नई दिल्ली : मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) आर एन चिब्बर अब हमारे बीच नहीं रहे. 23 सितंबर, 1934 को जन्मे, मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) चिब्बर 2 जून, 1955 को सेना में शामिल हुए थे. उन्होंने 86 वर्ष की उम्र में शनिवार को अंतिम सांस ली. चिब्बर अपने परिवार में पत्नी सुमन, बेटियों और उनके परिवारों को पीछे छोड़ गए हैं.
भारत-चीन युद्ध के अलावा जनरल चिब्बर ने 1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए दोनों युद्धों में भाग लिया था.
एक उत्कृष्ट सैन्य अधिकारी के रूप में अपनी पहचान रखने वाले मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) चिब्बर कर्नल के रूप में 8 जाट रेजिमेंट का नेतृत्व करते थे. सैन्य मामलों में उनकी विशेषज्ञता और असाधारण रणनीति ने उन्हें एक शानदार अधिकारी के रूप में सबसे आगे रखा.
1971 में हुए बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद, 1972 से 1975 तक मेजर चिब्बर अफगानिस्तान में मिलिट्री अताशे (Attache) के रूप में तैनात रहे थे. बता दें कि 'मिलिट्री अताशे' का पदनाम एक सैन्य विशेषज्ञ के लिए प्रयोग में लाया जाता है. आम तौर से यह एक राजनयिक मिशन से जुड़े व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जाता है, जो दूतावास से जुड़ा होता है. आम तौर पर एक उच्च श्रेणी के सैन्य अधिकारी को इस पद पर नियुक्त किया जाता है.
मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) चिब्बर न केवल सैन्य अधिकारी के रूप में असाधारण योग्यता के अधिकारी के रूप रखते थे, बल्कि मानवतावाद और करुणा से भरे इंसान के रूप में भी उनकी विलक्षण पहचान थी.
चिब्बर के निधन पर उनके सहयोगी रहे कर्नल (सेवानिवृत्त) माखन सिंह गिल ने कहा कि सिपाही के रूप में चिब्बर एक संत थे. उन्होंने बताया कि चिब्बर एक बहुत सम्मानित और प्रशंसित अधिकारी थे और जो लोग भी उन्हें जानते थे, उनसे बहुत प्यार करते थे.
अपनी सेवानिवृत्ति के तीन दशक बाद भी लोगों के दिलों में चिब्बर अविस्मरणीय बने हुए हैं. इसका प्रमाण वह शोक संदेश हैं, जो उनके निधन के बाद आने शुरू हुए. सैन्य अधिकारियों के मुताबिक जनरल चिब्बर दुर्लभ व्यक्तित्व थे जिन्हें पूरे सम्मान के साथ विदाई दी गई.