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Makar Sankranti 2023 : मकर संक्रांति पर इसलिए खाई जाती है खिचड़ी, जानिए धार्मिक मान्यताएं और परंपरा

मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने की धार्मिक मान्यता और परंपरा है. खिचड़ी खाने और दान करने से सूर्य व शनि देव प्रसन्न होते हैं. साथ ही कष्ट भी दूर होते हैं. इसके अलावा खिड़की खाने की परंपरा बाबा गोरखनाथ से जुड़ी है और तब से चली आ रही है.

Importance of eating Khichdi on Makar Sankranti
मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने का महत्व

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Published : Jan 13, 2023, 11:40 AM IST

दिल्लीः मकर संक्रांति को सनातन धर्म में प्रमुख त्योहार माना जाता है. सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है. इस साल 15 जनवरी को ही मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जा रहा है. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, सूर्य जब मकर राशि में जातें हैं तो उसे मकर संक्रांति कहते हैं. मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान और दान को बहुत ही ज्यादा शुभ माना गया है. इस दिन किए गए गंगा स्नान को महा स्नान माना जाता है. मकर संक्रांति को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है. इस दिन खिचड़ी के सेवन का विशेष महत्व है.

मकर संक्रांति पर इसलिए खाई जाती है खिचड़ी
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी मुख्य भोजन माना जाता है. धार्मिक दृष्टि से इस दिन खिचड़ी खाना बेहद शुभ होता है. इससे सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. इसके अलावा खिचड़ी का संबंध किसी न किसी ग्रह से रहता है. खिचड़ी में इस्तेमाल होने वाले चावल का संबंध चंद्रमा से होता है. खिचड़ी में डाली जाने वाली उड़द की दाल का संबंध शनिदेव हो होता है. जबकि खिचड़ी में घी का संबंध सूर्य देव से होता है. इसलिए मकर संक्रांति की खिचड़ी को बेहद खास माना गया है. मकर संक्रांति पर खिचड़ी का सेवन करने के अलावा दान पुण्य भी शास्त्रों में जरुरी बताया गया है. मकर संक्रांति के दिन चालव और उड़द की दाल का दान किया जाता है.

ये है मान्यता
मान्यता है कि ताजा-ताजा धान की कटाई होने के बाद चावल को पकाकर उसे खिचड़ी के रूप में सबसे पहले सूर्य देवता को भोग लगाया जाता है. इससे सूर्य देवता आशीर्वाद देते हैं. इस दिन भगवान सूर्य के साथ-साथ भगवान विष्णु की भी पूजा अर्चना की जाती है. मकर संक्रांति पर सूर्य देव को तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें गुड, गुलाब की पत्तियां डालकर अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन गुड़, तिल और खिचड़ी का सेवन करना भी शुभ माना जाता है.

खिचड़ी खाने की परंपरा
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने और इसके दान को लेकर बाबा गोरखनाथ की एक कथा प्रचलित है. कहा जाता है कि जब खिलजी ने आक्रमण किया था, तब चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था. नाथ योगियों को युद्ध के दौरान भोजन बनाने का समय नहीं मिलता था. ऐसे में भोजन न मिलने से वे कमजोर होते जा रहे थे. उस समय बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियों को एक साथ मिलाकर पकाने की सलाह दी. ये आसानी से जल्‍दी पक जाता था और इससे शरीर को पोषक तत्‍व भी मिल जाते थे और यो‍गियों का पेट भी भर जाता था. बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा. खिलजी से मुक्त होने के बाद मकर संक्रांति के दिन योगियों ने उत्सव मनाया और उस दिन इस खिचड़ी को लोगों के बीच बांटा. उस दिन से मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाकर खाने और इसे बांटने की प्रथा चली आ रही है. मकर संक्रांति के मौके पर गोरखपुर के बाबा गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी मेला भी लगता है. इस दिन बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है.

खिचड़ी सेवन करने के फायदे
दही चूड़ा और खिचड़ी को लेकर धार्मिक मान्यता के अलावा वैज्ञानिक महत्व भी होता है. दही चूड़ा और खिचड़ी को पोष्टिक आहार माना जाता है. ये आसानी से पच जाता है. साथ ही दही पाचन क्रियाओं को ठीक रखने का काम करता है. वहीं चूड़ा चावल से बनता है, इसमें फाइबर की मात्रा बहुत अधिक होती है, जो पाचन शक्ति को दुरुस्त करता है. बिहार और उत्तर प्रेदश में ये मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन दही-चूड़ा खाने से सौभाग्य आता है. इस शुभ दिन में सबसे पहले दही-चूड़ा का सेवन किया जाता है. साथ ही सफेद और काली तिल के लड्डू, तिल के गजक भी खाए जाते हैं.

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