लखीमपुर खीरी :यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व में गैंडों का बसाया जाना कोई सपना सरीखा है. 100 साल बाद इंडो नेपाल बॉर्डर के तराई की धरती पर फिर से गैंडों को उनके पुरखों की धरती पर बसाया गया है. यह काम जितना कठिन और चुनौतीपूर्ण था उतना ही आशा और उम्मीदों से भरा भी. क्योंकि तराई की धरती पर अंधाधुंध शिकार ने गैंडों की वंश बेल को खत्म कर दिया था. वर्ष 1984 का समय था, इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. दुधवा टाइगर रिजर्व में असम से पांच गैंडों को लाने का बड़ा काम करना था. यूपी के वन विभाग और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसके लिए हामी भर दी थी. तय हुआ कि हवाई जहाज से असम से दिल्ली होते हुए दुधवा तक गैंडों को लाया जाएगा. इस दौरान चार मादा और एक नर गैंडे को जहाज से दिल्ली लाया गया. दिल्ली से ट्रकों के जरिए दुधवा टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया था.
गैंडों के परिवेश के लिए पहले ही कर लिया गया था अध्ययन :गैंडों को लाने से पर विशेषज्ञों की एक टीम पहले ही तराई के यूपी के लखीमपुर खीरी जिले के दुधवा टाइगर रिजर्व में पाई जाने वाली घासों पानी की उपलब्धता और दलदली भूमि का अध्ययन कर चुकी थी. दुधवा के सलूकापुर रेंज में पाई जाने वाली घास और दलदली भूमि को गैंडों के लिए उपयुक्त पाकर ही गैंडों को लाने की हरी झंडी मिली थी. पांच गैंडों को यहां लाया तो गया पर लंबे सफर और थकान ने गैंडों को पस्त कर दिया था. कुछ दिनों में ही नर गैंडे की मौत हो गई. इसके बाद नेपाल सरकार से नर गैंडा लाने की बात हुई. राजू और बांके नाम के गैंडे लाए गए. फिर गैंडों का कुनबा चल निकला. तमाम झंझावातों और चुनौतियों को झेलते आज 46 गैंडों का परिवार दुधवा टाइगर रिजर्व में रह रहा.
अब दो जगह हैं गैंडों का आशियाना
दुधवा टाइगर रिजर्व में अब गेंद का आशियाना एक नहीं दो दो जगह है पहले सलूकापुर रेंज में राइनो रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम के तहत फेज 1 में गैंडों को बसाया गया था. इसके बाद 2018 में बेलरायां रेंज में 45 वर्ग किलोमीटर की जमीन को बाड़बंदी कर गैंडों का दूसरा आशियाना भी फेज 2 के रूप में शुरू हो चुका है. इसमें एक नर और तीन मादाओं को रखा गया है जिनके एक एक शावक भी हो चुका.