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Dussehra in Meerut: रावण की ससुराल में 166 साल से दशहरे पर छाया है मातम, जानिए क्यों - रावण की ससुराल

मेरठ के एक गांव में अंग्रेजों ने 9 क्रांतिकारियों (Revolutionaries in Meerut) को एक साथ पीपल के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया था. इस वजह से गांव में दशहरे के दिन लोग गम में रहते हुए पर्व को नहीं मनाते हैं.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 24, 2023, 12:53 PM IST

शहीद क्रांतिकारी के वंशज तश्वीर चपराना ने बताया.

मेरठ: उत्तर प्रदेश के मेरठ को रावण की ससुराल भी कहा जाता है. मेरठ में एक ऐसा भी गांव है, जहां 166 साल से दशहरे का पर्व कोई नहीं मनाता है. यह गांव जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर है. इस गांव में दशहरे के दिन मातम पसरा रहता है. इसकी वजह क्या है और क्यों गांव में कोई दशहरा पर्व नहीं मनाया जाता है. आईए जानते हैं.

क्रांतिकारियों को लटकाया गया था फांसी पर
बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व को दशहरा पर्व के तौर पर मनाया जाता है. वहीं, मेरठ जिले का गगोल गांव ऐसा है, जहां लोग दशहरा के पर्व नहीं मनाते हैं. बल्कि इस दिन इस गांव में गमगीन का माहौल रहता है. दरअसल 165 साल पहले इस गांव में अंग्रेजो ने गांव के 9 क्रांतिकारियों को एक साथ गांव के ही पीपल के पेड़ पर खुलेआम फांसी पर लटका दिया था. जिसके बाद से आज तक भी यहां लोग अपने अजीजों को याद करते हैं. इस वजह से इस दिन गांव में सन्नाटा पसरा रहता है.


शहीद क्रांतिकारी के वंशज ने बताया
महान क्रांतिकारी और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1857 में विद्रोह का बिगुल फूंकने वाले शहीद क्रांतिकारी धन सिंह कोतवाल के वंशज तश्वीर चपराना ने बताया कि 10 मई 1857 में मेरठ में क्रांति का आरंभ हुआ था. यहां मेरठ और आसपास के जिलों के लोग सदर थाने पहुंचे और कोतवाल धन सिंह के नेतृत्व में जेल को तोड़ दिया गया था. यहां जेल में बंद अपने साथियों को छुड़ाया गया. साथ ही उन्हें क्रांतिकारी टीम में शामिल भी कर लिया गया.

क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ बजाया था बिगुल
शहीद क्रांतिकारी के वंशज ने बताया कि यहां आसपास के गांव पांचली, नंगला, घाट, गुमि, गगोल, नूरनगर और लिसाड़ी आदि सभी गांव के क्रांतिकारियों ने धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजा दिया था. जिसके बाद अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारियों ने इन क्रांतिकारियों की आवाज दबाने की पुरजोर कोशिश की थी. उसी दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारियों के दमन के लिए भी प्रयास किया.

पीपल के पेड़ में दी गई फांसी
तश्वीर चपराना ने बताया कि उस गांव में बहुत से क्रांतिकारी हो गए थे. दशहरे का दिन था. अंग्रेजों ने गगोल गांव सुनियोजित तरीके से पहुंच गए. यहां गांव के क्रांतिकारियों को नष्ट करने के लिए 9 क्रांतिकारियों को पकड़कर पीपल के पेड़ में फांसी दे दी. इतना ही नहीं उन्हें कई दिनों तक पेड़ पर ही लटका रहने का भी आदेश दिया था.

सरकारी रिकार्ड में है दर्ज
तश्वीर चपराना ने बताया कि ऐसा करके अंग्रेजों ने यह संदेश देने की कोशिश की थी कि लोग अंग्रेजों से डरें. जो भी मेरठ से क्रांति का बिगुल बजाएगा, उसे ऐसे ही फांसी पर लटका दिया जाएगा. गांव में दशहरा का दिन होने की वजह से सन्नाटा छा गया था. एक साथ इतने क्रांतिकारियों के फांसी पर लटकना सरकारी रिकॉर्ड में भी दर्ज है. इसके अलावा भी गांव में कई क्रांतिकारी थे. जिन्हें भी पकड़कर ऐसे ही फांसी पर लटका कर मार दिया गया. लेकिन उन क्रांतिकारियों का रिकार्ड सरकारी रिकार्ड में दर्ज नहीं है. जिसका शोध चल रहा है. जल्द ही उन क्रांतिकारियों को भी नमक किया जाएगा.

विश्वविद्यालय विभागाध्यक्ष ने बताया
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के इतिहास विभाग के अध्यक्ष विग्नेश त्यागी ने बताया कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जब क्रांति की शुरुआत हुई थी. उस समय अंग्रेजों ने विजयदशमी के ही दिन गगोल गांव के पीपल के पेड़ पर फांसी पर क्रांतिकारियों को लटकाकर अपने निर्मम होने का परिचय दिया था. दशहरे के दिन गगोल गांव के जिन-जिन क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने फांसी पर लटकाया था.

166 साल हो चुके हैं
इतिहास विभाग के अध्यक्ष ने बताया कि उनमें प्रमुख रूप से गगोल गांव के रामसहाय ,हिम्मत सिंह ,रमन सिंह, हरजीत सिंह, कड़ेरा सिंह, घसीटा सिंह ,शिब्बत सिंह, बैरम और दरयाब सिंह शामिल थे. तब से अब तक उस घटना को 166 साल हो चुके हैं. इस वजह से गांव में दशहरा ही नहीं कोई भी शुभ कार्य भी नहीं आयोजित किया जाता है. इतिहासकार और एनएएस कॉलेज के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष रहे देवेश शर्मा ने बताते हैं कि इस दिन पूरा गांव गम में डूबा रहता है. पूरे गांव में इस दिन कोई शुभ कार्य भी नहीं होता है.


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