श्रीनगर: इस वक्त पूरी दुनिया पर्यावरण में असंतुलन की बात कर रही है. सबकी चिंता तेजी से पिघलते ग्लेशियर और टिम्बर लाइन के खिसकने को लेकर है. विकास की इस अंधाधुंध दौड़ में हमने न सिर्फ अपना जीवन, बल्कि जलीय जीवों के प्राण भी संकट में डाल दिए हैं. शोध में ये चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है.
नदियों में बढ़ते प्रदूषण के कारण मछलियों के प्राण संकट में हैं. जलीय प्रदूषण का मछलियों के क्रमिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. दरअसल, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिमालयी जलीय जैव विविधता विभाग ने मछलियों को लेकर ऋषिकेश से हरिद्वार तक शोध किया था. शोध मछलियों की चार प्रजातियों पर किया गया. जिसमें सामने आया कि मछलियों के पेट से प्लास्टिक मिला है, जो उनके क्रमिक विकास को प्रभावित कर रहा है.
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कूड़ा प्रबंधन की उचित व्यवस्था न होना और नदियों में अनियंत्रित पर्यटन गतिविधियां मछलियों की सेहत पर भारी पड़ रही हैं. गढ़वाल विवि के एक शोध के अनुसार मछलियों के शरीर में प्लास्टिक पाया गया है. सबसे बुरी स्थिति ऋषिकेश और हरिद्वार में गंगा में पाई जाने वाली मछलियों की है.
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विवि के हिमालयी जलीय जैव विविधता विभाग (हिमालयन एक्वेटिक बायोडावर्सिटी डिपार्टमेंट) ने देवप्रयाग से हरिद्वार तक गंगा नदी की मछलियों पर अध्ययन किया है. शोध के लिए हिमालयी जलीय जैव विविधता विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जसपाल सिंह चौहान और शोध छात्रा नेहा बडोला ने इस पूरे क्षेत्र को दो जोन (देवप्रयाग से ऋषिकेश और ऋषिकेश से हरिद्वार) में बांटा.
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शोध में चौंकाने वाले तथ्य: देवप्रयाग से ऋषिकेश को पहाड़ी क्षेत्र और ऋषिकेश से हरिद्वार को मैदानी क्षेत्र माना गया. शोध में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. देवप्रयाग से हरिद्वार तक किए शोध में मछलियों के पेट में प्लास्टिक पाया गया है, जिसमें कपड़ों के रेशे, थर्माकोल आदि प्लास्टिक शामिल हैं.