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पश्चिम बंगाल में ममता की राह कठिन, जीत हुई तो तय होगी उनकी राष्ट्रीय भूमिका

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Published : Mar 18, 2021, 8:39 PM IST

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव भाजपा बनाम अन्य हो चुका है. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ भगवा पार्टी का यह सबसे आक्रामक अभियान है. जिनका तीसरा कार्यकाल उनकी राष्ट्रीय भूमिका को बढ़ा सकता है. पश्चिम बंगाल चुनाव पर जीत-हार के राजनैतिक निहितार्थ को बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अमित अग्निहोत्री...

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नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी की भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय गठबंधन बनाने की महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है. वे नियमित रूप से पीएम मोदी और उनकी नीतियों की आलोचना करती हैं. चाहे वह 2016 में विवादास्पद नोटबंदी का मुद्दा हो या गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) के राजस्व का साझाकरण हो, नागरिकता संशोधन अधिनियम हो या आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति का मामला हो, सभी मुद्दों सहित ममता केंद्र पोषित कल्याणकारी योजनाओं की मुखालफत करती नजर आती हैं.

भाजपा विरोधी वोटों पर नजर

तृणमूल कांग्रेस नेता की राष्ट्रीय भूमिका के सपनों को इस तथ्य से समझना चाहिए कि वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी का एकमात्र राष्ट्रीय विकल्प कांग्रेस पूरे देश में सिकुड़ गई है. यही वजह है कि टीएमसी पश्चिम बंगाल के चुनावों में कांग्रेस के साथ-साथ अपने लंबे समय के वामपंथी दलों से भी लड़ रही है. जबकि सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्षी दल दोनों को पता है कि वे केवल भाजपा विरोधी वोटों को विभाजित कर रहे हैं.

ममता को मिलेगी सहानुभूति

हिंदुत्व कार्ड का बीजेपी को फायदा

पिछले वर्षों में हिंदुत्व, राष्ट्रवाद कार्ड खेलने से भाजपा को स्पष्ट रूप से लाभ हुआ है. यह इससे साबित होता है कि भगवा पार्टी ने 2019 में राज्य की कुल 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीटें जीती हैं. तब से पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भगवा पार्टी का एक आक्रामक अभियान चला रही है. भगवान राम की जय हो या राज्य सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप या फिर खराब कानून-व्यवस्था की स्थिति सभी आरोप नारों के साथ लग रहे हैं.

स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा

स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा

बंगाल की बेटी होने के नाते ममता के 'स्थानीय बनाम बाहरी' अभियान का उद्देश्य भगवा पार्टी का मुकाबला करना है. जिसने पिछले कई हफ्तों में कई टीएमसी नेताओं को एक संदेश भेजने के लिए उकसाया है कि पूर्वी राज्य में भाजपा बदलाव का प्रबल दावेदार है. ममता, जिन्हें एक स्ट्रीट फाइटर के रूप में जाना जाता है, ने अपनी पूरी ताकत के साथ भाजपा का विरोध करने का फैसला किया है. साथ ही राज्य भर में अभियान चलाकर भगवा पार्टी की चुनावी कहानी का मुकाबला करने की योजना बनाई है.

राष्ट्रीय भूमिका में ममता

भाजपा में स्थानीय संगठन कमजोर

मुख्यमंत्री ने दावा किया है कि चुनाव आयोग की निगरानी में उन पर हमला किया गया, जो एक सर्वेक्षण पैनल के साथ ही भाजपा द्वारा भी अस्वीकार कर दिया गया. हालांकि, बनर्जी की बैंडेड लेग की तस्वीर उनके साथ सहानुभूति रखने वालों के बीच प्रतिरोध का एक मजबूत प्रतीक बन गई है. इससे टीएमसी के पक्ष में कुछ अतिरिक्त प्रतिशत वोट गिरने में मदद मिल सकती है. भाजपा की सभी आक्रामकता के लिए भगवा पार्टी के पास पश्चिम बंगाल में एक मजबूत संगठन का अभाव है. यह स्थानीय नेताओं की कमी के कारण है जिसे पूरा करने के लिए भाजपा ने टीएमसी के नेताओं के बड़े पैमाने अपने साथ जोड़ा है.

भाजपा का विकल्प ममता

यदि ममता मुख्यमंत्री के रूप में एक तिहाई बहुमत जीतती हैं तो यह दिखाएगा कि वह राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की बाजीगरी को रोक सकती हैं. इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी मोर्चे का नेतृत्व करने के लिए ममता उपयुक्त हैं. हालांकि कांग्रेस के शीर्ष नेता इस विचार को पसंद नहीं कर सकते.

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हालांकि ममता बनर्जी को पहले ही राकांपा के प्रमुख शरद पवार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और द्रमुक प्रमुख एमके स्टालिन सहित कई प्रमुख विपक्षी नेताओं का समर्थन प्राप्त है.

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