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भारत-चीन के बीच विश्वास और आत्मविश्वास की बहाली में समय लगेगा : विशेषज्ञ

वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर महीनों से चल रहे सीमा संघर्ष को सुलझाने के लिए भारत और चीन के बीच वार्ता के कई चरणों बाद सफलता मिल ही गई. इस प्रगति पर विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक सकारात्मक कदम हैं, जिसका स्वागत करना चाहिए. इस पूरे मामले में पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी की यह खास रिपोर्ट.

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Published : Feb 12, 2021, 11:09 AM IST

Updated : Feb 12, 2021, 11:51 AM IST

नई दिल्ली:वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर महीनों से चल रहे सीमा संघर्ष को सुलझाने के लिए भारत और चीन के बीच वार्ता के कई चरणों बाद सफलता मिल ही गई और दोनों पक्षों ने पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिण में एक सहमति पर पहुंचे और समझौता किया.

इस पूरे विषय पर टिप्पणी करते हुए पूर्व भारतीय सेना ब्रिगेडियर और सुरक्षा जोखिम निदेशक एशिया, राहुल भोंसले ने कहा कि पैंगोंग त्सो झील के उत्तर और दक्षिण में पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर डी-एस्केलेशन और विघटन एक सकारात्मक विकास है.

वर्तमान स्थिति और जो समझौते किए गए हैं, अगर वहां यथास्थिति है, तो यह एलएसी के प्रबंधन के लिए पहला कदम हैं और जो अप्रैल 2020 के बाद सामने आई है, भारतीय पक्ष को बहुत सतर्क तरीके से चीजों को देखना चाहिए, क्योंकि पहली बार चीन ने इस तरह के समझौते किए जो कहते हैं कि जब तक कि विशेष प्रतिनिधि सीमा मुद्दाहल न कर लें, एलएसी पर शांति और यथास्थिति बनाए रखी जाएगी.

भोंसले ने एक ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि विश्वास और आत्मविश्वास की बहाली में समय लगेगा. मुझे उम्मीद है कि दोनों देश सही दिशा में मुद्दों को आगे बढ़ाएंगे.

भोंसले का कहना है कि वर्तमान में भरोसा कम है और यदि दोनों पक्ष उन समझौतों पर टिके रहते हैं, तो विश्वास का निर्माण किया जा सकता है और आगे भी यथास्थिति का उल्लंघन न करें.

इसके अलावा सामरिक मामलों के विशेषज्ञ, सुशांत सरीन ने कहा कि यह एक सफलता नहीं है, लेकिन यह सीमा संघर्ष को स्थिर करने के लिए पहला कदम है, क्योंकि तनाव और बकाया मुद्दे बने हुए हैं.

उन्होंने कहा, ' जो कुछ हुआ, हमें इस बात का स्वागत करना चाहिए, लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमें जश्न मनाने की जरूरत है, क्योंकि हमें नहीं पता कि यह कैसे आगे बढ़ेगा. हालांकि यह डील आपत्तिजनक नहीं है.'

उन्होंने कहा कि यदि दोनों पक्ष उस क्षेत्र से पीछे हट रहे हैं, जहां समस्या है और अगर दोनों पक्ष अपने स्थायी ठिकानों पर वापस चले जाते हैं. इतना ही नहीं संघर्ष वाले क्षेत्रों में भी गश्त नहीं करते, जहां दोनों सेनाएं पहले गश्त कर रही थीं, तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए.

इससे पहले रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यसभा में कहा कि चीन की घुसपैठ की कोशिशों को भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया था. चीन द्वारा पिछले वर्ष अप्रैल-मई, 2020 के दौरान भारी मात्रा में सशस्त्र बल और गोला बारूद जमा किए गए थे. चीन ने कई बार ट्रांसग्रेशन की भी कोशिश की थी.

उन्होंने कहा कि भारत और चीन के बीच पिछले साल सितंबर से ही मिलिट्री और डिप्लोमैटिक माध्यमों से संपर्क बना हुआ है. इसका मकसद है कि क्षेत्र में शांति कायम करना है.

सिंह ने कहा कि फ्रिक्शन क्षेत्रों में डिसइंगेजमेंट के लिए भारत का यह मत है कि 2020 की फॉरवर्ड डिप्लॉयमेंट जो एक-दूसरे के बहुत नजदीक हैं, वे दूर हो जाएं. दोनों सेनाएं वापस अपनी-अपनी स्थाई एवं मान्य चौकियों पर लौट जाएं. उसके बाद भी 48 घंटे के भीतर दोनों देशों के बीच बैठक होगी.

इस पर सरीन का कहना है कि यह सवाल उठता है कि क्या भारत और चीन दोनों के द्वारा रक्षा मंत्री पर प्रकाश डालने से दोनों पक्षों के बीच समझ बढ़ेगी? उदाहरण के लिए, चीनियों ने पैंगोंग झील के कुछ क्षेत्रों में संरचनाओं का निर्माण किया है जिन्हें समझ के अनुसार नष्ट कर दिया जाएगा.

अगर यह सब हो जाता है और दोनों पक्ष LAC पर कुछ अन्य बकाया मुद्दों से निपटना शुरू करते हैं, तो मुझे लगता है कि ऐसा करना एक समझदारी की बात है. उन्होंने कहा कि एकमात्र बिंदु यह है कि तनाव तब तक रहेगा जब तक दोनों पक्षों की सेनाएं वापस नहीं आ जाती हैं जहां वे लगभग एक साल पहले हैं.जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक कुछ नहीं कहा जा सकता.

दूसरी बात यह है कि आखिरकार एलएसी के साथ-साथ भारत के लिए कुछ हद तक स्थिरता आ सकती है, जो भारत कह रहा है कि हमें इसकी आवश्यकता है और यदि ऐसा होता है, तो यह और भी बेहतर है, लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता, मुझे लगता है कि हमें एक बार में एक कदम उठाने की जरूरत है.

पढ़ें - भारत ने एलएसी पर चीन के 1959 के दावे को 'मजबूती' दी : रक्षा विश्लेषक

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यह भी कहा कि भारत एक इंच जमीन किसी को नहीं दी जाएगी और टकराव के बाद भारत ने कुछ भी नहीं खोया है. रक्षा मंत्री ने कहा कि सुरक्षा बलों ने साबित कर दिया है कि वे देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हैं.

मंत्री सिंह ने यह भी कहा कि पैंगोंग झील क्षेत्र में विस्थापन के लिए दोनों पक्षों द्वारा किए गए समझौते की परिकल्पना है कि दोनों पक्ष चरणबद्ध, समन्वित और सत्यापित तरीके से अपनी आगे की तैनाती को समाप्त कर देंगे. चीनी पक्ष नॉर्थ बैंक क्षेत्र में फिंगर 8 के पूर्व में अपनी सैन्य उपस्थिति बनाए रखेगा.

राजनाथ सिंह ने कहा, चीन उत्तर पैंगोंग झील के फिंगर 8 के पूर्व में अपने सैनिकों को रखेगा. भारत अपने सैनिकों को फिंगर 3 के पास अपने स्थायी बेस पर रखेगा. ऐसा ही तरीका साउथ बैंक के पास अपनाया जाएगा. अप्रैल 2020 के बाद दोनों देशों ने नॉर्थ और साउथ बैंक पर निर्माण किया है, उसे हटाया जाएगा राजनाथ सिंह ने कहा, हम वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांतिपूर्ण स्थिति बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं. भारत ने हमेशा द्विपक्षीय संबंधों को बनाए रखने पर जोर दिया है.

विशेषज्ञ राहुल भोंसले आगे कहते हैं कि यह दुनिया में बड़े पैमाने पर एक गलत संदेश भेजता है कि दो बड़ी शक्तियां अपने रिश्ते का प्रबंधन करने में सक्षम नहीं हैं. अब यह विघटन हुआ है, तो यह भी एक संदेश देगा कि भारत और चीन सीमा वृद्धि को प्रभावी ढंग से प्रबंधित कर सकते हैं.

पिछले साल जून में, गलवान घाटी में लोहे की छड़ों और पत्थरों से हुए संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक मारे गए थे. यह 45 वर्षों में सीमा पर पहली बार हुआ था. इस घटना में चीन भी चीन के कई सैनिक हताहत हुए थे.

Last Updated : Feb 12, 2021, 11:51 AM IST

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