नई दिल्ली :भारतीय वायुसेना का मिग-21 विमान क्रैश कई जांबाज सपूतों की शहादत का कारण बना है. सबसे हालिया हादसा राजस्थान में हुआ जहां विंग कमांडर हर्षित सिन्हा मिग-21 क्रैश के बाद चिरनिद्रा में सो गए. राजस्थान में शुक्रवार, 24 दिसंबर को एक प्रशिक्षण उड़ान के दौरान मिग -21 'बाइसन' लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था. भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के विंग कमांडर हर्षित का फाइटर एयरक्राफ्ट क्रैश 292वां मिग-21 क्रैश था. इनमें से पांच हादसे साल 2021 में ही हुए हैं.
1991 में यूएसएसआर विघटन के बाद 15-वर्ष की अवधि (1991-2005 ) में 119 विमान दुर्घटनाग्रस्त हुए. यह कुल हादसों का 40 प्रतिशत से अधिक है. वर्ष 1999 का कारगिल युद्ध मिग -21 के लिए सबसे खराब साबित हुआ. इसमें 16 दुर्घटनाएं हुईं, जबकि 1971 में 11 मिग-21 क्रैश हुए. इसी वर्ष भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई हुई थी. युद्ध के बाद बांग्लादेश अलग देश बना था. इस युद्ध को बांग्लादेश मुक्ति संग्राम (Bangladesh Liberation War) भी कहा जाता है.
पहली बार 60 के दशक की शुरुआत भारतीय वायुसेना के बेड़े में मिग -21 को शामिल किया गया था. कुल 946 मिग -21 लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना के बेड़े में जोड़े गए थे. इन विमानों में आधे से अधिक भारत में लाइसेंस-उत्पादित (license-produced in India) थे.
यूएसएसआर के विघटन के बाद, भारत में सिंगल-इंजन फाइटर एयरक्राफ्ट के स्पेयर पार्ट्स का आयात स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल देशों (Commonwealth of Independent States-CIS) से किया जाता था. इसके अलावा विमान के कलपुर्जों के लिए स्थानीय उत्पादकों की ओर भी रुख करना पड़ा. हालांकि, राष्ट्रमंडल देशों और स्थानीय उत्पादकों के कलपुर्जे रूसी की गुणवत्ता से मेल नहीं खाते थे.
रक्षा मंत्रालय ने पांच साल पहले एक आंतरिक ऑडिट रिपोर्ट जारी की थी. इसमें भारतीय वायुसेना के मिग -21 लड़ाकू विमानों की बढ़ती दुर्घटना के लिए स्पष्ट रूप से कलपुर्जों की गुणवत्ता को जिम्मेदार ठहराया गया था.
नवंबर, 2016 में प्रस्तुत की गई इस रिपोर्ट में कहा गया था; '1970 से अब तक 170 से अधिक भारतीय पायलट और 40 नागरिक मिग-21 दुर्घटनाओं में मारे गए. इसका मुख्य कारण यूएसएसआर विघटन के बाद एमआईजी रूसी निगम (MIG Russian Corporation) से कलपुर्जे और अन्य महत्वपूर्ण उपकरण भारत नहीं आ सकना था.'
रिपोर्ट में कहा गया था कि भारतीय वायुसेना को मिग-21 विमान के स्पेयर पार्ट्स के लिए सीआईएस देशों और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) पर निर्भर रहना पड़ा.