेक की कोवैक्सीन, जिसे कंपनी ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के साथ मिलकर तैयार किया है. दूसरी है कोविशील्ड वैक्सीन, जिसे ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका ने भारत के सीरम इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर तैयार किया है.
वायरस को निष्क्रिय करने के लिए कोवैक्सीन के 28 दिन के अंतराल में दो डोज दिए जाते हैं. कंपनी ने हाल में तीसरे चरण के परिणाम घोषित किए जिसके मुताबिक कोवैक्सीन 81 फीसदी प्रभावशाली है और ये सार्स-कोव-2 के म्यूटेंट स्ट्रेन के खिलाफ भी प्रभावशाली है. कोविशील्ड, जिसे वैज्ञानिक रूप से ChAdOx1-S के रूप में जाना जाता है. ये लगभग 70 फीसदी प्रभावकारी है.
लेकिन सरकार ने वैक्सीन को लेकर जनता की चिंता को दूर करने के लिए जागरुकता अभियान चलाया जिसके बाद टीकाकरण अभियान को गति मिली. मार्च और अप्रैल में जैसे ही कोरोना के नए मामलों में तेजी आई तो कई राज्यों से वैक्सीन की कमी की शिकायते आने लगी.
फंड की कमी
नवंबर में सरकारी की तरफ से मिशन कोविड सुरक्षा के लिए 900 करोड़ के बजट की घोषणा की गई. इस मिशन में जैव प्रौद्योगिकी विभाग के तहत कोविड-19 वैक्सीन के विकास के लिए 5 से 6 वैक्सीन निर्माताओं के काम में तेजी लाने की पहल की गई. कोवैक्सीन की निर्माता भारत बायोटेक कंपनी ने भी हैदराबाद और बेंगलुरु में अपनी सुविधाओं को बढ़ाने के लिए क्रमश: 150 करोड़ और 75 करोड़ रुपये की मांग की. एसआईआई ने इस फंड से वित्तीय सहायता की मांग की है और बैंकों से इस साल मई तक मौजूदा 60 मिलियन खुराक की क्षमता को 100 मिलियन खुराक तक पहुंचाने के लिए ऋण की मांग की है.
अमेरिका में, सरकार ने ट्रंप प्रशासन द्वारा कोविड-19 के टीकों के विकास, निर्माण और वितरण में तेजी लाने के लिए पीपीपी मोड पर शुरू की गई ऑपरेशन रैप स्पीड कार्यक्रम पर अक्टूबर तक वित्तीय सहायता में 18 बिलियन डॉलर का विस्तार किया गया. यूएस बायोमेडिकल एडवांस्ड रिसर्च एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ने एस्ट्राजेनेका को टीका विकसित करने के लिए 1 बिलियन डॉलर से अधिक दिए. जर्मनी की सरकार ने बायोएनटेक को 445 मिलियन डॉलर दिए, जिसके साथ बाद में फाइज़र ने मिलकर एक वैक्सीन तैयार की, जिसे क्लीनिकल ट्रायल में ले जाने के लिए मदद की. यूके की सरकार ने कोविड-19 टीके पर करीब 1.7 बिलियन डॉलर खर्च किए. जिसमें वैक्सीन की खोज के लिए वैश्विक प्रयासों के लिए 826 मिलियन डॉलर तक का योगदान और एक नई वैश्विक वैक्सीन साझा योजना के लिए 690 मिलियन डॉलर का योगदान शामिल है.
टीकों की अधिक आपूर्ति के लिए सरकार को सही प्रोत्साहन देने की जरूरत थी. मौजूदा वक्त में वैक्सीन निर्माताओं ने खुद ही बड़े निवेश किए हैं. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने 3000 करोड़ और भारत बायोटेक ने 500 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. इससे भी बदतर ये है कि हाल में जो भी भारत में वैक्सीन बेचना या बनाना चाहता है, उनके लिए मंजूरी मिलने की रफ्तार बहुत ही धीमी और जटिल है. जिससे बाजार में वैक्सीन के पहुंचने में और भी देर लग रही है.
कोविड-19 वैक्सीन की कमी झेल रहे राज्य
महाराष्ट्र: भारत में कोरोना का सबसे ज्यादा कहर महाराष्ट्र पर बरपा है. जहां से देश में सबसे ज्यादा कोरोना के नए मामले और मौत के मामले सामने आ रहे हैं. महाराष्ट्र ने ही सबसे पहले टीके की कमी की बात सामने आई थी. महाराष्ट्र के मंत्री असलम शेख ने कहा कि राज्यो को कम से कम टीके मिले और अधिकांश टीकाकरण केंद्र टीके की कमी के कारण बंद हो गए.