हैदराबाद :पिछले दो दशकों में जलवायु परिवर्तन से बढ़ी गर्मी के कारण बुजुर्ग लोगों की मृत्यु दर में 54 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है. इस बात का खुलासा यूसीएल शोधकर्ताओं के नेतृत्व में तैयार की गई एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट से हुआ है.
द लैंसेट 2020 में प्रकाशित स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट में कहा गया है कि 65 मिलियन से अधिक हीटवेट एक्सपोजर को प्रभावित हुए है. जो , 2019 के मुराबले में लगभग दोगुना है.
लेखकों का कहना है कि कोई भी देश , चाहे अमीर हो या गरीब , बिगड़ता जलवायु उस समय तक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालेगा, जब तक कि उससे निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई नहीं की जाती. उन्होंने कहा कि इससे वैश्विक स्वास्थ्य को खतरा होगा. यह जीवन और आजीविका को बाधित करेगा के साथ साथ स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को भी प्रभावित करेगा.
यूसीएल के वैश्विक स्वास्थ्य, ऊर्जा संस्थान, सतत संसाधनों के लिए संस्थान के शोधकर्ताओं, पर्यावरण डिजाइन और इंजीनियरिंग संस्थान, भूगोल विभाग और मानव स्वास्थ्य और प्रदर्शन संस्थान सभी ने रिपोर्ट में योगदान दिया है.
इसके लिए यूसीएल विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विश्व मौसम संगठन सहित 35 से अधिक संस्थानों के विशेषज्ञों को एक साथ एक मंच पर लाया.
120 विश्व-अग्रणी स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन शिक्षाविदों और चिकित्सकों ने कहा कि कोविड-19 महामारी से रिकवरी करना का कार्य वैश्विक तापमान को सीमित करने का मौका दे रही है. इससे वैश्विक तापमान 2C से भी नीचे हो ले जाया जा सकता है और जलवायु और महामारी को संरेखित करते हुए दुनिया निकट-अवधि और दीर्घकालिक स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकती है.
उनका कहना है कि ऐसा करने से भविष्य की महामारियों के जोखिम को भी कम किया जा सकता है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के जूनोटिक (संक्रामक रोगों के कारण महामारी का खतरा जो गैर-मानव जानवरों से मनुष्यों तक पहुंचते हैं) महामारी का जोखिम भी पैदा कर सकता है.
पिछले पांच वर्षों से स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लैंसेट काउंटडाउन ने 40 से अधिक वैश्विक संकेतकों की निगरानी की और उनकी रिपोर्ट की है, जो स्वास्थ्य पर हमारे बदलते जलवायु के प्रभाव को मापते हैं.