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सुप्रीम कोर्ट एससी/एसटी को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए मानदंड तय नहीं करेगा, राज्य सरकारों को दी बड़ी जिम्मेदारी

एससी/एसटी को प्रमोशन में आरक्षण मिलने का क्या आधार हो, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि वह प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए अपनी ओर से कोई मानदंड तय नहीं करेगा. कोर्ट ने कहा कि इस बाबत पहले से जो मानदंड बने हुए हैं, वही लागू रहेंगे. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरक्षण के लिए जरूरी है कि संबंधित क्वांटिटेटिव आंकड़ा सामने आए, और सरकारों में उनका प्रतिनिधित्व कितना है, इसकी जानकारी मिले. कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि क्वांटिटेटिव आंकड़ों को जुटाने का काम राज्य सरकारों का है.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Jan 28, 2022, 9:29 AM IST

Updated : Jan 28, 2022, 4:57 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था पर बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि वह प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए अपनी ओर से कोई मानदंड तय नहीं करेगा. यह अधिकार राज्यों का है. मामला सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को प्रमोशन में आरक्षण का था.

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी आर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि राज्य सरकारें एससी/एसटी के प्रतिनिधित्व में कमी के आंकड़े एकत्र करने के लिए बाध्य हैं. पीठ ने कहा कि बहस के आधार पर हमने दलीलों को छह बिंदुओं में बांटा है. कोर्ट ने साफ कर दिया कि जरनैल सिंह और नागराज मामले के आलोक में हमने कहा है कि हम कोई मानदंड निर्धारित नहीं कर सकते.

पीठ ने कहा, 'क्वांटिटेटिव आंकड़ों को एकत्रित करने के लिहाज से हमने कहा है कि राज्य इन आंकड़ों को एकत्रित करने के लिए बाध्य हैं.' शीर्ष अदालत ने कहा कि एससी/एसटी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के संबंध में सूचनाओं को एकत्रित करने को पूरी सेवा या श्रेणी से जोड़कर नहीं देखा जा सकता, बल्कि इसे उन पदों की श्रेणी या ग्रेड के संदर्भ में देखा जाना चाहिए जिन पर प्रोन्नति मांगी गयी है.

पीठ ने कहा, 'यदि एससी/एसटी के प्रतिनिधित्व से संबंधित आंकड़े पूरी सेवा के संदर्भ में होते हैं तो पदोन्नति वाले पदों के संबंध में क्वांटिटेटिव आंकड़ों को एकत्रित करने की इकाई, जो कैडर होनी चाहिए, निरर्थक हो जाएगी. सही अनुपात में प्रतिनिधित्व के संदर्भ में शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने इस पहलू को नहीं देखा है और संबंधित कारकों को ध्यान में रखते हुए पदोन्नति में एससी/एसटी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का पता लगाने का काम राज्यों पर छोड़ दिया है. न्यायालय ने 26 अक्टूबर, 2021 को अपना फैसला सुरक्षित रखा था.

इससे पहले, केंद्र ने पीठ से कहा था कि सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को पदोन्नति में आरक्षण लागू करने के लिए केंद्र सरकार तथा राज्यों के लिहाज से एक निश्चित आधार तैयार किया जाए. केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि एससी/एसटी को सालों तक मुख्यधारा से अलग रखा गया है और हमें उन्हें समान अवसर देने के लिए देश के हित में समानता (आरक्षण के संदर्भ में) लानी होगी.

अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि अगर आप राज्यों और केंद्र के लिए निश्चित निर्णायक आधार निर्धारित नहीं करते तो बड़ी संख्या में याचिकाएं आएंगी. इस मुद्दे का कभी अंत नहीं होगा कि किस सिद्धांत पर आरक्षण देना है. वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत के 1992 के इंदिरा साहनी मामले से लेकर 2018 के जरनैल सिंह मामले तक का जिक्र किया. इंदिरा साहनी मामले को मंडल आयोग मामले के नाम से जाना जाता है. मंडल आयोग के फैसले में पदोन्नति में आरक्षण की संभावना को खारिज कर दिया गया था. मामले पर अगली सुनवाई 24 फरवरी को होगी.

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में जरनैल सिंह मामले में एक फैसला दिया था. इसके मुताबिक राज्यों को कुछ आवश्यक शर्तों को पूरा करने के बाद SC/ST को पदोन्नति में आरक्षण देने की अनुमति मिली थी, लेकिन उसके बाद भी राज्य सरकारें फैसले में स्पष्टता के अभाव में आरक्षण लागू नहीं कर पा रहे हैं. केंद्र ने कोर्ट से स्पष्टता और थोड़ी रियायत की प्रार्थना की थी.

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Last Updated : Jan 28, 2022, 4:57 PM IST

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