नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पति और पत्नी के बीच हिंदू विवाह अधिनियम के तहत न्यायिक कार्यवाही में तीसरे पक्ष के खिलाफ राहत का दावा नहीं किया जा सकता है. अदालत ने एक पत्नी की उस याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया, जिसमें उसने अपने पति और दूसरी महिला के बीच कथित विवाह को अवैध घोषित करने की मांग की थी.
कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत तलाक, न्यायिक अलगाव आदि की राहत केवल पति और पत्नी के बीच हो सकती है और इसे तीसरे पक्ष तक नहीं ले जाया जा सकता. इसलिए, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 23 ए के आधार पर यह अपीलकर्ता- मूल तौर पर बचाव पक्ष- के लिए खुला नहीं है कि वह इस आशय की घोषणा की मांग करे कि प्रतिवादी- मूल वादी- और तीसरे पक्ष के बीच विवाह को अवैध है.
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्नाकी बेंच ने निताबेन दिनेश पटेल बनाम दिनेश दयाभाई पटेल मामले सुनावई के दौरान कहा कि प्रतिवादी - मूल वादी और तीसरे पक्ष के बीच कथित विवाह के बाद पैदा हुए बेटे के खिलाफ भी प्रतिवाद के माध्यम से कोई राहत नहीं मांगी जा सकती है.
पीठ की ओर से न्यायमूर्ति एमआर शाह द्वारा लिखे गए फैसले में आगे कहा गया है कि यदि ट्रायल शुरू होने के बाद कुछ तथ्य सामने आए हैं, तो सुनवाई शुरू होने के बाद भी लिखित बयान में संशोधन के लिए अर्जी की अनुमति दी जा सकती है. कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता-पत्नी और प्रतिवादी-पति के बीच तलाक के मुकदमे में दलीलों में संशोधन और राहत की प्रकृति के बारे में सवाल उठाया जा सकता है.