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भारत में बचपन अब भी भुखमरी की कगार पर : रिपोर्ट

इस साल की शुरुआत में, नीति आयोग ने खुलासा किया था कि झारखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा, राजस्थान, मेघालय और उत्तर प्रदेश सहित कुल 25 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश भूख और कुपोषण से निपटने में असफल रहे हैं. इसके साथ ही कोरोना महामारी से स्कूल बंद होने के कारण कई बच्चे मिड डे मील से वंचित हो चुके हैं. आइये भारत में कुपोषण की स्थिति पर एक नजर डालते हैं...

भारत में बचपन अब भी भुखमरी की कगार पर : रिपोर्ट
भारत में बचपन अब भी भुखमरी की कगार पर : रिपोर्ट

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Published : Nov 27, 2020, 12:25 PM IST

Updated : Nov 27, 2020, 12:36 PM IST

हैदराबाद : वैश्विक भुखमरी सूचकांक से पता चलता है कि सात दशक पुराने गणतंत्र भारत में बचपन अभी भी भुखमरी की कगार पर है. विभिन्न अध्ययनों के अनुसार, देश में लगभग 19 करोड़ लोग कुपोषण से ग्रस्त हैं. लांसेट में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि भारत 2022 तक राष्ट्रीय पोषण मिशन 'पोषण अभियान' द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो सकता है. अब 'नीति आयोग' की रिपोर्ट भी इसी बात की पुष्टि कर रही है!

बच्चों का विकास अवरुद्ध
देश में पांच वर्ष से कम आयु के एक तिहाई से अधिक बच्चे उचित पोषण की कमी के कारण पूरी तरह से बढ़ नहीं पा रहे हैं. 1 से 4 वर्ष की आयु के 40 प्रतिशत बच्चे, 50 प्रतिशत से अधिक गर्भवती महिलाएं एनीमिया यानि खून की कमी से पीड़ित हैं. 'पोषण अभियान' का मूल लक्ष्य 2022 तक नवजात शिशुओं, किशोरियों, गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाओं में छह प्रतिशत और एनीमिया के बढ़ते मामलों में छह प्रतिशत की कमी लाकर एनीमिया को नियंत्रित करना है.

गिरफ्त में लेगा पोषण का संकट
यह उद्देश्य कोविड वायरस के प्रकोप के फैलने से पहले तय किया गया था. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हाल ही में अनुमान लगाया है कि रोजगार के अवसरों में गिरावट के कारण, इस वर्ष के अंत तक दुनिया भर के करोड़ों लोगों को पोषण का संकट अपनी गिरफ्त में ले लेगा. यूएनडीपी (संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम) का अनुमान है कि सिर्फ भारत में अत्यधिक गरीबी में रहने वाली महिलाओं की संख्या 10 करोड़ तक पहुंच जाएगी.

तदनुसार, 'पोषण अभियान' के कार्यान्वयन में तेजी लाने के अलावा, वितरण और निगरानी के मामले में मौजूद खाई को सक्रिय रूप से भरना सरकारों की दक्षता के लिए एक कठिन परीक्षा होगी!

आने वाले दस वर्षों में (वर्ष 2030 तक) भूख रहित एक समृद्ध दुनिया संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों में से एक प्रमुख लक्ष्य है. हमारे देश में इस लक्ष्य को प्राप्त करने के रास्ते में बहुत सारी बाधाएं हैं. यहां खाए जाने वाले 84 प्रतिशत शाकाहारी भोजन में पर्याप्त प्रोटीन नहीं पाया जाता है. संतुलित आहार पर उचित समझ न होने के कारण लगभग 70% भारतीय शारीरिक योग्यता की कमी से पीड़ित हैं. शहरी बच्चों और किशोरों पर यूनिसेफ और एनआईयूए (नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर अर्बन अफेयर्स) के संयुक्त अध्ययन में शिशु मृत्यु दर, एनीमिया और कुपोषण की गंभीरता पर प्रकाश डाला गया है.

मिड डे मील से वंचित बच्चे
कोविड संकट के चलते देशभर में स्कूलों को बंद करने के कारण 9.5 करोड़ छात्रों को मध्याह्न भोजन से वंचित कर दिया गया है. यह कल्पना कर पाना मुश्किल है कि न जाने कितने दुर्भाग्यपूर्ण बच्चे अपने आपको भुखमरी के खतरों से बचने के लिए असमर्थता से भरे बाल मजदूरी के रास्ते को चुनने पर मजबूर कर दिए गए हैं. नीति आयोग के अनुसार, 60 प्रतिशत तक बाल विकास के दौरान आए दोष आसानी से ठीक किए जा सकते हैं यदि ठीक से बच्चे को स्तनपान कराया जाए. यदि माताएं स्वयं एनीमिया से पीड़ित हैं, तो उनके बच्चों को प्राकृतिक पोषण कैसे मिल सकता है?

उचित कदम उठाए सरकार
पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु 68 प्रतिशत कुपोषण के कारण हो जाती है. इस साल की शुरुआत में, नीति आयोग ने खुलासा किया था कि झारखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा, राजस्थान, मेघालय और उत्तर प्रदेश सहित कुल 25 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश भूख और कुपोषण से निपटने में असफल रहे हैं. ऐसे समय में जब पीड़ितों की दुर्दशा बढ़ती जा रही है, सरकारों को आंगनवाड़ी केंद्रों की ज़िम्मेदारी लेने के लिए जल्दी क़दम आगे बढ़ने की जरूरत है. स्थानीय बदमाशों पर नकेल कसकर व्यवस्था को सुचारु करें और आहार की वितरण प्रणाली को मजबूत बनाने का कार्य अतिशीघ्र करें!

Last Updated : Nov 27, 2020, 12:36 PM IST

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