वाराणसी :काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University-BHU) के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Technology-IIT) स्थित मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग विभाग (metallurgical engineering department) में विशेषज्ञों ने निकल मुक्त सर्जिकल ग्रेड स्टेनलेस स्टील (Nickel Free Surgical Grade Stainless Steel) की धातु का शोध करने में सफलता प्राप्त कर ली है. यह धातु मानव शरीर में अंग प्रत्यारोपण में उपयोग होने वाली धातुओं टाइटेनियम, कोबाल्ट-क्रोमियम और ’निकल’ युक्त स्टेनलेस स्टील से सस्ता और बेहद सुरक्षित भी है.
दरअसल, भारत में हड्डी टूटने के इलाज में प्रयुक्त होने वाली धातु ऑपरेशन के बाद परेशानी का सबब बनती है. वर्तमान में टाइटेनियम, कोबाल्ट-क्रोमियम और निकल आधारित सर्जिकल ग्रेड स्टेनलेस स्टील की धातु जैसे (316एल) का इस्तेमाल अंग प्रत्यारोपण में किया जा रहा है. इसमें टाइटेनियम और कोबाल्ट-क्रोमियम से बने उत्पाद बेहद महंगे होते हैं. इनके साथ कई प्रकार की समस्याएं भी जुड़ी होतीं हैं. स्टेनलेस स्टील (316एल) एक निकल आधारित धातु है जो सस्ती होती है. परंतु इसमें मौजूद निकल तत्व से मानव त्वचा में एलर्जी, कैंसर, सूजन, बैचेनी, प्रत्यारोपण क्षेत्र की त्वचा में परिवर्तन जैसी दिक्कतें होने लगतीं हैं.
इस संबंध में जानकारी देते हुए मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग (metallurgical engineering) के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ. गिरिजा शंकर महोबिया (Associate Professor Dr. Girija Shankar Mahobia) ने बताया कि निकल तत्व के सामान्य दुष्प्रभाव थकान, सूजन एवं त्वचा एलर्जी है. कुछ परिस्थितियों में फेफड़े, दिल और किडनी से जुड़ी बीमारी होने का भी खतरा पैदा हो सकता है. शरीर के अंदर धातु में जंग लगने से विभिन्न तत्व के साथ निकल भी बाहर निकलने लगता है. इसके घुलने की क्षमता बीस मिलीग्राम प्रति किलो हो सकता है जो बहुत खतरनाक है. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ऐसी सस्ती और प्रभावी धातु का आविष्कार जरूरी हो गया था जिसमें निकल नाममात्र हो ताकि शरीर पर इसका कोई दुष्प्रभाव न पड़े.
नई धातु वजन में हल्की और मजबूती में दोगुनी
डाॅ. गिरिजा शंकर महोबिया ने बताया कि उपरोक्त कार्य आत्मनिर्भर भारत (Atmanirbhar Bharat) की दिशा में IIT (BHU) का एक महत्वपूर्ण कदम हैं. इसके लिए अप्रैल 2020 में पेटेंट फाइल किया गया है. यह स्टील चुंबक से नहीं चिपकता. नई धातु की ताकत वर्तमान में प्रयुक्त होने वाली धातु से दोगुनी है. इससे इससे बनने वाले उपकरण का वजन आधा रह जाएगा. शरीर के अनुकूल होने के कारण इसे दिल से जुड़े उपकरण जैसे स्टेंट, पेसमेकर, वाॅल्व आदि को बनाने में भी प्रयोग किया जा सकता है.
नई धातु में अशुद्धि बिल्कुल नहीं है जिससे इसकी थकान रोधी गुण बहुत अच्छी है. मानव शरीर के अंदर प्रत्यारोपित धातु पर मानव के वजन के अनुसार अलग-अलग अंगों पर अतिरिक्त भार पड़ता है जो तीन-चार गुना ज्यादा होता है. सामान्य और स्वस्थ मानव 7 से 10 किलोमीटर प्रतिदिन चलता है. औसतन एक से दो लाख कदम हर साल चलता है. नई धातु निकल रहित होने के कारण 100 रुपये प्रति किलोग्राम सस्ती भी पड़ेगी.
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भारत सरकार से वर्ष 2016 में मिली थी इस शोध को हरी झंडी
डॉ. जीएस महोबिया, एसोसिएट प्रोफेसर, मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग, IIT (BHU) ने बताया कि मैकनिकल-मेटजर्ली के विशेषज्ञ प्रोफेसर वकील सिंह से प्रेरणा लेकर वर्ष 2015 में इस्पात मंत्रालय को निकल रहित धातु बनाने के लिए प्रोजेक्ट जमा किया. अन्तर्विषयी और समाज कल्याण (Interdisciplinary and Social Welfare) से जुड़े होने के कारण जनवरी वर्ष 2016 में इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी मिल गयी.
इस्पात मंत्रालय ने 284 लाख का फंड तीन वर्षों के लिए प्रदान किया और ’सक्षारण थकान रिसर्च लैब’ (Corrosion fatigue laboratory) की स्थापना मेटलर्जिकल विभाग में की गई. प्रोजेक्ट टीम में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Technology) BHU के साथ चिकित्सा विज्ञान संस्थान (medical science institute), काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय कोशिका विज्ञान केंद्र पुणे (National Center for Cytology- Pune), श्री चित्रा तिरुनाल आयुर्विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान त्रिवेंद्रम (Sree Chitra Tirunal Institute of Medical Sciences and Technology- Trivandrum), मिश्र धातु निगम लिमिटेड-हैदराबाद (Mishra Dhatu Nigam Limited-Hyderabad) एवं जिंदल स्टेनलेस लिमिटेड-हिसार (Jindal Stainless Limited - Hisar) के विशेषज्ञों की मदद ली गई.
शोध को पूरा करने में विशेषज्ञों की अहम भूमिका
मुख्य अन्वेषक डाॅ. जीएस महोबिया और डाॅ. ओपी सिन्हा ने नए धातु की रासायनिक संरचना को डिजाइन किया. मिश्र धातु निगम लिमिटेड-हैदराबाद में उसका उत्पादन करवाया. नई धातु से निकल को हटाकर नाइट्रोजन और मैंगनीज को मिलाया गया. साथ ही अन्य घटक जैसे क्रोमियम और मॉलिब्डेनम को एक अनुकूल अनुपात में मिलाया गया है. इससे धातु की यांत्रिक गुण और जंग विरोधी गुण वर्तमान में प्रयुक्त होने वाले स्टेनलेस स्टील की तुलना में ज्यादा हो गई.
प्रोफेसर वकील सिंह ने पूरे प्रोजेक्ट में एक सलाहकार के रूप अपना योगदान दिया. श्री चंद्रशेखर कुमार पीएचडी शोध छात्र ने संक्षारण थकान और जंगरोधी गुण का परीक्षण सभी अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के अनुसार विस्तार से किया. डॉ संजीव महतो, स्कूल ऑफ बायोमेडिकल इंजीनियरिंग (School of Biomedical Engineering), IIT (BHU) ने हड्डी कोशिकाओं के धातु से चिपकने और उसकी जीवित रहने की जांच की.
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स्टेम सेल पर अध्ययन
प्रोफेसर मोहन आर. वानी, सीनियर वैज्ञानिक ने स्टेम सेल के धातु से चिपकने और उसके जीवित रहने का अध्ययन किया. यह पाया कि निकल रहित धातु शरीर के अनुकूल है. इस धातु का शरीर के अंदर की कोशिकाओं और रक्त के साथ क्या प्रभाव हो सकता है, इसका परीक्षण त्रिवेंद्रम स्थित लैब में अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार विभिन्न जानवरों जैसे चूहों, खरगोश और सुअर पर किया गया. सारे परीक्षण में नयी धातु को शरीर के अनुकूल पाया गया. किसी भी जानवरों पर दुष्प्रभाव नहीं पाया गया. चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू के प्रोफेसर अमित रस्तोगी ने खरगोशों पर नयी धातु का विस्तृत परीक्षण किया और यह पाया कि नयी धातु बिल्कुल सुरक्षित है. डाॅ. एन शांथी श्रीनिवासन और डॉ. कौशिक चट्टोपाध्याय ने इस धातु के यांत्रिक व्यवहार को समझने की भूमिका निभाई है.
प्रोफेसर प्रमोद कुमार जैन, निदेशक, IIT (BHU) ने बताया कि किसी भी नई धातु का शरीर में प्रयोग करने के लिए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization-CDSCO), भारत सरकार से अनुमति लेनी होती है. जैसा कि वर्तमान में हम कोरोना वैक्सीन पर देख रहे हैं. वैसे ही अलग-अलग स्तर पर मानव परीक्षण पर इसकी उपयोगिता सिद्ध करनी होगी. इस्पात और स्वास्थ्य मंत्रालय से नई धातु के उपयोग जनमानस के लिए करने हेतु आवश्यक कदम उठाने की अपील की जाएगी. अलग-अलग इस्पात निर्माताओं और प्रत्यारोपण उपकरण बनाने वाले उद्योगों ने अपनी रूचि भी दिखाई है.