हैदराबाद : क्या असदुद्दीन ओवैसी ( asaduddin owaisi) राजनीति के सेटर स्टेज पर हैं या बीजेपी उन्हें चुनावी ध्रुवीकरण के लिए बहस के केंद्र में लाती है. इसके ताजातरीन दो उदाहरण हैं. गौरतलब है कि 3 सितंबर को बेलगावी में 58 वार्ड, कलबुर्गी में 55 वार्ड और हुबली और धारवाड़ के 82 वॉर्ड के लिए मतदान होना है और कर्नाटक के नए नवेले मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की पहली चुनावी अग्निपरीक्षा होनी है. इन निकायों में मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच माना जा रहा था. एआईएमआईएम की मौजूदगी से मुकाबला त्रिकोणीय होने का महज संभावना ही जताई जा रही थी.
इस बीच भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को तालिबान बता दिया. सी टी रवि ने कहा कि एआईएमआईएम कर्नाटक के तालिबान की तरह है. उन्होंने कहा कि तालिबान और एआईएमआईएम के मुद्दे समान हैं. कलबुर्गी में तालिबान को स्वीकार नहीं किया जाएगा. इस पर असादुद्दीन ओवैसी ने तगड़ा पलटवार किया और सीटी रवि को अभी बच्चा बताते हुए कहा कि उनका बयान बचकाना है. वह अंतरराष्ट्रीय राजनीति के बारे में कुछ नहीं जानते हैं. इस बयान और पलटवार का असर 6 सितंबर को पता चलेगा, जब नतीजे आएंगे.
ओवैसी की टिप्पणी को लपक लेते हैं भाजपा वाले :इससे पहले उत्तरप्रेदश में ओवैसी की चर्चा खूब हो रही है. यूपी में एआईएमआईएम (AIMIM) ने भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाकर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और भीम आर्मी के साथ गठबंधन किया है. एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी (asaduddin owaisi) उत्तरप्रदेश के दौरे कर रहे हैं. उम्मीद जताई जा रही है कि एआईएमआईएम वहां 100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. ओवैसी ने एक बयान में यूपी के सीएम आदित्यनाथ को चुनौती दी, इसके बाद योगी लगातार एआईएमआईएम चीफ को कई मंचों पर मुसलमानों का बड़ा नेता बता चुके हैं. यूपी के नेता भले ही समाजवादी पार्टी और बीएसपी के बयानों पर रुककर बोल रहे हैं मगर ओवैसी के बयानों पर तत्वरित तीखा रिएक्शन दे रहे हैं.
बीजेपी की बी टीम होने का आरोप में कितना दम है :देश के अन्य विपक्षी दल हमेशा ओवैसी पर भाजपा की 'बी' टीम होने का आरोप लगाते रहे हैं. अन्य दलों का आरोप है कि ओवैसी की बीजेपी से मिलीभगत है, इसलिए वह चुनावों में बयानों में उसे ध्रुवीकरण का मौका देते हैं. साथ ही मुस्लिम वोटरों को विभाजित भी करते हैं. बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी ने उन पर वोटकटवा होने के आरोप लगाए थे. हालांकि असादुद्दीन ओवैसी हमेशा इस आरोप को खारिज करते रहे हैं. बंगाल चुनाव के नतीजे बताते हैं कि ओवैसी ने मुसलमान वोट में सेंध नहीं लगाई.
यूपी में गठबंधन बनाकर खेल करेंगे ओवैसी :यूपी की बात करें तो 2017 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उन्हें एक भी सीट नहीं मिली थी. पूरे प्रदेश में AIMIM को 0.2 फीसदी यानी कुल 205,232 वोट मिले थे. इसका औसत 5,400 वोट प्रति सीट था, जो जीतने के लिए तो नहीं, मगर किसी एक बड़े दावेदार को हराने के लिए काफी हैं. हालांकि 2017 और 2022 के बीच गंगा में काफी पानी बह चुका है और ओवैसी की राजनीतिक ताकत इस बीच काफी बढ़ी है. इसके अलावा देश के अल्पसंख्यक समुदाय में उनकी पैठ बढ़ी है. यूपी में भागीदारी संकल्प मोर्चा का हिस्सा बनने के बाद हैरानी नहीं होगी, अगर एआईएमआईएम (AIMIM) पांच या सात सीट जीत जाए.
कांग्रेस के साथ रहे हैं एआईएमआईएम (AIMIM) के रिश्ते : एआईएमआईएम1960 में चुनावी राजनीति में आई. 1962 से 1984 तक असासुद्दीन ओवैसी के पिता सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी आंध्रप्रदेश के विधायक रहे. 1984 से 2009 तक वह हैदराबाद लोकसभा सीट से सांसद रहे. इस बीच 1994 से 2009 तक असदुद्दीन ओवैसी भी विधानसभा में चारमीनार सीट से विधायक रहे. 2009 में असासुद्दीन ओवैसी पहली बार हैदराबाद से संसद पहुंचे. इस दौरान एआईएमआईएम ने आंध्र विधानसभा और केंद्र में हमेशा कांग्रेस नीति वाली सरकारों का समर्थन किया. 2009 में विधानसभा में एआईएमआईएम ने विधानसभा में सात और हैदराबाद नगर निगम में 43 सीटें जीतीं. मगर दोनों के रिश्ते में दरार तब पड़ गई, जब चारमीनार के पास बने मंदिर के संबंध में असासुद्दीन ओवैसी के छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने विवादित बयान दिया. आंध्र की कांग्रेस सरकार ने भाषण के आधार पर अकबरुद्दीन ओवैसी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. 12 नवंबर को 2012 में दोनों के राजनीतिक रिश्ते पूरी तरह खत्म हो गए. एआईएआईएम ने केंद्र और राज्य सरकार से समर्थन वापस ले लिया.
सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी ने संसद में लिया था यूपीए का पक्ष :2008 में भारत-अमेरिका न्यूक्लियर डील के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ने मनमोहन सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. संसद में बहस के दौरान समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने दावा किया कि भारत के अल्पसंख्यक अमेरिका के साथ इस समझौते के खिलाफ हैं. मगर तब असासुद्दीन ओवैसी के पिता और हैदराबाद के तत्कालीन सांसद सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी ( Sultan Salahuddin Owaisi) ने यूपीए सरकार के पक्ष में वोटिंग की. उन्होंने डील को कम्यूनल एंगल देने के लिए कई दलों की आलोचना की थी. तब सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी ने कहा था कि बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस की सरकार को समर्थन देना जरूरी है.
एआईएमआईएम (AIMIM) की रणनीति में माइनॉरिटी और दलित :कांग्रेस का साथ छोड़ने के बाद अससुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व में एआईएआईएम ने आंध्रप्रदेश से बाहर पैर निकाले. 2012 के निकाय चुनाव में एआईएमआईएम ने नांदेड़-वागला नगर पालिका में 13 सीटें जीतकर खाता खोला. 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 2 सीटें जीत लीं. 2013 में पार्टी ने कर्नाटक निकाय चुनाव में 6 सीटें हासिल की. असासुद्दीन ओवैसी ने इसके बाद राज्यों में उन दलों से तालमेल बैठाने की कोशिश की, जो दलित समाज की राजनीति करते हैं. 2018 में उन्होंने महाराष्ट्र में प्रकाश आंबेडकर के बहुजन वंचित अघाड़ी पार्टी से समझौता किया और औरंगाबाद लोकसभा सीट जीत ली. इस जीत की खासियत यह थी कि एआईएआईएम ने 2019 लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में सिर्फ एक सीट पर ही अपना कैंडिडेट खड़ा किया था. यूपी में ओवैसी इसी प्रयोग को दोहराने वाले हैं.