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गंगा की मछलियों का दुश्मन बना इंसान, फिश में मिले माइक्रो प्लास्टिक, प्रदूषण में संत नगरी और धर्म नगरी नंबर 1

Research of Garhwal Central University गंगा और उसकी सहायक नदियों में बढ़ता जल प्रदूषण न सिर्फ इंसानों, बल्कि मछलियों के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है. इसको लेकर हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिमालयी जलीय जैव विविधता विभाग ने एक शोध किया है, जिसमें इस तरह के खतरे की बात सामने आई है. गंगा में मछलियों के लिए सबसे ज्यादा घातक जगह ऋषिकेश और हरिद्वार साबित हो रही है.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 25, 2023, 2:16 PM IST

Updated : Aug 25, 2023, 4:53 PM IST

मछलियों में मिले माइक्रो प्लास्टिक

श्रीनगर: इस वक्त पूरी दुनिया पर्यावरण में असंतुलन की बात कर रही है. सबकी चिंता तेजी से पिघलते ग्लेशियर और टिम्बर लाइन के खिसकने को लेकर है. विकास की इस अंधाधुंध दौड़ में हमने न सिर्फ अपना जीवन, बल्कि जलीय जीवों के प्राण भी संकट में डाल दिए हैं. शोध में ये चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है.

देवप्रयाग से हरिद्वार तक गंगा नदी की मछलियों पर अध्ययन गया.

नदियों में बढ़ते प्रदूषण के कारण मछलियों के प्राण संकट में हैं. जलीय प्रदूषण का मछलियों के क्रमिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. दरअसल, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिमालयी जलीय जैव विविधता विभाग ने मछलियों को लेकर ऋषिकेश से हरिद्वार तक शोध किया था. शोध मछलियों की चार प्रजातियों पर किया गया. जिसमें सामने आया कि मछलियों के पेट से प्लास्टिक मिला है, जो उनके क्रमिक विकास को प्रभावित कर रहा है.
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कूड़ा प्रबंधन की उचित व्यवस्था न होना और नदियों में अनियंत्रित पर्यटन गतिविधियां मछलियों की सेहत पर भारी पड़ रही हैं. गढ़वाल विवि के एक शोध के अनुसार मछलियों के शरीर में प्लास्टिक पाया गया है. सबसे बुरी स्थिति ऋषिकेश और हरिद्वार में गंगा में पाई जाने वाली मछलियों की है.

गंगा की मछलियों का दुश्मन बना इंसान

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विवि के हिमालयी जलीय जैव विविधता विभाग (हिमालयन एक्वेटिक बायोडावर्सिटी डिपार्टमेंट) ने देवप्रयाग से हरिद्वार तक गंगा नदी की मछलियों पर अध्ययन किया है. शोध के लिए हिमालयी जलीय जैव विविधता विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जसपाल सिंह चौहान और शोध छात्रा नेहा बडोला ने इस पूरे क्षेत्र को दो जोन (देवप्रयाग से ऋषिकेश और ऋषिकेश से हरिद्वार) में बांटा.

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शोध में चौंकाने वाले तथ्य: देवप्रयाग से ऋषिकेश को पहाड़ी क्षेत्र और ऋषिकेश से हरिद्वार को मैदानी क्षेत्र माना गया. शोध में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. देवप्रयाग से हरिद्वार तक किए शोध में मछलियों के पेट में प्लास्टिक पाया गया है, जिसमें कपड़ों के रेशे, थर्माकोल आदि प्लास्टिक शामिल हैं.

नेहा बडोला, शोध छात्रा, गढ़वाल विवि

हरिद्वार और ऋषिकेश में समस्या बड़ी: शोधकर्ताओं का कहना है कि कूड़ा निस्तारण की उचित व्यवस्था न होना, कूड़े को गंगा व उसकी सहायक नदियों में प्रवाहित करना और पर्यटन के नाम पर नदियों के किनारे अनियंत्रित गतिविधियां इसका कारण हैं. शोध में दोनों जोन का तुलनात्मक अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हुआ है कि हरिद्वार व ऋषिकेश की मछलियों में यह समस्या सबसे अधिक पाई गई है. इस शोध में 24 से अधिक सैम्पल लिए गए थे.

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इन चार प्रजाति की मछलियों पर हुआ अध्ययन: शोध के लिए गंगा नदी में मिलने वाली मछलियों की चार प्रमुख प्रजातियों गारा, लेबियो, टोर और स्कीजोथोरेक्स के पेट के नमूने लिए गए थे. इनके पेट में पॉलीमर, माइक्रो प्लास्टिक और कपड़ों के रेशे के अवशेष मिले.

डॉ. जसपाल सिंह चौहान, विभागाध्यक्ष, हिमालयन एक्वेटिक बायोडायवर्सिटी

ऐसे तो गायब हो जाएंगी मछलियां: पूर्व में गढ़वाल विवि के हिमालयी जलीय विविधता विभाग ने अलकनंदा नदी में जलीय प्रदूषण पर शोध किया था, जिसमें यह स्पष्ट हुआ था कि मछलियां प्रदूषित जल और सामग्री को भोजन के रूप में निगल रही हैं. शोधकर्ता नेहा बडोला बताती हैं कि अगर इसी तरह नदियों में प्रदूषण बढ़ेगा, तो एक दिन मछलियां नदियों से गायब होने लगेंगी.

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मछलियों के अंदर पाया गया गया प्लास्टिक मछलियों के साथ-साथ मानव जीवन को बुरी तरह प्रभावित करेगा. वहीं, इस शोध को दिशा देने वाले डॉ. जसपाल सिंह चौहान ने बताया कि शोध में मछलियों के पेट में हानिकारक माइक्रो प्लास्टिक, कपड़ों के रेशे और थर्माकोल आदि के अवशेष मिले हैं, जो खतरे की तरफ इशारा कर रहे हैं.

Last Updated : Aug 25, 2023, 4:53 PM IST

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