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फिर हो रही डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूशन की वापसी

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Published : Mar 25, 2021, 6:01 AM IST

भारत में डीएफआई का युग इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम 1964 की समाप्ति के साथ समाप्त हो गया था. लेकिन सरकार अब एक बार फिर से इसकी शुरुआत करने जा रही है. सरकार का कहना है कि कोविड संकट की वजह से जिस तरीके से आर्थिक गतिविधियां कम हुईं, उससे निपटने में डीएफआई हमें कामी मदद करेगा. हालांकि, नए प्रस्तावित विकास बैंक की सफलता अतीत की गलतियों और कड़वे अनुभवों को रोकने के लिए बरती जाने वाली सावधानियों पर निर्भर करेगी.

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण

हैदराबाद : अपरिहार्य परिस्थितियों से निपटने के लिए केंद्र सरकार फिर से डेवलपमेंट बैंक और वित्तीय संस्थान स्थापित करने पर विचार कर रही है. कुछ साल पहले इस तरह के संस्थानों को बंद कर दिया गया था. अब एक बार फिर से डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूशन (डीएफआई) के लिए अनुकूल माहौल बनाया जा रहा है. कहा जा रहा है कि यह बुनियादी ढांचे के निर्माण और खराब ऋणों की वसूली में सहायक होगा.

अपने बजट भाषण में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने डीएफआई शुरू करने की आवश्यकता का जिक्र किया था. केंद्रीय मंत्रिमंडल पहले ही इस प्रस्ताव पर मंजूरी दे चुका है. कोविड संकट के कारण जितनी तेजी से आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुईं, उससे निपटने में डीएफआई एक अहम हथियार साबित हो सकता है. डीएफआई में दीर्घकालिक निवेश करने पर 10 साल का टैक्स ब्रेक का लाभ मिलेगा. केंद्र सरकार के अनुमान के मुताबिक इस पहल से निवेश के रूप में 111 लाख करोड़ रुपये का प्रवाह 7671 बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए हो सकेगा.

चीन, ब्राजील, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, जापान और जर्मनी जैसे देशों के आर्थिक पुनरुत्थान में डेवलपमेंट बैंकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. केंद्र सरकार का मानना ​​है कि बैंक भारत में भी जटिलताओं और चुनौतियों को दूर करने में मदद करेगा.

भारत में डीएफआई का युग इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम 1964 की समाप्ति के साथ समाप्त हो गया था. नए प्रस्तावित विकास बैंक की सफलता अतीत की गलतियों और कड़वे अनुभवों को रोकने के लिए बरती जाने वाली सावधानियों पर निर्भर करेगी.

विकास बैंक व्यापक औद्योगीकरण को गति दे सकते हैं, यह सोच काफी पुरानी है. इसी सोच की बदौलत राष्ट्रीय स्तर पर आईएफसीआई (1948), आईसीआईसीआई (1955) और आईडीबीआई (1964) जैसे संस्थान और राज्य स्तर पर एसएफसी और एसआईडीसी जैसे संस्थान अस्तित्व में आए. लेकिन तब ये संस्थान स्वायत्तता के साथ काम नहीं कर सके, क्योंकि सरकार उनका प्रमुख वित्तीय स्रोत थी. राजनीतिक हस्तक्षेप ने उत्तरोत्तर उनकी स्थिति को कमजोर कर दिया. गैर-जिम्मेदार नीतिगत निर्णयों के कारण उनकी लाभप्रदता और प्रगति गंभीर रूप से बाधित हुआ. नतीजा, उनका एनपीए बढ़ता चला गया.

वाणिज्यिक बैंकों के लिए दीर्घकालिक ऋण वितरण की शक्ति का विस्तार करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिश के बाद भी दीर्घकालिक ऋण वितरण पर बुनियादी ढांचे के विकास बैंकों का एकाधिकार समाप्त हो गया. हालांकि, इसके बाद इस मोर्चे पर व्यापक सुधार भी हुए. आईसीआईसीआई जैसी संस्थाओं ने खुद को वाणिज्यिक बैंकों में बदल दिया.

बाद में कई छोटे बैंक एक साथ आ गए. दीर्घावधि का लोन देने की शुरुआत की. लेकिन जिसने लोन लिया, उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ा. भूमि अधिग्रहण में देरी हुई. बुनियादी ढांचा विकास संस्थानों को काफी झटका लगा. एनपीए बढ़ता चला गया.

डीएफआई की स्थापना का प्रस्ताव देश की बुनियादी ढांचे की स्थिति में सुधार के अथक उद्देश्य के साथ दृश्य में वापस आया. विकास बैंक द्वारा लिए गए किसी भी फैसले को चुनौती देने की कोई गुंजाइश नहीं है. विधेयक के अनुसार जिम्मेदार व्यक्तियों से किसी भी तरीके से पूछताछ नहीं की जा सकती है. यह बिल डीएफआई को सुरक्षा प्रदान करता है.

केंद्र सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि पिछले विकास बैंक ऋण देने में अंधाधुंध पूर्वाग्रह के कारण डूब गए. ऐसे उपाय जो अकेले हर कदम पर जवाबदेही को सक्षम करते हैं, विकास बैंक को वास्तविक विकास परियोजनाओं के लिए एक सफल वित्तीय संसाधन में बदलने में मदद कर सकते हैं.

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