नई दिल्ली : शीर्ष अदालत ने तीन कार्यकर्ताओं की याचिका पर कई निर्देश जारी करते हुये यह टिप्पणी की और कहा कि अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त जीवन का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं तक पहुंच के साथ गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है. बेहतर जीवन के लिए खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराना सभी राज्यों और सरकारों का कर्तव्य है.
कार्यकर्ताओं अंजलि भारद्वाज, हर्ष मंदर और जगदीप छोकर ने उन प्रवासी श्रमिकों के लिए कल्याणकारी उपाय लागू करने का अनुरोध किया था. जिन्हें कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान एक बार फिर देश के विभिन्न हिस्सों में लॉकडाउन और अन्य प्रतिबंधों के चलते दिक्कतों का सामना करना पड़ा. न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि मनुष्यों के लिए भोजन का अधिकार को लेकर वैश्विक स्तर पर जागरूकता है. हमारा देश कोई अपवाद नहीं है. देरी से सभी सरकारें यह उपाय कर रही हैं और ऐसे कदम उठा रही हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भूखा ना रहे और किसी की मौत भूख से नहीं हो.
वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा की मूल अवधारणा यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक व्यक्ति को हमेशा स्वस्थ जीवन जीने के लिए आवश्यक भोजन प्राप्त हो सके. पीठ ने कहा कि भारत के संविधान में भोजन के अधिकार के संबंध में स्पष्ट प्रावधान नहीं है. ऐसे में मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार, भोजन का अधिकार और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं को शामिल करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रदान किए गए जीवन का अधिकार के तहत व्याख्या की जा सकती है.