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Rhino Day Special : 100 साल बाद पुरखों की धरती पर बसे दुधवा के गैंडे, देखिए खास रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश का दुधवा टाइगर रिजर्व गैंडों के लिए काफी अनुकूल साबित हो रहा है. यही कारण है कि यहां गैंडों को कुनबा लगातार बढ़ रहा है. एक समय यहां से गैंडे लुप्तप्राय हो गए थे, लेकिन 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पहल के बाद गैंडों की वंश बेल बढ़ती जा रही है.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 22, 2023, 4:24 PM IST

लखीमपुर खीरी :यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व में गैंडों का बसाया जाना कोई सपना सरीखा है. 100 साल बाद इंडो नेपाल बॉर्डर के तराई की धरती पर फिर से गैंडों को उनके पुरखों की धरती पर बसाया गया है. यह काम जितना कठिन और चुनौतीपूर्ण था उतना ही आशा और उम्मीदों से भरा भी. क्योंकि तराई की धरती पर अंधाधुंध शिकार ने गैंडों की वंश बेल को खत्म कर दिया था. वर्ष 1984 का समय था, इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. दुधवा टाइगर रिजर्व में असम से पांच गैंडों को लाने का बड़ा काम करना था. यूपी के वन विभाग और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसके लिए हामी भर दी थी. तय हुआ कि हवाई जहाज से असम से दिल्ली होते हुए दुधवा तक गैंडों को लाया जाएगा. इस दौरान चार मादा और एक नर गैंडे को जहाज से दिल्ली लाया गया. दिल्ली से ट्रकों के जरिए दुधवा टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया था.

राइनो दिवस पर विशेष रिपोर्ट.
राइनो दिवस पर विशेष रिपोर्ट.

गैंडों के परिवेश के लिए पहले ही कर लिया गया था अध्ययन :गैंडों को लाने से पर विशेषज्ञों की एक टीम पहले ही तराई के यूपी के लखीमपुर खीरी जिले के दुधवा टाइगर रिजर्व में पाई जाने वाली घासों पानी की उपलब्धता और दलदली भूमि का अध्ययन कर चुकी थी. दुधवा के सलूकापुर रेंज में पाई जाने वाली घास और दलदली भूमि को गैंडों के लिए उपयुक्त पाकर ही गैंडों को लाने की हरी झंडी मिली थी. पांच गैंडों को यहां लाया तो गया पर लंबे सफर और थकान ने गैंडों को पस्त कर दिया था. कुछ दिनों में ही नर गैंडे की मौत हो गई. इसके बाद नेपाल सरकार से नर गैंडा लाने की बात हुई. राजू और बांके नाम के गैंडे लाए गए. फिर गैंडों का कुनबा चल निकला. तमाम झंझावातों और चुनौतियों को झेलते आज 46 गैंडों का परिवार दुधवा टाइगर रिजर्व में रह रहा.

राइनो दिवस पर विशेष रिपोर्ट.
राइनो दिवस पर विशेष रिपोर्ट.


अब दो जगह हैं गैंडों का आशियाना
दुधवा टाइगर रिजर्व में अब गेंद का आशियाना एक नहीं दो दो जगह है पहले सलूकापुर रेंज में राइनो रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम के तहत फेज 1 में गैंडों को बसाया गया था. इसके बाद 2018 में बेलरायां रेंज में 45 वर्ग किलोमीटर की जमीन को बाड़बंदी कर गैंडों का दूसरा आशियाना भी फेज 2 के रूप में शुरू हो चुका है. इसमें एक नर और तीन मादाओं को रखा गया है जिनके एक एक शावक भी हो चुका.

राइनो दिवस पर विशेष रिपोर्ट.
राइनो दिवस पर विशेष रिपोर्ट.




दुधवा में भारत की तीसरी सबसे बड़ी आबादी :भारत में पाया जाने वाला एकसिंघी गैंडे की सबसे ज्यादा संख्या असम के काजीरंगा में पाई जाती है. वर्ष 2022 की गणना के मुताबिक विश्व में पाए जाने वाले 4014 एकसिंघी गैंडों में से 2613 गैंडे असम में पाए गए हैं. पिछले 39 वर्षों में यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व में गैंडों की संख्या बढ़कर अब 46 हो गई है. दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर रह चुके सीनियर आईएफएस रमेश पांडेय बताते हैं कि प्रकृति के इस शाकाहारी बड़े जानवर को बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है. तराई की दुधवा की धरती पर ये पल बढ़ रहे हैं, यह खुशी की बात है.

राइनो दिवस पर विशेष रिपोर्ट.
राइनो दिवस पर विशेष रिपोर्ट.


चीन सबसे बड़ा ट्रेडर : गैंडों की सींघों का दवाइयां बनाने में उपयोग होता है. इसलिए इनका शिकार होता रहता है. हालांकि दुधवा टाइगर रिजर्व में शिकार की हाल फिलहाल में कोई खबर नहीं है, पर शिकारियों से गैंडों की सींग को हमेशा खतरा रहता है. चीन में दवाइयां बनाने में इसकी बड़ी मांग है. पौरुष शक्ति बढ़ाने से लेकर कैंसर की दवाओं में गैंडों के सींघों के इस्तेमाल की खबर है. इसलिए गैंडों को हमेशा इंटरनेशनल शिकारियों से खतरा रहता है. भारत नेपाल की खुली सीमा भी शिकारियों के लिए रास्ता बनाती है. इस सबसे निपटने के लिए वन विभाग सतर्क रहता है.

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