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भारत के साथ चीन-पाकिस्तान की सीमाओं पर बजती फोन की घंटियां हैं जीवन रेखा - युद्धविराम उल्लंघन को रोकना जरुरी

चीन और पाकिस्तान के समकक्षों और भारतीय सैन्य-राजनीतिक नेतृत्व के बीच का संबंध सबसे अच्छा हो सकता है. लेकिन जमीनी स्तर पर विरोधी सेनाएं अपनी लाइन पर खड़ी नजर आती हैं. इसके बावजूद सीमा पार से लगातार सीटियां बजती रहती हैं और टेलीफोन घनघनाते रहते हैं. मौजूदा हालात की समीक्षा कर रहे हैं वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ..

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Published : Mar 27, 2021, 3:52 PM IST

नई दिल्ली :सबसे अच्छे और बुरे समय में क्या हो सकता है. यह ऐसे समझ सकते हैं कि चीन-पाकिस्तान की सीमाओं पर भारतीय सेना और उनके समकक्षों के बीच लैंडलाइन कनेक्शन पर फोन बजना कभी बंद नहीं होता है. एक तरह से यह संचार की पंक्ति को जीवित रखते हुए संवेदनशील सीमा के साथ सेनाओं के बीच आपसी समझ बनाए रखने के लिए जीवन रेखा है.

सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि यह उच्च सामरिक स्तर व्यापक और रणनीतिक संबंधों को परिभाषित करता है. यह जमीन पर सैनिकों की सहमत शर्तों को लागू करने के लिए जरूरी है. इसलिए सबसे खराब होने के बावजूद संचार की ये रेखाएं हमेशा खुली रहती हैं. दरअसल, ये सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिकों की जीवन रेखा है.

रोजाना होते हैं परीक्षण कॉल
भारतीय सेना और चीनी सेना के पास दौलत बेग ओल्डी (लद्दाख), चुशूल (लद्दाख), बम-ला (अरुणाचल प्रदेश), नाथू-ला (सिक्किम) और किबिथु (अरुणाचल प्रदेश) में सीमा के साथ लगे पांच निर्दिष्ट बिंदु हैं. इन सीमा रेखाओं में से प्रत्येक के पास फोन लाइनें हैं, जो सीमा पार स्थित चीनी पोस्टों से तत्काल जुड़ जाती हैं. जबकि दोनों सेनाओं के स्थानीय कमांडर इन पांच निर्दिष्ट बिंदुओं पर एक वर्ष में कई बार मिलते हैं. हर दिन सीमा पर तैनात सैनिकों के बीच परीक्षण कॉल किए जाते हैं.

तनाव में भी बंद नहीं होते फोन
उदाहरण के लिए चीन के साथ अरुणाचल प्रदेश से लगी सीमा पर प्रतिदिन सुबह 4:30 बजे समर्पित लैंडलाइन से फोन पर आदान-प्रदान किया जाता है. ये कॉल सुनिश्चित करते हैं कि सब ठीक है और अनुमानित रूप से इसे ऑल ओके कॉल कहा जाता है. यहां तक ​​कि पूर्वी लद्दाख और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच हाल ही में जारी गतिरोध के दौरान 15 जून, 2020 की गलवान घटना के बावजूद यह 'ठीक है' कॉल कभी नहीं रुकी.

शांति बनाने में बेहद मददगार
हर दिन 4:30 बजे IST और 4:00 PM (पाकिस्तान का समय) टेलीफोन की घंटी बजती है. दोनों पक्षों में ज्यादातर स्थानीय स्तर पर स्थानीय मुद्दों से संबंधित बातचीत होती है. हालांकि यह ज्यादातर युद्धविराम उल्लंघन (सीएफवी) के बारे में होता है. कई बार वे एक-दूसरे के विमान के हताहत होने की सूचना देते हैं. इस प्रकार यह सीमावर्ती शांति बनाए रखने में मदद करता है ताकि गलतफहमी के कारण कोई अप्रिय घटना न घटे.

युद्धविराम उल्लंघन को रोकना जरूरी
निरंतर और भारी गोलाबारी के कारण नागरिकों को होने वाले गंभीर संपार्श्विक क्षति से बचने के लिए भारत और पाकिस्तान दोनों ही उत्सुक हैं. 28 जनवरी, 2021 तक इस वर्ष 299 सीएफवी हुए हैं. 2017 में सीएफवी की संख्या 971 थी. 2018 में 1629 और 2019 में 3168 थी. जो 2020 में बढ़कर 5133 हो गई. पुलवामा हमले (14 फरवरी, 2019) या उरी हमले (18 सितंबर, 2016) के बाद भारत-पाक में संबंध टूटने के बाद भी सीमा पर फोन कभी भी बजना बंद नहीं हुआ.

नियंत्रण रेखा पर इसकी अहमियत
इससे पहले भारत और पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में भारत-पाक सीमा पर एक व्यापक 'नो फायरिंग' या युद्धविराम समझौते का पालन किया था. 25 नवंबर, 2003 को दो DGMOs के बीच हस्ताक्षर किए गए. इसके अलावा 190 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा (आईबी) व जम्मू-कश्मीर में 500 किलोमीटर लंबी नियंत्रण रेखा (एलओसी) सहित वास्तविक भू-स्थिति रेखा के साथ यह लागू है.

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शुक्रवार को भारतीय सेना और पाकिस्तानी सेना के ब्रिगेड कमांडर स्तर के अधिकारियों ने पुंछ-रावलकोट क्रॉसिंग पॉइंट पर मुलाकात की. जो 24 फरवरी को दो डीजीओ द्वारा सहमति के रूप में सीएफवी को समाप्त करने के एकल बिंदु एजेंडा के कार्यान्वयन तंत्र पर चर्चा करने के लिए था.

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